Kejriwal पिछले तीन महीने में Malliwal से ‘आप’ का हिसाब
महिला आयोग की भर्तियां भी इस मामल में एक बड़ा कारण हैंCM House में लात घूंसों से पीटा गया था मुझे…-माालीवाल
इसी साल जनवरी में केजरीवाल ने तय किया था कि स्वाति मालीवाल राज्यसभा भेजी जाएंगी. यानी महज तीन महीने पहले केजरीवाल उन्हें अपने लिए इतना विश्वस्त मानते थे कि उनके लिए राज्यसभा की राह बनाई गई लेकिन फिर राजनीतिक माैसम बदला और छह साल के लिए राज्यसभा में भेजी गईं स्वाति से तीन महीने बाद ही इस्तीफा मांगा जाने लगा. केजरीवाल का शराब मामले में जेल जाना और उसमें अपेक्षित रुप से मालीवाल का विरोध के लिए न उतरना तो एक ऊपरी बात हो सकती है और मालीवाल से केजरीवाल के पीए द्वारा मारपीट वाली घटना की भी जड़ें शायद कहीं गहरी हैं.
नियुक्तियों से पड़ी दरार
दरअसल इसे एक उदाहरण से समझिए जो इस घटनाक्रम का एकमात्र तो नहीं लेकिन बड़ा कारण माना जा सकता है.आपने पिछले दिनों एक खबर पढ़ी होगी कि दिल्ली महिला आयोग में की गई सैकड़ों भर्तियां एलजी ने निरस्त कर दी हैं. आंकड़ा दो सैकड़े से भी ज्यादा का था और इनकी तनख्वाहें भी दो लाख रुपए तक तय की गई थीं. आयोग की ये 223 नियुक्तियां उन्हीं तरीकों का हिस्सा थी जो आम आदमी पार्टी ने विभिन्न कॉलेजों वगैरह में अपने लोग विभिन्न पदों पर बैठाते हुए शुरु की थी जिनमें बड़ी संख्या में कथित पत्रकार भी थे. यहां तक सब केजरीवाल की मर्जी के मुताबिक होता नजर आ रहा था लेकिन हुआ यह कि इस संख्या में कुछ छोटी सी संख्या में मालीवाल ने अपने लोगों को बिना केजरीवाल की जानकारी के भर दिया. यानी दो सौ से ज्यादा केजरीवाल की पसंद के लेकिन बीस के करीब अपनी पसंद के या अपने परिवार के. मालीवाल मान रही थीं कि महिला आयोग की इतने समय अध्यक्ष रहते हुए और केजरीवाल की इतनी करीबी होते हुए दस प्रतिशत नियुक्तियों में अपने लोग रखना तो उनके हक में शामिल है लेकिन विभव कुमार को आप ने कई हिसाब किताब का हक दे रखा है और जब उन्होंने नियुक्तियों से हुई ‘आमदनी’ का हिसाब देखा ताे उन्होंने पाया कि इसमें ‘बॉस’ तक पूरा पैसा नहीं पहुंचा है. इसी के बाद मालीवाल से कैफियत मांगी जाने लगी, हिसाब पूछे जाने लगे और उन्हें तरीके से न चलने पर बाहर कर दिए जाने के संकेत मिलने लगे. अंदरुनी लोग तो यह भी कही रहे हैं कि एलजी तक आयोग में नियुक्तियों का मामला भी आप के ही कुछ लोगों ने पहुंचाया यानी यह इंटरनल सेबेोटेज था. जिनकी नियुक्तियां कृपा बनाए रखने के एवज में हुई थीं वे भी नाराज हो गए और जिन्होंने लेनदेन के बाद ये नियुक्तियां पाई थीं वे अपना पैसा वापस मांगने लगे. बात बिगड़ चुकी थी और केजरीवाल के जेल में रहते बॉस की कुर्सी पर सुनीता भाभी बैठ रही थीं जो न जाने कब से ही मालीवाल को पसंद नहीं करती हैं. खुद केजरीवाल भी हिसाब में गड़बड़ बर्दाश्त नहीं कर सकते थे आखिर कथित कमिश्नर साहब कमीशन मनी में गड़बड़ पर समझौता कैसे कर लेते.
