June 4, 2025
वर्ल्ड

Chess में गुकेश ने नंबर वन मैग्नस कार्लसन को हराया

कार्लसन ने गुकेश के वर्ल्ड चैंपियन बनने पर नाखुशी जताई थी अब बुरी तरह उन्हीं से हारे

चेस का वर्ल्ड चैंपियन बनते हुए जब डी गुकेश जीते तो नंबर वन खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन ने मजाक उड़ाने के अंदाज में यह कहा था कि अब वर्ल्ड चैंपियन बनने की योग्यता भी कम होती जा रही है. नॉर्वे चेस 2025 में वही मैग्नस कार्लसन अब गुकेश के सामने थे और गुकेश ने न सिर्फ उन्हें मात दी बल्कि एक ऐसी मात दी जिसे अंग्रेजी में ह्युमिलिएटिंग कहा जाता है. गुकेश ने अपना वर्ल्ड चैंपियन होना तो साबित किया ही कार्लसन को यह भी बता दिया कि असली चैंपियन का व्यवहार कैसा होना चाहिए. हारते हुए कार्लसन बेहद हैरान थे और आखिरी चाल पर मात मिलते ही उन्होंने टेबल पर इतनी जोर से मुक्का मारा कि सारा बोर्ड का सेटअप बिगड़ गया वहीं धीर गंभीर तरीके से बैठे गुकेश से उन्होंने हाथ भी भद्दे तरीके से ही मिलाया और जाने लगे इस बीच गुकेश कुर्सी से उठे और कुछ दूरी पर पूरे गेम पर गंभीरता से विचार करते दिखे. कार्लसन ने जाते जाते जरुर गुकेश का कंधा छूकर अपने बुरे व्यवहार की भरपाई करने की कोशिश की लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और सभी समझ चुके थे कि कार्लसन को हारने का दुख तो है ही साथ इस बात का दुख ज्यादा है कि जिस गुकेश को वे हल्के में ले रहे थे उसी ने उन्हें बुरी तरह मात दी. छठें राउंड में जिस तरह से कार्लसन हारे हैं उससे तो लग रहा है कि अब उनका ध्यान निजी खुन्नस में ज्यादा है और खेल पर कम.

इस बीच गुकेश की जीत को नॉर्वे के ही रहने वाले प्रवीण झा ने बेहद दिलचस्प तरीके से देखते हुए विश्लेषण किया है. वे कहते हैं कि मैंने इसे एक कॉन्सपिरेसी थ्योरी की तरह लिखा था कि किस तरह कॉस्परोव ने योजनाबद्ध ढंग से कार्लसन को विश्वनाथन आनंद को हराने के लिए तैयार किया. उसमें निष्कर्ष यह भी था कि शतरंज की सत्ता तय करती है कि दुनिया की सत्ता कैसे घूम रही है. जैसे दशकों तक रूस की सत्ता रहने के बाद जब बॉबी फिशर जीतते हैं तो शीत युद्ध में भी पासे पलटने लगते हैं. उसके बाद आनंद एक नया पटाक्षेप लाते हैं, जब दुनिया और शतरंज की बिसात पर एशियाई शक्तियों का बोलबाला शुरू होता है. नॉर्वे के मैग्नस कार्लसन का आना पुनः यूरोप की ओर ले जाने का प्रयास रहा, लेकिन भारत एशिया का प्रतिनिधित्व करते हुए अब काफ़ी मजबूत शक्ति बन चुका है. अपनी हार को बर्दाश्त न कर पाना या या गुस्से में बिसात पटक देना खिलाड़ियों में कोई नयी बात नहीं, लेकिन नॉर्वे के अखबार में यह लिखा है- ‘हारे हुए कार्लसन द्वारा ऐसा करना अभूतपूर्व था. शतरंज के इस फॉर्मैट में किसी ने ऐसी हरकत कभी नहीं की.’ यहाँ से यह घूम-फिर कर शतरंज से इतर हो जाता है। वापस रेक्याविक की उसी बिसात की ओर…शतरंज दुनिया का सबसे खतरनाक खेल है, जो आदमी को अंदर से तोड़ डालता है. संस्कृत में एक कहावत है कि चिता तो सिर्फ़ शरीर जलाती है, चिंता आत्मा ही जला देती है. शतरंज का वही असर है.