USA से Deport हुई रंजनी और उसके चालीस साथी
फुलब्राइट स्कॉलरशिप से पढ़ रही थीं लेकिन इसी बीच फिलिस्तीन का दर्द जाग गया
भारत में जब 2014 का चुनाव चल रहा था तब कई बड़ी हस्तियों ने कहा था कि यदि मोदी प्रधानमंत्री बन गए तो हम भारत में नहीं रहेंगे और कमोबेश ऐसा ही अमेरिका में हुआ जब ट्रंप के सत्ता में आने पर देश छोड़ देने वाले कुछ लोग सामने आए. अब फर्क देखिए कि भारत के वो लोग तो तीसरे टर्म में मोदी के आ जाने के बाद भी देश में ही रह रहे हैं लेकिन ट्रंप के राज में ऐसा नहीं है. जिन्होंने देश छोड़ देने की बात कही थी उन्हें ही नहीं, उन सभी लोगों को बेदखली का फरमान दे दिया गया है जिन्हें कुछ ज्यादा ही लिबरल होने की सनक सवार है. अब इनसे मिलिए ये सूटकेस लेकर अमेरिका से निकल रही रजनी श्रीनिवासन हैं.
रंजनी श्रीनिवासन कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्बन प्लानिंग में पीएचडी कर रही थीं और फुलब्राइट स्कॉलरशिप के साथ मजे से पढ़ाई चल रही थी यानी रहने और खाने तक का खर्च अमेरिकीर सरकार उठा रही थी लेकिन इसी बीच मोहम्मद खलील नाम के बंदे के संपर्क में आने के बाद रंजनी रेडिकल हो उठीं. जब खलील ने इजराइल के खिलाफ और फिलिस्तीन के पक्ष में मारधाड़ वाला एक प्रदर्शन कोलंबिया यूनिवर्सिटी में रखवाया तो रंजनी कुछ ज्यादा ही उत्साही हो गईं और उन्होंने हैमिल्टन हॉल पर कब्जा करते हुए पूरे कैंपस को फिलिस्तीनी समर्थन वाले नारों से पाट दिया. हॉर्वर्ड से डिजाइन में मास्टर्स और कोलंबिया से अर्बन प्लानिंग में एमफ़िल के सपने रखने वाली रंजनी को पता नहीं था कि बिडेन अंकल के जाते ही ट्रंप ऐसे धमाके के साथ आएंगे और एक एक लिबरल को चुन चुनकर कहेंगे कि या तो अपने खर्चे पर सेल्फ डिपोर्ट हो जाओ या मुकदमे का सामना कर सजा के लिए तैयार रहो. रंजनी ने सेल्फ डिपोर्ट के लिए लांच की गई एप पर डिपोर्ट रिक्वेस्ट डाली, सूटकेस जमाया और अब यूएसए से सदा सर्वदा के लिए निकाल दी गईं क्योंकि ट्रंप ने ऐसे लोगों के वापस आ पाने के रास्ते भी बंद कर दिए हैं. रंजनी अकेली नहीं हैं, उनके साथ 40 दूसरे विदेशी विद्यार्थियों को भी उन्होंने यही समझाया कि चुपचाप पतली गली से यूएस छोड़ देने में ही भलाई है वरना न जाने कितना समय बदनाम ग्वांटेनामो बे जैसी जेल में गुजारना पड़ जाए.