Balochistan स्वतंत्र देश बनने की दिशा और आगे की राहें
बलूचों ने पाकिस्तान के चालीस प्रतिशत हिस्से पर अपना अधिकार बताते हुए खुद को स्वतंत्र देश बताया है, क्या है इसका मतलब
पाकिस्तान का एक बड़ा हिस्सा रहे बलूचिस्तान में बलूच लिबरेशन आर्मी ने कह दिया है कि अब बलूचिस्तान एक स्वतंत्र देश है और इसके लिए उन्होंने यूएन से न सिर्फ मान्यता मांगी है बल्कि जरुरी लिस्ट भी थमाई है जो देश बतौर उन्हें मान्यता मिलने पर काम की हो. हालांकि खुद को स्वतंत्र घोषित कर देने भर से औपचारिकताएं पूरी नहीं हो जातीं लेकिन यह तय है कि यह स्वतंत्र देश की तरफ उठाया गया बड़ा कदम है. बलूचिस्तान को हमेशा पाकिसतान ने सौतेले रवैए से ही साथ रखा है और सरकार में इस क्षेत्र की भागीदारी न के बराबर ही रही है जबकि पंजाब सूबे ने खूब नेता, अफसर और हुक्मरान उगले. खैबर परतूनख्वा और बलूचिस्तान विकास से कटे रहे. प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इन क्षेत्रों से पाकिसतान ने लिया तो बहुत कुछ लेकिन देने की बारी आई तो सिवा अत्याचार के कुछ नहीं मिला. पहले ही मामला बिगड़ा हुआ था और पाकिसतान ने चीन को यह क्षेत्र जैसे हचवाले कर देने के अंदाज में देने की कोशिश की तब से बात ज्यादा बिगड़ती चली गई. पाकिस्तानी हुक्मरान विद्रोहियों से कभी बात करने या उनकी समस्या सुनने तक को तैयार नहीं रहे, इन्हें सुलझाने की बात तो जाने ही दीजिए. इसमें एक और तथ्य जोड़ लीजिए कि यहां पर अहमदिया मुस्लिम बड़ी संख्या में हैं और पाकिस्तान चूंकि अहमदिया को मुस्लिम ही नहीं मानता इसलिए उनसे काफिरों की तरह व्ययवहार करना उसकी आदत बन चुकी है. पाकिस्तान में अल्पसंख्यक होने का क्या मतलब है यह आप पिछले कुछ दशकों में घटती अल्पसंख्यक आबादी के आंकड़े देखकर ही समझ सकते हैं. चीन से इस क्षेत्र के लिए भारी भरकम 62 अरब डॉलर का निवेश लेने के पीछे भी पाकी मंत्रियों की यही चाल थी कि चीनी पैसा तो पाकिस्तान के काम आए लेकिन बलूचों को कुछ न मिले. सीपैक और ग्वादर में चीनी दखल को बलूची उनकी जमीन पर कब्जे की साजिश मानते हैं. चीन की निगाह यहां के गैस, सोना, तांबा, रेडियम जैसे खनिजों पर है लेकिन पाकिस्तानी दमन के बावजूद जिस तरह से बलूची लड़े हैं वह चीन की उम्मीदों पर गाज की तरह गिरे हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल बताता है कि पिछले दस बारह साल में दस हजार से ज्यादा बलूच गायब किए गए हैं और हकीकत में यह संख्या इससे भी बड़ी है.
बलूच नेता मीर यार बलूच ने बलूचिस्तान को रिपब्लिक बलूचिस्तान यानी एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया है और कहा है कि दुनिया को भी चुप नहीं रहना चाहिए. भारत सहित अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी से समर्थन मांगते हुए उन्होंने साफ कहा है कि बलूच खुद को पाकिस्तानी कहना कभी पसंद नहीं करते थे, न करते हैं और न करेंगे. अपनी संदिग्ध मौत से पहले रक्षाबंधन के मौके पर करीमा बलोच ने मोदी से बलूचिस्तान के मानवाधिकार उल्लंघनों पर आवाज उठाने के लिए ‘भाई’ से अपील की थी लेकिन 22 दिसंबर 2020 को वो मृत पाई गईं लेकिन उनकी अपील मोदी के कानों में गूंज तो रही ही होगी, यह तय है. यदि इतिहास में देखें तो पता चलता है कि 1947 में ही बलूचिस्तान की कलात रियासत ने पाकिस्तानी होने से मना करते हुए खुद को आजाद घोषित किया था. पाकिस्तानी सेना की जोर जबरदस्ती से यह हिस्सा हमेशा पाकिस्तान में होने के नाम पर कसमसाता ही रहा है. पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम से अलग पहचान बनाने की कोशिश में बलूचिस्तान है और यदि यह पहचान स्थापित हो गई तो यह 3.47 लाख वर्ग किलोमीटर इलाके का देश होगा यानी पाकिस्तान का चालीस प्रतिशत हिस्सा हट जाएगा जबकि इसकी आबादी ड़ेढ़ करोड़ की ही होगी. पाकिस्तान चालीस फीसदी जमीन और सिर्फ छह प्रतिशत आबादी वाले इस क्षेत्र को अपने साथ जोड़े रखने के लिए किसी हद तक नीचे उतरने को तैयार है और बलूच स्वतंत्र होने के लिए जान की बाजी लगाने को भी तैयार हैं. जुलाई 1948 में अब्दुल करीम ने पाकिस्तान से बगावत का जो झंडा बुलंद किया था अब उसकी परिणति का समय करीब नजर आ रहा है. बलूचिस्तान ने बार बार पाकिस्तान से पीओके खाली कराने के भारतीय प्रयासों को भी सही बताया है और उसकी कई उम्मीदें भारत पर ही टिकी हैं.
कैसे बन सकता है अलग देश
अलग देश बनने के चार बड़े कदम में खुद की आजादी का ऐलान पहला कदम है जो बलूच कर चुके हैं. यह सीमित कदम है इसलिए अंतरराष्ट्रीय मान्यता अक्सर नहीं मिल पाती है. हालांकि दूसरे देश भले मान्यता न दें, लेकिन उसे क्षेत्रीय अखंडता और स्वायत्तता जैसी गारंटियां मिलती हैं. आजाद घोषित देश को कोई परेशान न करे व वे स्वायत्त रहें इसकी कोशिश होती है. तीसरी शर्त किसी देश का अस्तित्व तभी माना जाएगा, जब अन्य देश उससे इसी तरह संपर्क करें या मान्यता दें. इस मान्यता से ही किसी अलग इकाई की पहचान होती है. इस दिशा में सबसे बड़ा कदम होता है संयुक्त राष्ट्र की मान्यता. संयुक्त राष्ट्र से पहचान मिल जाने के बाद देश खुद को अंतरराष्ट्रीय समुदाय का पूरी तरह हिस्सा मान सकता है. बलूचों ने इस काम की भी शुरुआत कर दी है और इस बारे में यूएन महासचिव को चिट्ठी लिख दी है. यह आवेदन सुरक्षा परिषद के पास जाता है. इसके बाद यह आवेदन यूएनजीए के पास जाता है. यूएनजीए (यूनाइटेड नेशंस की गवर्निंग काउंसिल) दो-तिहाई बहुमत से मंजूरी देने से पहले देखती है कि यूएन चार्टर के तहत यह नया बना देश अपनी जिम्मेदारियां निभा सकता है तो उसे मान्यता दे दी जाती है.