Hariyali Teej जीवन रुपी शिव और जीवनदायिनी प्रकृति का पर्व
क्यों विशिष्ट है हरियाली तीज का यह पर्व
श्रावण, हरियाली की चादर के साथ मस्ती और उमंग लेकर आता है. इसी के बीच आता है तीज का त्यौहार. श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज भी कहलाती है. नागपंचमी एवं राखी से ठीक पहले. आनेवाली हरियाली तीज आस्था व उमंग का त्यौहार है. समृद्धि, खुशी और तरक्की के प्रतीक तीज को भारत के हर कोने में अलग अलग नामों से मनाया जाता है.
चारों तरफ बारिश की फुहारों और चौतरफा हरियाली के बीच झूमती प्रकृति जब सबका अभिनंदन करती है तब हम प्रकृति के धन्यवाद स्वरूप यह त्योहार मनाते हैं. शिव का महीना माने जाने वाले श्रावण में मांग शक्ति या कहें गौरी का भी तो उतना ही सत्कार होना ही चाहिए, उसी का प्रतीक है यह तीज का त्योहार. गणगौर के बाद त्योहारों का जो सिलसिला थमता है वह तीज से फिर गति पकड़ लेता है.
धार्मिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पतिरूप में पाने के लिए इस व्रत का पालन किया था. उनके तप से प्रसन्न शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकारा तो तीज का यह त्योहार खास हो गया. माना जाता है कि इसी दिन माता पार्वती ने शिव को पति रूप में पाया था. इस पर्व में हरियाली शब्द जुड़ा हुआ है जो प्रकृति और प्रकारांतर से मां पार्वती से जुड़ा है, यह पर्व हमें याद दिलाता है कि पर्यावरण की महत्ता हमारे लिए हमेशा से कितनी प्राथमिकता की रही है.
जीवन और जीवनदायी प्रकृति के प्रति धन्यवाद का प्रतीक है यह त्योहार. लोकगीतों के साथ तीज पर मेहंदी लगते हाथ, नई चूडियों की खनक और झूले इसे आनंदोत्सव बनाते हैं. जिनके जीवनसाथी तय हो चुके हैं लेकिन अभी विवाह सूत्र में नहीं बंधे हैं ऐसी लड़कियों को इस दिन भावी ससुराल से भेंट मिलती है जिसे सिंजारा कहते हैं.इसमें मेंहदी, लाख की चूडियां, लहरिया वाले कपड़े और मिठाई में घेवर विशेष रुप से मिलता है. नवविवाहिता युवतियां को सावन में मायके पहुंचती हैं तो प्रकृति थोड़ी और हरियाली हो उठती है. तीज के अवसर पर उपवास कर भगवान शंकर-पार्वती की बालू से मूर्ति बनाकर शोडषोपचार होता है जो रात्रि भर चलता है. इस तरह तीज पर शिव यानी जीवन और प्रकृति यानी जीवनदायिनी, दोनों का हर रुप में उल्लसित होकर पूजन संपन्न किया जाता है.