August 5, 2025
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Rambhakt Hanuman : विराट स्वरूप और हमारी श्रद्धा

गन्धमादन पर्वत के कदलीवन वाले हनुमानजी के लिए क्या असम्भव है. भक्त के मनोरथ के लिए हनुमानजी समय की सीमाओं को भी लाँघ जाते हैं जैसे सौ योजन समुद्र लाँघ गए थे. उन्होंने प्रभु राम केसे एकमात्र वर माँगा कि जब तक संसार में आपकी कथा हो, मैं उपस्थित रहूं. वे त्रेंता के बाद द्वापर में भी थे. महाभारत की कथा है कि जब भीम गन्धमादन पहुँचे तो हनुमानजी ने भीम को दर्शन दिए. भीम ने कहा कि समुद्र लाँघते समय जो आपका रूप था, मुझे उसका दर्शन करना है. द्वापर युग में त्रेता वाले रुप का दर्शन देना कैसे संभव था लेकिन भीम ने जिद पकड़ ली तो भीम के सामने उन्होंने समुद्र लांघने वाला रूप फिर धरा. ऐसा विराट रूप कि महाबली भीम उसे देख पाने में खुद को असमर्थ पाने लगे, हनुमानजी ने मुस्कुरा कर पूछा, तुम कहो तो और विस्तार दूं इस रूपधे? संदेश यह कि कि हमारे मन हनुमत की में जितने बड़े स्वरूप की भावना है, वे उतने बड़े हैं. भीम तो यह देखकर तुरंत बोले कि अब कृपापूर्वक आप स्वयं ही विस्तृत रुप को समेट लीजिए क्योंकि आपकी ओर देख सकने का भी सामर्थ्य मुझमें नहीं है. हर बार यह कथा याद दिलाती है कि हनुमानजी के लिए कुछ असम्भव नहीं है, वे तो आपकी श्रद्धा के आकार जितने बड़े हैं. अब हम देखें कि हमारी श्रद्धा का आकार कितना है और भक्ति के भाव का कद क्या है.