Ayodhya की राजनीतिक कहानी कैसे पलट गई
सोशल मीडिया पर कल के लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद यदि कोई नतीजा सबसे ज्यादा चर्चा में है तो वह अयोध्या की सीट है. 543 सीटों के नतीजों में न जाने कितने उलटफेर हुए हैं लेकिन अयोध्या को उदाहरण की तरह देखा जाना शायद स्वाभाविक भी है और सवाल यही उठ रहा है कि ‘मंदिर बनवाने वाले’ हार कैसे गए और ‘कारसेवकों पर गोली चलवाने वालों’ को जनता ने जिता कैसे दिया. दरअसल हम दूर से बैठ कर बहुत जनरलाइज कर जाते हैं चीजों को, ठीक है यहां आबादी 80 प्रतिशत हिंदू है और यह भी कि राम मंदिर से लेकर हवाई अड्डे तक और चौड़ी सड़कों से लेकर लाखों की संख्या में आने वाले श्रद्धालूओं का अंतिम फायदा यहां रहने वालों को मिलेगा लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यहां के लोगों ने राममंदिर के नाम पर काफी कुछ सहा है. वे लोग जिन्होंने कारसेवकों की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, उन्हें ही मंदिर बनने के दौरान सबसे ज्यादा दंश झेलने पड़े.
नागरिकों को दुश्मन समझता रहा प्रशासन
प्रशासन तो जैसे मनमानी पर आमादा रहा और यह तक नहीं देखा गया कि अभी चल रही रोजी रोटी की बिना वैकल्पिक व्यवस्था दिए या उचित हर्जाना दिए किसी को कैसे उजाड़ दिया जाए. यहां के नागरिकों से पूछें तो वे कहते हैं कि सीएम यहां अक्सर मौजूद होते थे लेकिन उन तक एक भी वह दर्द भरी आवाज नहीं पहुंच पाती थी जो किसी की चलती रोजी छिनने से निकलती है. प्रशासन ने तय कर लिया था कि नागरिकों को तो भरोसे में लेना ही नहीं है और प्रशासनिक आदेश ऐसे निकल रहे थे मानो अयोध्यावासी नागरिक नहीं उनके दुश्मन हों. हर समस्या का हल बुलडोजर नहीं हो सकता यह तय है लेकिन प्रशासन ने तय कर लिया था कि बुलडोजर से ही हर समस्या का हल निकाला जाएगा और यदि काेई रास्ते मूें आएगा तो उसको बुलडोज कर दिया जाएगा. ऐसा नहीं कि समाजवादी पार्टी के पक्ष में कोई लहर रही हो लेकिन सुनवाई न होने का दर्द या तो लल्लू की अनुसनी पर सपा के पक्ष में वोट देकर निकला या यह सोचकर लोग वोट देने ही नहीं गए जब आप चार साै पाार हो ही रहे हैं तो काहे हमें धूप में वोट देने जाना है जी? अयोध्या खुश है कि यहां बहुप्रतीक्षित राममंदिर बना, सड़कें वैसी हो गईं जैसी कभी सोची भी नहीं गई थीं और चौराहे ऐसे जगमग कि कमाल लेकिन इन सबके पीछे जिन्हें बेदखल होना पड़ा, उनसे किसी ने दर्द नहीं पूछा.जब अयोध्या में बड़े बड़े होटल वालों से लेकर सुपर स्टार तक जमीन खरीद कर भाव आसमान पर किए दे रहे हों तब छोटी सी दुकान में से आधा हिस्सा सरकार दादागिरी से ले ले और अधिगृहीत जमीन पर मिले आधे अधूरे और सरकारी भाव वाले हर्जाने से वह सौ फीट जमीन न खरीद पाए तो गुस्सा आखिर कहां निकलता? माना कि सैकड़ों साल की प्रतीक्षा के बाद बने राम मंदिर और देशभर में चली उस भक्ति की लहर में अयोध्या की सीट हारना बुरे सपने जैसा है लेकिन एक बार जरा अयोध्या वालों से समझने की कोशिश भी कीजिए कि उन्होंने यह रास्ता क्यों चुन लिया.