Marx Lenin और राजधानी में मार्लेना राज
आदित्य पांडे
दिल्ली में मार्लैना मैडम का राज आ गया है तो इसे इतने पर ही खत्म न कर दीजिए कि केजरीवाल ने इस्तीफा दिया और फायदा देखकर एक महिला को आगे कर दिया ताकि आधी आबादी को अपना सा लगे. इसे थोड़ा व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखिए, यह दिल्ली है इसने बतौर हस्तिनापुर कौरव और पांडवों का भी राज देखा है, और हालिया इतिहास में यानी पिछले चार पांच सौ साल में बार बार लगातार हमले सहते हुए, मुगलों से होते हुए अंग्रेजों के जुल्म सहे और फिर भारतीयों के ही एक तबके ने इन हमलावरों की जगह ले ली लेकिन कभी भी दिल्ली में मार्लेना राज नहीं आया.
यहां आप यदि जरा भी कन्फ्यूज हैं तो समझ लीजिए कि आतिशी का उपनाम यानी सरनेम मार्लेना नहीं है बल्कि यह एक गढ़ा हुआ सरनेम है जिसमें उनके वाम पंथी मां बाप ने कार्ल मार्क्स का मार और लेनिन का लेना मिला दिया है. हो सकता है आप कहें कम्युनिस्ट तो दिल्ली पर कब से राज कर ही रहे हैं, सीधे तौर पर न सही वैचारि तौर पर तो वे ही सब जगह छाए हुए हैं. उनके बनाए हुए सिलेबस हर नई पौध को पढ़ने होते हैं भले वो गलत हों या तथ्यों से ठीक उलट ही क्यों न हों. सारे आईएएस और आईपीएस के लिए यह जरुरी है कि वो उन्हीं सांचों से ढलकर निकलें जो इन कम्युनिस्टों के गढ़े हुए हैं. जिन्होंने सत्ता में हिस्सेदारी का मौका मिलने पर मलाई वाले विभागों की चाह न रखते हुए शिक्षा विभाग जैसी जगहों पर खुद को स्थापित किया. पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में जिस तरह वाम सत्ता में रहा वैसा दिल्ली में कभी नहीं रहा.
हां एक बार जरुर हालात बने थे कि ज्याति बसु देश के प्रधानमंत्री बन सकें लेकिन तब उनकी ही पार्टी ने उनके नाम पर पलीता लगा दिया. तो केजरीवाल की इस पसंद को इस नजरिए से देखिए कि अब दिल्ली मार्क्स और लेनिन के मिले जुले मॉडल आतिशी से चलेगी. यह भी कहा जा सकता है कि आज तक तो केजरीवाल ही सीएम थे जो खुद को अर्बन नक्सल कहने में कभी शर्मिंदा नहीं हुए लेकिन ठहरिए, केजरीवाल के उदय के हालात याद कीजिए. अण्णा का आंदोलन जिसमें लगभग पूरे देश की भागीदारी थी, फिर केजरीवाल का अण्णा से छिटक कर सत्ता में आ जाना. यह वाम का स्टाइल ही नहीं था. वे दिल्ली के ‘मालिक’ होना चाहते थे जबकि वाम मालिक शब्द के ही खिलाफ रहा है. केजरीवाल जेल से बाहर आ गए लेकिन उनकी फाइलें साइन करने की ताकत तिहाड़ में ही जब्त कर ली गई थी तो उन्होंने तो अपने कार्यवाहक को चुना है जो ‘अड़े भिड़े समय में’ उनकी तरफ से फाइलें निपटाता रहे. पहले यह काम सिसोदिया के जिम्मे था जो शराब नीति में गड़बड़ करते पकड़े गए थे लेकिन केजरीवाल ने मार्क्स और लेनिन के इस क्लोन को सत्ता सौंपकर बहुत बड़ा खतरा तो मोल ले ही लिया है.
वो न सिर्फ केजरीवाल को जानती हैं बल्कि उनके इतिहास में गुरु रहे अण्णा को भी जानती हैं और उस एपिसोड से उन्होंने सबक भी लिए ही होंगे. केजरीवाल ने महिलाओं को संदेश देने के लिए जिस महिला को चुना है वह सिर्फ महिला नहीं है. वह ऑर्क्सफोर्ड से पढ़ी हुई है्र उसके वामपंथी मां बाप इतनी हिम्मत दिखा सकते हैं कि अपना सरनेम ही मार्लेना कर लें. जब पूरा देश अफजल गुरु की फांसी पर खुश था तो यह मार्लेना परिवार चिट्ठी लिख रहा था कि उसे सजा नहीं होनी चाहिए.2019 में गौतम गंभीर से लगभग पांच लाख वोटों से जब वो सांसद का चुनाव हारी थीं तो यह जनता का जवाब था कि वह मार्क्स और लेनिन के क्लोन को दिल्ली में नहीं देखना चाहता लेकिन अगले ही साल वो विधायक के लायक इसी दिल्ली की जनता द्वारा चुन ली गईं. 2023 में मंत्री और अगले ही साल यानी अब मुख्यमंत्री तक पहुंचने की उनकी जो स्पीड रही है वह बताती है कि उनके पीछे का ‘मार्लेना’ इको सिस्टम काफी मजबूती से खड़ा रहा है. आज आतिशी से ज्यादा शुभकामनाओं की जरुरत केजरीवाल को है जिनकी राष्ट्रीय नेता बनने की छलांग यदि सफल नहीं हो पाई तो उनके हाथ से दिल्ली की भी डाल न छूट जाए आखिर मार्क्स और लेनिन की सीख भी तो कभी काम आएंगी ही ना..,.