June 1, 2025
वर्ल्ड

Gaza पर रोए जरुर रियाद लेकिन हकीकत नहीं बताई

अमेरिका से मनजी की कलम बता रही है कि गाजा में मानवीय सहायता न मिलने पर रोने की हकीकत क्या है

फिलिस्तीनी राजदूत रियाद मंसूर गुरुवार को यूएन में गाजा में बच्चों के हालात बताते हुए फूट-फूट कर रो पड़े, बताया कि कई बच्चे भूख से मर रहे हैं. इजराइल की तरफ इशारे से उन्होंने कहा कि कोई ऐसा कैसे कर सकता है कि भूख और आगे फिलिस्तीनी बच्चों को निगल रही है लेकिन इजराइल पर बार बार लगने वाले आरोप कि वह फ़िलिस्तीन में रसद नहीं पहुँचने दे रहा है… की हकीकत क्या है जरा इस नजरिए से भी देखें. गाजा में भुखमरी एक आम नैरेटिव है. फ़िलिस्तीन के समर्थक हैं, वो क्रन्दन करते है. जो फ़िलिस्तीन के विरोधी है, वो हंसते है… लेकिन हकीकत क्या है? क्या वाक़ई में फ़िलिस्तीन को खाना नहीं मिल रहा है?

इसका उत्तर यूएई के एक प्रख्यात पत्रकार और एनालिस्ट अमजद तहा के इस ट्वीट से समझें.
आपके सुभीते के लिए इस ट्वीट का हिंदी अनुवाद ये है-
मुझे पता है कि आपको तर्क पसंद नहीं है. 7 अक्टूबर 2023 से, ग़ाज़ा को 3 लाख मीट्रिक टन से अधिक मानवीय सहायता मिली है, जो 22,000 से अधिक ट्रकों के माध्यम से केवल 2.1 मिलियन लोगों की आबादी के लिए पहुँचाई गई है. इसका मतलब है कि कुछ ही महीनों में प्रति व्यक्ति लगभग 143 किलोग्राम सहायता. यदि हम मान लें कि एक किलोग्राम खाद्य सामग्री में औसतन 3,500 कैलोरी होती है (जो आपातकालीन राशन के लिए मानक है), तो यह सहायता कुल मिलाकर 1.05 ट्रिलियन से अधिक कैलोरी प्रदान करती है. ग़ाज़ा की जनसंख्या को प्रतिदिन लगभग 4.2 अरब कैलोरी की आवश्यकता होती है (प्रति व्यक्ति 2,000 कैलोरी के हिसाब से), तो यह सहायता अकेले ही पूरी आबादी को लगातार 250 से अधिक दिनों तक तीन समय का भोजन और मिठाई सहित खिलाने के लिए पर्याप्त है. अगर भोजन की मात्रा बढ़ाकर दिन में चार भारी भोजन कर दी जाए (जो किसी भी मानवीय न्यूनतम से कहीं अधिक है), तब भी ग़ाज़ा की आबादी के लिए यह सहायता लगभग 190 दिनों तक पर्याप्त होगी.

अगर इसकी तुलना यूरोप के शहरों से करें, तो 2.1 मिलियन आबादी वाला पेरिस शहर इसी मात्रा की कैलोरी से आठ महीने तक पूरी तरह खिलाया जा सकता है. बर्लिन, जिसकी आबादी 3.6 मिलियन है, को पांच महीने और रोम (2.8 मिलियन) को छह महीने तक यह सहायता पर्याप्त होती. इस बीच, अफ्रीका के कई देशों में वास्तविक अकाल की स्थिति है, जिन्हें न तो इतना ध्यान मिलता है और न ही इतनी सहायता. दक्षिण सूडान, जहाँ 6.3 मिलियन लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, ग़ाज़ा की प्रति व्यक्ति सहायता का एक चौथाई से भी कम पाते हैं. सोमालिया, जहाँ 7 मिलियन से अधिक लोग ज़रूरतमंद हैं, को इससे भी कम सहायता मिलती है—अनुमानों के अनुसार प्रति व्यक्ति केवल 30 डॉलर की सहायता मिलती है, जबकि ग़ाज़ा में यह लगभग 133 डॉलर प्रति व्यक्ति है. चाड, नाइजर और बुर्किना फासो को इतनी कम सहायता मिलती है कि वे वैश्विक न्यूनतम पोषण स्तर तक भी नहीं पहुँच पाते.

अगर हम ग़ाज़ा को एक प्रतीकात्मक रेस्टोरेंट मानें, तो यह ऐसा है मानो हर दिन 400 ट्रक यहाँ सप्लाई दे रहे हों, हर गली में ‘गौर्मे’ स्तर की लॉजिस्टिक्स पहुँच रही हो, जबकि अफ्रीका के युद्धग्रस्त क्षेत्र पत्तियाँ बीनकर और गंदा पानी पीकर गुज़ारा करने को मजबूर हैं—बिलकुल बिना किसी मीडिया हेडलाइन या हैशटैग के.

अब यह भूख का मुद्दा नहीं रहा. यह एक पक्षपाती नैरेटिव को ज़रूरत से ज़्यादा पोषित करने का मामला बन गया है. जब मानवीय सहायता भेजी जाती है, तो यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि यह वास्तव में लोगों तक पहुँचे और आतंकवादी संगठन द्वारा नियंत्रित इलाक़े को उन संसाधनों से न भर दे जो अन्य संकटग्रस्त क्षेत्रों को नहीं मिलते. इस बीच, बर्मिंघम (यूके) में स्थित ‘इस्लामिक रिलीफ’ जैसे समूह तटस्थता का दावा करते हैं, जबकि उनकी सहायता सुविधा से गायब होकर हमास की सुरंगों और गोदामों में जा पहुँचती है. टिग्राय, नाइजर और सूडान जैसे स्थानों में वास्तविक भूख चुपचाप मर रही है—बिना किसी कैमरे, बिना किसी रोशनी के—जबकि फ्रांस और यूके जैसे देश एक ऐसे संघर्ष को ईंधन दे रहे हैं जिसे वे हल करने का दिखावा कर रहे हैं. अमजद तहा साफ़ बतला रहा है कि फ़िलिस्तीन को मनो भर रसद जा रही है और फिर भी नैरेटिव ऐसा चल रहा है जैसे वहाँ अक़ाल पड़ा हुआ है. नैरेटिव बनाने में दूसरा पक्ष कितना हुशियार है.