August 23, 2025
वर्ल्ड

600 Million Year के जीवाश्म मिले हिमाचल की घाटी में

पृथ्वी पर प्रारंभिक जीवन को लेकर काफी खुलासे हो सकते हैं इस खोज से

हिमाचल प्रदेश में एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज से पृथ्वी पर प्रारंभिक जीवन की उत्पत्ति वाली गुत्थी खुल सकती है. टेथिस जीवाश्म संग्रहालय के संस्थापक एवं भूविज्ञानी डॉ. रितेश आर्य ने चंबाघाट क्षेत्र के जोलाजोरन गांव में अब तक मिले सबसे पुराने स्ट्रोमेटोलाइट जीवाश्म को खोजा है. यह जीवाश्म 600 मिलियन वर्ष से भी अधिक पुराना माना जा रहा है, जो प्राचीन समुद्री तल में जीवन के इतिहास पर नई रोशनी डालेगा. डॉ. आर्या के अनुसार, स्ट्रोमेटोलाइट्स सूक्ष्मजीवों की परतों से बनी चट्टानें हैं, जो कभी समुद्र के उथले भागों में बनी थीं. ये चट्टानें उस समय का प्रतिनिधित्व करती हैं जब पृथ्वी के वायुमंडल में ऑक्सीजन की कमी थी और ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता बहुत अधिक थी. इन सूक्ष्मजीवों ने धीरे-धीरे ऑक्सीजन का उत्पादन शुरू किया और पृथ्वी पर जीवन के विकास को गति दी.

इन जीवाश्मों के आधार पर डॉ. आर्य ने निष्कर्ष निकाला है कि सोलन क्षेत्र कभी टेथिस महासागर का हिस्सा था. टेथिस महासागर गोंडवाना महाद्वीप (जिसमें वर्तमान भारत, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका और अंटार्कटिका शामिल थे) और एशिया में फैला हुआ था. ये जीवाश्म न केवल भूवैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि इन्हें मानव इतिहास में आदिम जीवन की शुरुआत के प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में भी पहचाना जा रहा है. इससे पहले डॉ. आर्य ने सोलन के धरमपुर, हरियाणा के चित्रकूट और मोरनी हिल्स में भी इसी तरह के जीवाश्म खोजे थे. हालांकि, उनका कहना है कि चंबाघाट में पाए गए जीवाश्म अपनी विशिष्ट स्तर-रचना के साथ एक अलग पर्यावरणीय स्थिति की ओर संकेत करते हैं. ओएनजीसी के पूर्व महाप्रबंधक डॉ. जगमोहन सिंह के अनुसार ये जीवाश्म हमें उस युग में ले जाते हैं जब पृथ्वी पर जीवन पहली बार आया था. पंजाब विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. अरुण दीप आहलूवालिया ने भी इन जीवाश्मों के वैज्ञानिक एवं संरक्षण महत्व पर प्रकाश डाला है. इस ऐतिहासिक खोज की पृष्ठभूमि में डॉ. आर्य ने सोलन जिला के उपायुक्त और पर्यटन विभाग को पत्र लिखकर मांग की है कि इस स्थल को ‘राज्य जीवाश्म विरासत स्थल’ घोषित किया जाए. उनका मानना ​​है कि इस कदम से विज्ञान, पर्यावरण संरक्षण और भू-पर्यटन को बड़ा बढ़ावा मिलेगा. डॉ. आर्य के अनुसार हिमाचल प्रदेश की धरती में लाखों वर्षों का सामुद्रिक इतिहास समाया हुआ है, जो मानव मात्र के लिए एक बहुमूल्य खजाना है.