Musk- Trump ये क्या हुआ, कैसे हुआ, क्यों हुआ
- आदित्य पांडे
आखिर एलन मस्क ने अमेरिकी सिस्टम को चुनौती देते हुए तीसरी पार्टी बना ही ली, अमेरिकी सिस्टम ने रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स से इतर कुछ कुछ देखा ही नहीं. इसलिए तीसरी पार्टी अमेरिका का बन जाना ही किसी अजूबे से कम नहीं है. मस्क के हाथ में सोशल मीडिया का सबसे मारक हथियार है जिसका नाम कभी ट्विटर था और अब जो एक्स है. जिसके दुनिया में 600 मिलियन और अकेले यूएसए में पचास मिलियन से ज्यादा यूजर हैं. मस्क ने जिन दो ताकतों के सहारे सीधे ट्रंप से पंगा लेने की कोशिश की है उसमें एक है उनका मनी पॉवर जिसमें वो दुनिया के एक नंबर के अमीर हैं और दूसरा है सोशल मीडिया का सॉफ्ट पॉवर जिसके बड़े हिस्से के वो हुक्मरान हैं. जाहिर है दुनिया के सबसे ताकतवर पद पर बैठे व्यक्ति के सबसे अमीर और सोशल मीडिया के एक बड़े हुक्मरान से पंगा लेने वाली हालत में मामला रोचक हो गया है और समझने की कोशिशें जारी हैं कि अमेरिका के लिए यह लड़ाई कौन सी दिशा और दशा तय करती है. जब तक इसमें नए मोड़ आते हैं तब तक तो यही बात पूछी जा रही है कि मस्क और ट्रंप की राहें कैसे मिलीं और फिर सौ दिन से भी कम समय में दोनों का राजनीतिक तलाक भी हो गया और बात इस हद तक पहुंच गई कि मस्क को डिपोर्ट कर साउथ अफ्रीका पहुंचाने की बात होने लगी, उनकी गाड़ियां खटारा बताई जाने लगीं और यह दावा तक कर दिया गया कि अब तक की सबसे बड़ी सब्सिडी मस्क को मिली है जिसकी जांच करनी ही होगी. दूसरी तरफ मस्क भी इस हद तक बोलने लगे हैं कि जिसने भी ट्रंप को उनकी जिद वाला खतरनाक बिल पास करने में मदद की है उन सभी के सामने हमारी पार्टी के उम्मीदवार खड़े किए जाएंगे क्योंकि डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन तो एक ही हैं, इनमें कोई फर्क नहीं रह गया है. जब मामला इतना बिगड़ गया है तो यह भी मसझना जरुरी है कि क्या वाकई ट्रंप और मस्क के बीच अच्छी केमेस्ट्री बनी भी थी या दोनों ही एक दूसरे से फायदा निकालकर धोखा देने की नीयत से ही जुड़े थे. जब आप चुनाव के पहले के इनके गठबंधन को गौर से देखें तो पता चलेगा कि मस्क ने तब भी घाघ राजनीतिज्ञ की तरह चुनावी हवा को समझा और जब उन्होंने पाया कि चुनाव में ट्रंप के जीतने के ही ज्यादा आसार हैं तो उन्होंने इस जीत को महाजीत बनाने में भूमिका अदा की, जमकर पैसा भी बहाया. ट्रंप के लिए राहत की बात यह थी कि मस्क जैसा धनाढ्य उनके चुनावी प्रचार पर न सिर्फ खर्च कर रहा है बल्कि काम काज छोड़कर प्रचार में खुद भी हिस्सा ले रहा है. ट्रंप को चुनाव में सीधा पैसा आता दिख रहा था और मस्क को यह भरोसा था कि वो एक बार ट्रंप का दिल जीत लें तो फिर सारी नीतियां उनके हिसाब से बन ही जाएंगी यानी आज किए गए इन्वेस्टमेंट पर अच्छे रिटर्न की गारंटी बतौर उन्होंने ट्रंप को साथ दिया. ट्रंप हमेशा से गैर परंपरागत ऊर्जा के खिलाफ रहे हैं और इलेक्ट्रिक गाड़ियां उनकी पसंद कभी नहीं रहीं इलक्ट्रिक कार ही बनाती है. मस्क के दिमाग में था कि वो ट्रंप को इस बात के लिए मना लेंगे कि ये गाड़ियां ही भविष्य की हैं और गैसोलीन वाली गाड़ियों को अलविदा कह दिया जाना ही बेहतर होगा लेकिन बात सिर्फ टेस्ला की गाड़ियों की ही होती तो शायद सुलझ भी जाती. बात तब बिगड़ गई जब ट्रंप ने चुनावी चंदे के बदले मस्क को एक ऐसा काम सौंप दिया जिसमें उन्हें ‘एब्सोल्यूट पॉवर’ चाहिए था और वह था सरकारी महकमों में बचत के लिए कदम उठाने वाला विभाग DOGE.
