August 3, 2025
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Indore Election भाजपा को वॉकओवर, कांग्रेस के ‘बम’ फुस्स हुए

मध्सप्रदेश कांग्रेस के मुखिया ने अपने गृहनगर में जिस प्रत्याशी को जिद कर टिकट दिलवाई आज एक नाटकीय घटनाक्रम में उसी उम्मीदवार अक्षय कांति बम ने उम्मीदें छोड़ दीं और अपना नामांकन वापस ले लिया. वे जिन लोगाों के साथ कलेक्ट्रेट नामांकन वापस लेने पहुंचे उनमें भाजपा विधायक रमेश मेंदोला प्रमुख थे. जिस अंदाज में यह सब हुआ है उसने कांग्रेस को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं जिसमें सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि अक्षय को टिकट दिया ही क्यों गया था और जवाब यह है कि कांग्रेस में इंदौर से लड़ पाने का आर्थिक माद्दा रखने वाले उम्मीदवार चार ही थे जिनमें से जीतू पटवारी विधानसभा हार कर भी प्रदेश अध्यक्ष बन गए और वे लोकसभा की हार का टीका नहीं लगवाना चाहते थे. सत्यनारायण पटेल इतने चुनाव हारकर भी खड़े होने की हिम्मत कर जाते लेकिन जिस अंदाज में कांग्रेसी उनसे पैसा बहाने की उम्मीद करते हैं उससे वे भी बचना चाहते थे और फिर एक कारण यह भी था कि वे प्रियंका के खेमे के हैं और टिकट राहुल की ओर से बंट रहे थे. एक उम्मीद संजय शुक्ला थे लेकिन वे अक्षय की तरह इतना घूमकर भाजपा के खेमे के पास जाने के बजाए सीधे रास्ते ही बीजेपी के हो गए. ऐसे में कांग्रेस को एक ‘गांठ का पूरा’ प्रत्याशी चाहिए था जो पन्ना प्रमुख से लेकर दिल्ली तक दौड़ लगा सके और ‘बांटने’ को तैयार हो. बम को इसमें यह सुविधा नजर आई कि यदि वे कुछ पैसा खर्च करने को तैयार हो जाएं तो वे इंदौर जैसे बड़े शहर के नंबर एक कांग्रेसी तो हो ही जाएंगे और उसके बाद तो उनकी राहें आसान हो ही जानी थीं जैसी अब हो गई हैं. यानी इसमें बम की तरफ से जीतू को साफ संदेश था कि इसमें तेरा घाटा मेरा कुछ नहीं जाता (सिवा थोड़े धन के)…

जीतू पटवारी को राहुल गांधी तारीफों के पत्र लिख रहे हैं कि आप बढ़िया काम करते हैं और यहां कांग्रेसी मिलकर उन्हें विधानसभा चुनाव तक जीतने नहीं देते, राहुल फिर भी उन पर दांव लगाते हैं और कमलनाथ को हटाकर उन्हें प्रदेश सौंप देते हैं तो पटवारी हर कदम पर अपने प्रभाव का दुरुपयोग करते हैं. सोचिए कि यदि कांग्रेस ने जेब के बजाए कद को ध्यान में रखकर टिकट तय किया होता तो कई कांग्रेसियों के भाजपाई हो जाने के बाद भी टक्कर देने वालरे नाम निकल ही आते. जब एक विधानसभा हारा हुआ प्रदेश अध्यक्ष बन सकता है तो एक बार मात खाए हुए अश्विन जोशी को क्यों लालवानी के सामने नहीं उतारा जा सकता था और अश्विन जैसे कई नाम निकल आते लेकिन न कांग्रेस की टक्कर देने में कोई रुचि थी और न सही व्यक्ति को टिकट देने में. राहुल खुद वायनाड में जूझ रहे हैं क्योंकि इंडी के ही घटक वाम ने उनकी सीट मुश्किल कर दी है इसलिए वे तो इंदौर को लेकर विश्लेषण करने से रहे और बाकी कांग्रेस की भी विश्लेषण करने की कोई आदत रही नहीं है. आज के घटनाक्रम में भाजपा की जीत उतनी बड़ी नहीं है जितनी कांग्रेस की हार है. यकीन मानिए इंदौर की इस फजीहत के बाद भी कई कांग्रेसी चेहरे खुश हें और वजह यह कि वे जीतू पटवारी को गृहनगर में उनके ही विश्वसनीय द्वारा दिया गया सबक है. इस स्क्रिप्ट के पीछे जाएंगे तो कांग्रेस के कई हाथ नजर आएंगे जो अब बम के फुस्स होने पर तालियां बजा रहे हैं. जिन्हें शुरु से बम पर शंका थी वे मान रहे थे कि यदि ये पर्चा वापस भी ले लें तो डमी उम्मीदवार तो बना ही रहेगा लेकिन यहां तो डमी ने भी अपना नाम तब वापस ले लिया जब बम का पर्चा स्वीकृत हो गया यानी बाकी बचे 20 उम्म्ीदवार भले भाजपा को चुनौती दें लेकिन इंदौर में कांग्रेस की तरफ से भाजपा को कोई चुनौती नहीं है.