Ramlila Maidan ‘समय होत बलवान’ का साक्ष्य
लेख- आदित्य पांडे
दिल्ली का रामलीला मैदान जितनी रामलीला नहीं देखता उससे ज्यादा धरने प्रदर्शन और राजनीतिक रैलियां देखता है. ज्यादा समय नहीं हुआ जब इसी रामलीला मैदान से अन्ना हजारे की हुंकार उठी थी और ऐसा लगा था कि अब देश सही रास्ते पर चल निकलने को बेताब है. अन्ना की बातें जिस राष्ट्रीय चेतना को जगाने का काम कर रही थीं वह कम से कम इस पीढ़ी ने तो नहीं देखी थी. रामलीला मैदान पर जो जुट रहे थे उनमें अधिकतर स्वत;स्फूर्त थे और कुछ ने तो अपनी देश विदेश में चल रही नौकरियों को भी अलविदा कह दिया था. अन्ना के आसपास जो चेहरे नजर आते थे उनमें कुछ हद तक कुमार विश्वास और योगेंद्र यादव ही जाना पहचाना चेहरा था और अरविंद केजरीवाल नाम का जीव इस कोर टीम में सबसे कम (पूरे देश में) पहचाना चेहरा था. दिल्ली के लोग उसे पहचानते थे क्योंकि वह एनजीओ भी चला चुका था, सरकारी नौकर भी रह चुका था, संदीप दीक्षित का दोस्त भी था और अच्छी कनेक्टिविटी वाला भी था और बहुत कम लोग कहते थे कि यह आदमी चालाक लोमड़ी जैसा है लेकिन वे भी उसे जानते ही थे. केजरीवाल राजनीति में न आने के लिए बच्चों की कसम खाता, यह भी बताता कि कुर्सी के पास पहुंचते ही कैसे हर कोई भ्रष्ट हो जाता है, लोकपाल लाने का वादा और दावा भी करता लेकिन सबसे बड़ी बात जो उसमें थी वह यह कि उदसे किसी काे भी भ्रष्ट कह देने में कोई हिचक नहीं थी. शुरुआत उसने अपने परममित्र रहे संदीप दीक्षित की मां यानी शीला दीक्षित से की और जैसे जैसे हिम्मत खुलती गई वह किसी भी बड़े नाम पर आरोप लगाकर कह देता कि इनके खिलाफ मेरे पास सबूत हैं, ईडी, सीबीआई यदि काम नहीं कर सकतीं तो हमने इन्हें क्यों बना रखा है. पचास से ज्यादा भ्रष्ट नेताओं के जो नाम ले लेकर केजरीवाल ने कहा कि ये सबसे भ्रष्ट हैं और इन्हें हम सजा करवा कर ही रहेंगे, वे सारे नाम उस समय की राजनीति के सबसे बड़े नाम थे और सरकारें बनाने चलाने वाली पार्टियों के कर्ताधर्ता थे.
समय का पहिया घूमा, दान की नीली गाड़ी से चलने वाले केजरीवाल बड़ी बड़ी गाड़ियों के काफिले में घूमने लगे क्योंकि कसम तोड़कर उन्होंने राजनीति में आने की ठान ली थी और दिल्ली की जनता ने उन्हें जिताने की ठान ली थी. एक बार, दो बार, तीन बार… केजरीवाल बढ़ते रहे और बुलंदी तक पहुंचने के रास्ते में उनके साथी पिछड़ते रहे या बिछड़ते रहे. जिस जिस ने उन्होंने बताया कि वे खतरनाक रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं, जिस जिस ने उनकी रंग बदलती दुनिया देख ली थी, जिस जिस ने उन्हें शातिरतम दिमाग बतौर पहचान लिया था, जिस जिस ने पार्टी की फंडिंग के बारे में जानने की कोशिश की वे सब धराशायी होते गए या अपने रास्ते जुदा कर निकल लिए. अब बचे थे केजरीवाल और उनके यसमैन, जिन्हें न उनके लालू से हाथ मिलाने से दिक्कत थी और न शरद पवार से गले मिलकर साथ जुड़ने में परेशानी थी. संजय सिंह, मनीष सिसोदिया, राखी बिड़लान, आतिशी जैसे चार छह नाम सत्ता से लेकर केजरीवाल के अहम तक को संभालने में लगे रहे और केजरीवाल इस बात की बेफिक्री से बिना विभाग के मुख्यमंत्री रहे कि बस अब चैन की बंशी बजाना है. उन्होंने दिल्ली से बाहर पैर पसारे तो सिवा पंजाब के कहीं ज्यादा जुड़ाव जम नहीं पाया. फिर वह समय भी आया कि ट्रक भरकर सबूत का दावा कर इस्तीफे मांगने वाले जिद करने लगे कि हम जेल से ही सरकार चलाएंगे. शहीद भगतसिंह की फोटो का बेजा इस्तेमाल इसलिए किया जाने लगा कि शराब घोटाले के आरोप लगने पर जेल होने को शहादत से जोड़ा जा सके. झूठ की इंतहा उस व्यक्ति ने की जो सत्य सत्य की रट लगाकर अभेद्य राजनीति के किले में घुसा था.
आज जेल में बंद केजरीवाल के समर्थन में उसी रामलीला मैदान में लोग जुटे, इस तरह एक ‘फुल सर्कल’ हो गया, समय के पहिए का एक पूरा चक्र. इसी आदमी ने जिन्हें पानी पी पी कर कोसा था, भ्रष्टाचार की जड़ बताया था, जिन्हें जेल में डालने की बात कर इनसे पाई पाई वसूलने की बात कही थी…वे सारे लोग आज रामलीला मैदान में उतरे और इसी आदमी के समर्थन में उतरे. अन्ना भी आज रामलीला मैदान के एक कोने में छोटा सा टेंट लगा लेते तो बेहतरीन नजारा बन सकता था लेकिन वे रालेगण सिद्धी के स्थायाी वनवास पर भेज दिए गए हैं. जिन सोनिया से दो दिन में हजारों घोटाले उगलवाने की बात केजरीवाल करते थे, आज उनकी ही पार्टी और पुत्र का पूरा दम लगा रहा कि भीड़ आ जाए और यह भीड़ केजरीवाल के लिए नहीं बल्कि उस इंडी अलायंस की इज्जत के लिए जुटाई गई जिसका हिस्सा केजरीवाल हैं. पवार की पार्टी, लालू की पार्टी, हर वह पार्टी जिसे केजरीवाल ने भ्रष्ट कहा, सब आज उनके पक्ष में खड़ी हुईं और मांग हो रही है कि केजरीवाल पर भले लाख दोष हों और दोष भी शराब घोटाले जैसे ही क्यों न हों, उन्हें इसलिए बाहर रखा जाए क्योंकि वो अब एक नेता हैं.दूश्य या अदृयश, राहुल के साथ संदीप दीक्षित का होना जिनकी मां पर केजरीवाल ने सबसे भद्दे और ज्यादा आरोप लगाए थे. तेजस्वी और अखिलेश की शपथ भी कि वे केजरीवाल को बाहर निकलवा कर परिवार की राजनीति से लड़ेंगे. रामलीला मैदान अब तक जितनी भी लीलाएं देखता आया है उनसे कहीं ज्यादा रोचक यह लीला जो आज और ‘आप’ की है. इस दृश्य के साथ ये दो पंक्तियां आपके भी बार बार दिमाग में कौंधती रहेंगी… मनुज बली नहीं होत है, समय होत बलवान… भिल्लन लूटी गोपिका, वही अर्जुन वही बाण….