Bangladesh के बहाने प्यादे से उन्हें चलने वाले दिमागों तक की खोज
जो बांग्लादेश की घटनाएं भारत में होने की कल्पनाओं पर खुश हैं उन्हें ट्रैक करना ही होगा
बांग्लादेश में जो हुआ और जो हो रहा है उसे लेकर वे सब चुप हैं जिन्हें फिलिस्तीन में भाईचारा दिखाने के लिए ‘ऑल आइज ऑन राफा’ के न पोस्टर बनाने में देर लगी और न उन्हें शेयर करने में लेकिन बांग्लादेश को लेकर बॉलीवुड के कथित सितारों तक के बीच चुप्पी छा गई है. इनके पोस्टर बनाने वाले छुट्टी पर चले गए हैं और इन्हें अहसास हो रहा है कि जिस सोशल मीडिया पर ये अपनी बात कहते रहे हैं उस पर कुछ भी डालना फिजूल का काम है.
कथित पत्रकारिता करने वाले कुछ दिग्गजों का मानना है कि बांग्लादेश में मरने वाले हिंदुओं की चिंता इसलिए नहीं करनी चाहिए क्योंकि वो हमारे न होकर बांग्लादेशी हैं. सबसे ज्यादा खुश तो वे हैं जिन्हें प्रधानमंत्री के भागने और फिर उनके बंगले से एक एक सामान चोरी करने वाले वे युवा लग रहे हैं जिन्हें शक्ति का अहसास हो गया है. जब इतना कुछ हो ही रहा है तो भला वो लोग कैसे खुश न हों जिन्हें इस सबके भारत में भी दोहराए जाने की संभावना नजर आ रही है. बस आप इस जमात को देखते रहिए जो इन हरकतों के भारत में होने की कल्पना भर से पुलक पुलक हो रहे हैं और ये हर्षित होने वाले सिर्फ वो नहीं हैं जिन्हें किसी दूसरे धर्म, जाति या समाज का इस धरती पर होना कतई नापसंद है बल्कि वे भी हैं जो सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील बतौर खड़े होते हैं और आतंक फैलाने वालेां की पैरवी करते हैं, वे भी जो केंद्र में मंत्री रहकर विदेश से लेकर पढ़ाई तक की नीतियां बनाते रहे हैं.
सलमान खुर्शीद ने खुलकर यह बात कह दी तो तुरंत पार्टी ने उनके बयान से दूरी बना ली लेकिन क्या खुर्शीद ऐसा बयान किसी बड़ी शह के बिना देने की हैसियत रखते हैं? जब सलमान यह बात बड़े नेता की हैसियत से बोल रहे थे तब मध्यप्रदेश में मंत्री रहे एक नेताजी ठीक वही बात दोहरा रहे थे यानी पार्टी ने जो एक लाइन दी थी उसे बड़े से लेकर छोटे तक सभी नेताओं को अलग अलग तरीके से दोहराना है और फिर पार्टी को कह देना है कि यह हमारी सोच नहीं है.
इन लोगों की सोच देखिए, समझ तो खैर इनमें है ही नहीं… बांग्लादेश में आरक्षण के नाम पर जो हंगामा हुआ वे भी यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि यदि उनकी मांग के हिसाब से 56 फीसदी से महज सात फीसदी कर दिया गया आरक्षण पूरी तरह भी हट गया तो कितने करोड़ छात्र फायदे में आ जाएंगे, सच यह है कि छात्रों की मांग पूरी तरह भी मान लें तो लाभान्वित होने वाले छात्र कुछ सैकड़े से ज्यादा नहीं होने वाले हैं. ऐसे में यह तर्क बेकार है कि यह छात्र आंदोलन था, यह पूरी तरह सत्तापलट की ऐसी कहानी थी जिसकी बेहद लचर स्क्रिप्ट लिखी गई थी लेकिन इसका द एंड ठीक वैसा हुआ जैसा डायरेक्टर चाहते थे.
खालिदा जिया के साथ जिनके समझौते हुए वे चेहरे कभी सामने नहीं आएंगे, छात्रों तक आग लगाने के लिए पैसे जिन खातों से पहुंचे उनके असली नाम कभी सामने नहीं आएंगे और शेख हसीना के जिन अपनों ने उन्हें धोखा दिया उनके लिए लिए आ रहे निर्देश कभी ट्रैक नहीं किए जा सकेंगे लेकिन यहां भारत में इन सभी के हिसाब किताब समझे जा सकते हैं. जो पीएम आवास में वही दृश्य दोहराते देखना चाहते हैं जो श्रीलंका और अब बांग्लादेश में देखे गए उनकी एक एक हरकत ट्रैक हो सकती है. कौन, कब, किसके साथ मिलकर ऐसे षडयंत्र रच रहा है उनकी जड़ तक पहुंचा जा सकता है और जिन्हें आग लगाने वालों में अपनी शक्ति का अहसास होने वाली फीलिंग आ रही है उनके मैगसेसे तक के रिकॉर्ड खंगाले जा सकते हैं शायद तभी यह पता चल सकेगा कि ये जाे कल्पना लोक में भारत की बर्बादी चाहने वाली गैग है उसके असली सूत्रधार कहां हैं.