August 6, 2025
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Population में हिस्सेदारी के तथ्यों के कुछ बिंदु

कायदे से तो भारत की जगनणना 2021 में हो जानी चाहिए थी लेकिन इसकी अब भी कोई संभावना नजर नहीं आ रही है. ऐसे में सारे काम 2011 के आंकड़ों से ही चल रहे हैं. अब एक रिपोर्ट बता  रही है कि 2011 की जनगणना के मुताबिक देश की आबादी में मुसलमानों का हिस्सा बढ़ा है. 2001 के 13.4 प्रतिशत से 2011 में यह संख्या बढ़कर 14.2 प्रतिशत हो चुकी थी.
इस अवधि में असम में 2001 के 31 प्रतिशत मुसलमान बढ़कर 34 प्रतिशत के पार हो गए थे और यही हाल पश्चिम बंगाल में था जहां मुस्लिम 25.2 प्रतिशत से बढकर 27 हो गए.  1961 से
2011 तक की जनगणना के आँकड़े बताते हैं कि 50 वर्षों में हिंदुओं की आबादी कम हुई है और मुसलमानों की बढ़ी है. वैसे बीते दस सालों के दौरान मुस्लिम और हिंदू आबादी का प्रतिशत स्थिर है. इस रफ्तार से मुसलमानों की आबादी को हिंदुओं के बराबर होने में 3626 साल लगेंगे. समाजविज्ञानी कहते हैं कि 2050 तक भारत की आबादी स्थिर होगी और मुस्लिम 14 से अधिक नहीं होंगे. आंकड़ों पर गौर करें तो हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट 3.16 प्रतिशत और मुस्लिमों में 4.90 प्रतिशत है. एनएचएसआर की रिपोर्ट कहती है कि 2019-21 के दौरान हिंदुओं
में प्रजनन दर 1.94 व मुस्लिमों में 2.36 थी, 1992 में यह मुस्लिमों में 4.4 व हिंदुओं में 3.3 थी. यानी मुस्लिमों में प्रजनन दर साल दर साल घट भी रही है. 2021 में अनपढ़ मुस्लिम महिलाएं घटकर 21.9प्रतिशत रह गईं हैं जो 2016 में 32 प्रतिशत तक थीं. जाहिर है शिक्षा के बढ़ने का अससर भी प्रजनन दर में कमी के रुप में सामने आना है. शायद यही वजह है कि गर्भनिरोधक साधन इस्तेमाल करने वाले मुस्लिम 2019-21 में 47.4प्रतिशत हैं जो इससे पहले के पांच साल में  लगभग अड़तीस प्रतिशत थे. धार्मिक आधार पर इस्लाम के परिवार नियोजन विरोधी होने की बात पर भी नजर डाल लें, पैगंबर छोटे परिवार का संदेश देते हैं। हजरत मुहम्मद कहते हैं, ‘छोटा परिवार सुगमता है. उसके बड़े हो जाने का नतीजा है -गरीबी।’ दसवीं सदी में
रज़ी की किताब ‘हवी’ में गर्भ रोकने के 176 तरीकों का जिक्र है. भारत में सूफियों के चारों इमाम -हनफी, शाफी, मालिकी और हमबाली छोटे परिवार की हिमायत करते हैं.