Bangladesh सेना प्रमुख वकार उज जमान सत्ता पलट के जिम्मेदार
भारत को तोड़ने की कोशिशों जैसा व्यवहार हर पड़ोसी के साथ
जिस व्यक्ति ने बांग्लादेश का सपना देखा और उसे पूरा किया, जिसने अपने देश के लिए लड़ने वालों के सम्मान में उनको सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था दी और जिस व्यक्ति ने अपने आप को देश के लिए दांव पर लगा दिया आजर उसी की मूर्ति को बांग्लादेश में तोड़ा जा रहा है तो समझने की जरुरत है कि आखिर हमारे पड़ोसी कहां भटक गए.
ज्यादा दिन नहीं हुए जब भारत का विपक्ष चिल्ला चिल्लाकर कह रहा था कि आर्थिक तौर पर तो बांग्लादेश हमसे बेहतर कर रहा है.इन सबके बीच बांग्लादेश को धराशायी होने में कितने दिन लगे? आप आज कह सकते हैं कि सेना प्रमुख वकार उज जमान की सत्ता के प्रति आसक्ति एक अच्छे भले पड़ोसी को निगल गई लेकिन क्या बात सिर्फ इतनी ही है. आज वकार, सलीमुल्ला खान, आसिफ नजरुल, जस्टिस रहे अब्दुल वहाब मियां, जनरल इकबाल भुइयां, मेजर सैयद इफ्तेखारुद्दीन, देबप्रिय भट्टाचार्य, मतिउररहमान चौधरी, सखावत हुसैन, हुसैन जिल्लुर रहमान और एमए मतिन मिलकर देश को मिलकर संभालने का भरोसा दे रहे हैं लेकिन क्या वो चीन, पाकिस्तान और पिछले रास्ते से अमेरिका के भी दखल को निपटने की जरा भी क्षमता रखते हैं.

आग भड़काने का काम बहुत आसान है, सोरोस अंकल दुनिया में कहीं भी आग लगाने वालों को खुले हाथों से पैसा बांटने को उधार बैठे हें लेकिन जब आग लग चुकी हो तो उसे बुझाने के काम के लिए कहीं कोई नहीं है जो एक पैसा भी डालना चाहता हो. जिस तरह से भड़की हुई भीड़ आज बांग्लादेश के पीएम के घर में घुसकर हंगामा कर रही है ठीक वही हालत हम श्रीलंका के राष्ट्रपति के निवास में देख चुके हैं. वहां भी आग लगाने के लिए तो खूब पैसा आया, चारों तरफ से पैसा आया लेकिन अब जो उसकी हालत है उस पर ये लोग तरस खाने तक को तैयार नहीं हैं.
बांग्लादेश का मुद्दा हमारे लिए इसलिए बड़ा है क्योंकि इसके साथ हमारी हजारों किलोमीटर की बॉर्डर है, बॉर्डर से लगी एक मुख्यमंत्री देशहित से बढ़कर वोटबैंक बढ़ाने की हिमायती हैं और घुसपैठ करने की जो संभावनाएं ही तलाशते हों उनके लिए यह मौका सुनहरे अवसर से कम नहीं है. म्यांमार से लेकर नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका तक के जो हालात बने या बना दिए गए उनके पीछे की किसी बड़ी साजिश को भी समझने की कोशिश कीजिए. आज भारत इन सबका बड़ा भाई है और जब छोटे भाइयों के घर इस तरह क्लेश में उलझा कर अपना रकबा बढ़ाया जा रहा हो तो सावधानी का ही रास्ता बच जाता है. शेख हसीना ने एक बार तो अपना विदेश दौरा बीच में छोड़कर हालात संभाल लिए थे लेकिन इस बार ढाका में रहते हुए भी उनके हाथ से सत्ता छीन ली गई तो उन्हें सबसे पहले भारत ही याद आया, अब भले वो किसी भी दूसरे देश में शरण ले लें लेकिन जिस समय आपको एक वाक्य का राष्ट्र के नाम संदेश बनाने तक का समय न दिया गया हो, जब आपका सेना चीफ आपको मिनटों का समय देकर इस्तीफा देने को कह दे तब जो साथ खड़ा हो वही दोस्ती काम की होती है और इस मायने में फ्रेंडशिप डे के अगले दिन भारत ने अपनी दोस्ती निभाई है.
पाकिस्तान की आईएसआई से लकर चीन के हर च्याऊं म्याऊं के आज चहकने का दिन हो सकता है कि उनकी न मानने वाली हसीना को उखाड़ दिया गया लेकिन सवाल एक देश का नहीं है और वहां जारी हिंसा का नहीं बचा है बल्कि अब यह सवाल वैश्विक है कि क्या भीड़तंत्र को उकसा कर कोई सनकी बुढ़ऊ किसी भी देश को अंशाति की आग में झोंक देगा और वहां की सत्ता छीन ली जाएगी. ऑस्ट्रेलिया सोरोस को आतंकवादी मानता है तो उसकी वजहें होंगी और यदि बंग बंधु की मूर्ति पर हथौड़े उसी देश में चल रहे हैं जहां के वे जनक रहे हैं तो बात चिंता की तो है.