मजे की बात यह रही कि यह विभाग मस्क को सौंपते ही ट्रंप को समझ आ गया कि उनसे गलती हो गई है और उन्होंने तुरंत इसे सुलझाने की कोशिश करते हुए विवेक रामास्वामी को मस्क के बराबर या कहें अधिकारों में से आधे दे देने की बात कर दी. मस्क और ट्रंप के बीच यहां से तनातनी का बड़ा एपीसोड शुरु हो गया और मस्क एंड कंपनी ने DOGE चीफ होने की बात को इस कदर मुद्दा बना दिया कि विवेक रामास्वामी ट्रंप के शासन काल में एक दिन भी मस्क की बराबरी से इसमें काम नहीं कर सके और आखिर उन्होंने इस पद से तौबा ही कर ली. इस विभाग की जिम्मेदारियों को मस्क ने कुछ ज्यादा ही गंभीरता से लेते हुए सरकारी महकमों में इस तरह नौकरियों की छंटनी और कसावट का काम चलाया और वो सभी जो इसके शिकार हुए ट्रंप प्रशासन पर चिढ़ने लगे. मस्क ने हरसंभव कोशिश की कि वो ट्रंप को उन कुछ मुद्दों पर मना लें जिन्हें लेकर मतभेद थे लेकिन ट्रंप अपने विचारों पर ऐसे कायम थे कि न उनके बिग ब्यूटीफुल बिल के खिलाफ एक भी शब्द सुनने को तैयार थे और न यह मानने को कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों को लेकर कम से कम एक बार तो विचार किया जाए. इस बीच और भी छुटपुट घटनाएं होती रहीं जो भले मूल मुद्दा न रही हों लेकिन जिन्होंने दरार को बड़ा करते जाने में बड़ी भूमिका निभाई. याद कीजिए जब ट्रंप व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिल में पत्रकारों से बात करते थे तो मस्क अपने कंधे पर अपने बेटे एक्स को बैठाए अनौपचारिक होने की सारी सीमाएं लांघ जाते थे और इस सबके बीच यदि मस्क का बेटा पूरी प्रेस के सामने मासूमियत में ही सही बोल जाए कि ‘आप राष्ट्रपति नहीं हो’… मस्क इसे हंस कर टाल जाते लेकिन ट्रंप को यह बात इसलिए चुभ ही जानी थी क्योंकि चुनाव के समय से संदेश यही जा रहा था कि ट्रंप की कमान तो मस्क के ही हाथों में रहनी है. मस्क और ट्रंप मेक अमेरिका ग्रेट अगेन वाले नारे से शुरु हुए थे लेकिन अब इन दोनों के रास्ते ही नहीं नारे भी अलग हो चुके हैं. ट्रंप अब पूरी तरह से मस्क पर हमलावर हैं और ‘दुकान’ बंद करवाने की बात कह रहे हैं, मस्क भी पलटवार में पीछे नहीं हट रहे हैं और ट्रंप को हरवाने के लिए किसी हद तक जाने को तैयार हैं. ट्रंप ने कई स्तरों पर कई मोर्चे खोल रखे हैं और उन्हें नोबेल के शांति पुरस्कार की बेइंतहा चाह है लेकिन जिस व्यक्ति को उन्होंने पॉवर सेंटर में भरपूर ताकतें दे दी हों और वही विरोध में आ खड़ा हुआ तो सारी प्लानिंग और सारे सपनों को रिसेट करना ही होगा. जनवरी से व्हाइट हाउस में शुरु हुई ट्रंप की दूसरी पारी अभी छह महीने ही पूरे कर सकी है और ट्रंप से लेकर मस्क तक की सारी नीतियां या कहें रणनीतियां रिसेट हो रही हैं. इस सबसे भी बढ़कर यह कि पूरी दुनिया को अपने हिसाब से चलाने वाली अमेरिकी व्यवस्था में भी तीसरी पार्टी ने आमद देकर अब तक की परंपराओं को तो झटका दे ही दिया है. आने वाला समय भी इस हिसाब से तो रोचक रहेगा ही कि हम सुपर पॉवर के लिए दो सुपर पॉवरफुल व्यक्तियों का पंगा देखने वाले हैं और इससे अमेरिकी परंपराएं भी रिसेट होंगी यह भी तय मानिए.