जो कहा और जो अनकहा है
आतिशी जो बता रही हैं कि पिछले कुछ समय से मालीवाल भाजपा नेताओं के संपर्क में हैं उनसे जरा यह टाइदम पीरियड भी पूछा जाए तो शायद बात साफ हो सके. मालीवाल के दावे के हिसाब से वो बीस साल से केजरीवाल के साथ किसी न किसी रुप में जुड़ी हुई हैं यानी आप के उदय से लेकर इस फजीहत तक के बीच के कई किस्से और शीशमहल की काली दीवारों के पीछे के कई राज वो जानती हैं इसलिए तय यह था कि उन्हें धीरे धीरे किनारे कर दिया जाएगा और शुरुआत होगी राज्यसभा सांसदी वापस लेकर वह सीट अभिषेक मनु सिंघवी को देने से हो. मालीवाल इतने समय से सरजी को जानती और पहचानती ही नहीं हैं बल्कि उनकी रग रग से वाकिफ हैं इसलिए न उनके सामने यह चाल कामयाब होनी थी और न हुई. वो सीएम हाउस से निकलीं तब भी, पुलिस लाइन गईं तब भी और उसके बाद भी यही प्रयास होता रहा कि उन्हें थोड़ा ठंडा कर दिया जाए. संजय सिंह की पहली प्रेस कांफ्रेंस भी इसी का हिस्सा थी कि भरोसा दे दिया जाए विभव पर कार्रवाई होगी, संजय सिंह मालीवाल के घर जो संदेश लेकर गए थे वह इसी तरह का कुछ होगा यह सामान्य समझ की बात है लेकिन अगले दिन जब विभव उन्हीं संजय और केजरीवाल के साथ लखनऊ में नजर आए तो मालीवाल की तरफ से बची खुची समझौते की संभावना भी खत्म हो गई. चूंकि अब केजरीवाल की नजर दो ही बातों पर है कि कैसे वे सिंघवी जैसे लोगों को अपने लिए जोड़े रखें क्योंकि अलग अलग मामलों में उन पर शिकंजा कसता जा रहा है और दूसरा यह कि बाकी बचे आप सदस्यों में यह भ्रम अब भी बनाया रखा जाए कि भ्रष्टों के साथ होकर भी हम भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं.
जमानत दिलाने वाले सिंघवी बने फांस
सिंघवी कांग्रेस की टिकट पर हिमाचल से राज्यसभा हार गए हैं इसलिए सांसदी उनके लिए नाक का सवाल है और यूं भी केजरीवाल उन्हें किस फीस पर हायर कर सकते थे? जो लोग आप से राज्यसभा में पेसा देकर पहुंचे हें अब सिर्फ वे ही सुरक्षित हैं लेकिन जो राजनीतिक तौर पर गए हैं उन सभी की सीट खतरे में है, संजयसिंह ने इंडी के लिए काफी जोड़तोड़ की है और राजनीति खिवैया हैं इसलिए केजरीवाल उन्हें बनाए या बचाए रखना चाहेंगे लेकिन राघव चड्ढा और हरभजन तो उनके लिए बेकार ही साबित हुए हैं. राघव की जरुरत अब केजरीवाल को इसलिए भी नहीं बची क्योंकि पंजाब में खुद सीएम मान ही उनके शरणागत हो गए हैं. पंजाब से एक और सीट पर्यावरणविद बतौर आप ने जाया की है और केजरीवाल को अब समझ आ रहा है कि इसमें भी उन्हें घटा हुआ है लिहाजा अब राज्यसभा को लेकर हर सीट का हिसाब करना चाह रहे हैं और इन्हें फायदे का सौदा बनाना चाह रहे हैं. इस मामले में मालीवाल की सीट वाला पहला वार केजराीवाल के लिए बूमरैंग कर गया है इसलिए यह संभव है कि वे थोड़ी रफ्तार धीमी कर लें लेकिन 2 जून से पहले उन्हें एक सीट तो सिंघवी को बतानी ही है जो उन्हें फीस बतौर दी जाए क्योंकि यदि बाकी किसी से भी किया वादा तो केजरीवाल तोड़ सकते हैं लेकिल सिंघवी से किया वादा उन्हें हर हाल में निभाना ही पड़ेगा वरना तिहाड़ की दीवारें तो इंतजार कर ही रही हैं.