August 6, 2025
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तस्मै श्री गुरुवै…जो गोविंद से भी बढ़कर हों

गुरु पूर्णिमा के चंद्रमा जो चमक बिखेर दें अंधेरे बादलों में भी

गुरु शब्द में ही ज्ञान का तेज है जो अज्ञान को नष्ट कर दे. चातुर्मास के दौरान आने वाली गुरु पूर्णिमा वर्षा के साथ साथ मनाई जाती है, चार माह तक गुरु एक जगह अपने शिष्यों पर ज्ञान की अमृत वर्षा करें और इंद्र इसी दौरान सृष्टि पर जल की वर्षा करें. इसे आप संयोग कह सकते हैं या कि इन दोनों के बीच कोई गहरा जुड़ाव है, आध्यात्मिकता का. गुरु- शिष्य परंपरा का यह सबसे खास उत्सव है. इस दिन प्रतीकात्मक रुप से विष्णु और लक्ष्मी पूजन भी होता है और बड़ी बात यह कि लक्ष्मी पूजन के विशेष पर्व में भले लक्ष्मी ही पूजी जाती हों लेकिन यहां गुरु पूर्णिमा पर उनसे भी बढ़कर गुरु के पूजन का महत्व है.

आषाढ़ की पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा चुनने के पीछे का अर्थ यह भी संभव है कि गुरु पूर्णिमा के चंद्र प्रकाशमान हैं और शिष्य आषाढ़ के बादलों की तरह अज्ञान से घिरा हुआ. जो गुरू शिष्य के अंधेरे से घिरे आान के बादल को हटाकर उसका जीवन प्रकाशमय कर सके वह गुरु श्रेष्ठतम ही होंगे. आषाढ़ मास की पूर्णिमा पर महर्षि वेद व्यास का जन्म भी माना जाता है, उन्हीं के जन्मोत्सव स्वरुप यह मनाया जाता है. कृष्ण द्वैपायन व्यास या कहें वेद व्यास ने ही चारों वेदों की भी रचना की थी. वे भी महागुरु माने जाते हैं और उनके सम्मान में ही इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है. यह भी कहना मुश्किल है क्योंकि गुरु का पूजन तो हमारी संस्कृति में उनके पहले से भी रहा ही है, आदियोगी शिव भी इसी दिन गुरु की भूमिका में आए थे और आज भी हर आध्यात्मिक प्रक्रिया के मूल में आदियोगी का दिया ज्ञान ही है. यही वह दिन भी है जिस दिन महात्मा बुद्ध ने सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया. सिख धर्म में गुरु को सर्वोपरि माना गया है और इसके चलते यह पर्व सिख धर्म में भी विशेष महत्व लिए है.