August 6, 2025
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Analysis राहुल दो जगह से प्रियंका-रॉबर्ट कहीं से नहीं, क्यों?

क्या हाल है क्या दिखा रहे हो…

जयराम रमेश इन दिनों कम से कम कांग्रेस के तो चाणक्य बने हुए हैं और जब उनसे पूछा गया कि आखिर प्रियंका को टिकट क्यों नहीं मिला तो जवाब आया कि चूंकि प्रियंका स्टार प्रचारक हैं असलिए हम नहीं चाहते कि वो अपनी सीट पर ही उलझ जाएं और वो तो यूं भी किसी भी उपचुनाव से संसद में पहुंच सकती हैं. पहली नजर में यह बड़ा मासूम सा बयान लगेगा लेकिन इसके पीछे जरा सा तर्क लगाएं तो पता चलेगा कि मामला इतना सीधा है नहीं. पहला सवाल तो यही कि यदि प्रियंका स्टार प्रचारक हैं तो क्या राहुल नहीं हैं? और यदि वो भी स्टार प्रचारक हैं तो उन्हें एक छोड़कर दो दो जगह से टिकट देकर क्या उन्हें उनकी सीटों पर उलझाया गया है? यानी कांग्रेस चाहती है कि प्रियंका पूरे देश में प्रचार करें और राहुल अपनी सीटों तक सीमित हो जाएं? जयराम रमेश बेहद कुशल और कुछ हद तक शातर राजनेता हैं ऐसे में उनके बयान का मासूम अर्थ तो पहली नजर में दिखेगा लेकिन इसके गहरे मतलब निकालने हों तो ऐसे सवाल पूछने ही होंगे. जब रमेश कहते हैं कि प्रियंका तो किसी भी उपचुनाव से सांसद बन जाएंगी तो फिर सवाल यही है कि क्या यह बात राहुल पर लागू नहीं होती? संदर्भ के साथ देखें तो यह बात सही भी लगेगी कि अपनी परंपरागत और ऐसी सीट राहुल हार गए जिसके लिए कहा जाता था यहां से कांग्रेस गधे को भी खड़ा करे तो वह जीत जाएगा. यानी रमेश का कहना है कि जो काम प्रियंका के लिए बाएं हाथ का खेल है वह राहुल के लिए मुश्किल है, वैसे रमेश से अगला सवाल तो यह भी बनता था कि अब तक कितने उपचनावों में प्रियंका को लड़वा कर सांसद बना दिया गया जबकि वो तो शायद राहुल की दीदी हैं यानी साल दो साल बड़ी ही हैं लेकिन राहुल कितनी बार सांसद बन गए और प्रियंका अब तक संसद के बाड़े तक भी नहीं पहुंची हैं. तर्क को ज्यों का त्यों भी मान लें तो पूछा जा सकता है कि स्टार प्रचारक होने के नाते प्रियंका को पार्टी टिकट नहीं दे रही थी तो उनके पति तो स्टार छोड़िए सामान्य प्रचारक भी नहीं हैं और वो तो अमेठी से लेकर हरियाणा की सीटों तक कहीं से भी लड़ने की सार्वजनिक इच्छा जता चुके थे. कांग्रेस ने केएल शर्मा पर भरोसा किया लेकिन वाड्रा को किनारे कर दियातो कोई तो वजह होगी. सवाल तो कई बनते हैं जैसे प्रियंका का कद पिछले लंबे समय से कभी ज्याेतिरादित्य सिंधिया के बराबर कर उदिया जाता है तो कभी उन्हें सत्यनारायण पटेल के बराबर का पद दे दिया जाता है और यदि वो पार्टी में महासचिव बनती भी हैं तो उनके पास कोई जिम्मेदारी नहीं होती. कुछ लोगों का कहना है कि प्रियंका अपने भाई के साथ हर जगह मौजूद नजर आती हैं इसलिए इस परिवार में दो फाड़ होने की बात गलत है, शायद ऐसे लोगों को पता ही नहीं है कि राजनीति भी फिल्मों की तरह ‘मेक बिलीव’ का खेल है. रायबरेली वालों के सामने परिवार जाकर साथ खड़ा होता है ताकि आम संदेश यहिी जाए कि सब ठीकठाक है. अंत रमेश के एक और बयान से करते हैं जिसमें उन्होंने कहा कि प्रियंका स्वाभाविक नेता हैं, इस बात को भी पहले तो उसी मासूमियत से पढ़िए लेकिन फिर इसके पीछे लिखी इबारत पर जाइये और आप पाएंगे कि कहा जा रहा है राहुल स्वाभाविक और गंभीर नेता नहीं हैं. अब उन लोगों के बयान भी साथ साथ पढ़िए जो बता रहे हैं कि यदि किसी ने प्रियंका से बात की तो रराहुल खेमा उसे दरकिनार कर डालने में देर नहीं लगाता था. दरअसल कांग्रेस के लिए जो अब भी दीवानापन कायम रखे हुए हैं उन्हें सिर्फ तीन घटनाएं दिमाग में रखनी चाहिए इंदौर के प्रत्याशी ने कहा कि मैंने पैसे देकर टिकट खरीदी और यह प्रत्याशी जीतू पटवारी का करीबी था यायनी राहुल गांधी से सिर्फ एक कदम दूर, तो ‘सौदा’ किससे हुआ होगा? वहीं पुरी की प्रत्याशी ने कहा कि मुझे टिकट देते हुए भरोसा दिलाया गया था कि पार्टी पैसे भी देगी लेकिन पैसे नहीं मिले इसलिए मैं टिकट छोड़ रही हूं. तीसरा मामला अमेठी से अब प्रत्याशी बने केएल शर्मा का है जिन्होंने ‘मालिक’ के लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा के प्रत्याशी से कहा था कि तुम्हें पार्टी से 43 लाख रुपए दिला दूंगा लेकिन सिर्फ 12 लाख दिए गए जबकि पार्टी से पूरे पैसे निकाले गए थे. कुल जमा सारा मामला पैसे से आकर पैसे पर खत्म हो रहा है और वाड्रा या कहें प्रियंका को बता दिया गया है कि यस बैंक वाले राणा से लेकर डीएलएफ डील तक मिस्टर वाड्रा ने अच्छा पैसा बना लिया है इसलिए अब इधर सीधी राजनीति में टांग अड़ाने का नहीं. प्रमोद कृष्णम और संजय निरुपम से लेकर अरविंदर लवली तक की बातें भी सुनते रहिए इस संदर्भ में…