July 8, 2025
देश दुनिया

Zakir Hussain- तबला के उस्ताद की याद!

यतीन्द्र मिश्रलेखक, विचारक, संगीत मर्मज्ञ

उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब से सामने परिचय के संदर्भ में एक बार की ही मुलाक़ात है, जो आज भी नहीं भूलती। उस्ताद अमीर खां के जन्म शताब्दी वर्ष 2012 में मुंबई के एन.सी.पी.ए.में एक भव्य आयोजन में वे सामने बैठे थे। किशोरी आमोनकर जी मुख्य अतिथि के तौर पर आईं थीं। मुझे आरंभिक बीज- वक्तव्य देना था, जिसके बाद उनका परफॉर्मेंस होना था। आयोजक कहते रहे कि भाषण के बाद तुरंत आपको मंच पर जाना है, इसलिए ग्रीन रूम में वे आ जाएं। वो ये कहकर सामने बैठे रहे कि एक नवयुवक उस्ताद जी पर बोलने वाला है, जिसे मैंने पहले कभी नहीं सुना । मुझे सुन लेने दीजिए, फिर आता हूं.. कार्यक्रम पांच- सात मिनट देरी से शुरू करूंगा। ये सुनकर कि उस्ताद ज़ाकिर हुसैन मुझे सुनने को उत्सुक हैं और साथ में किशोरी ताई भी बैठीं हैं, मेरी रूह कांप गई थी। ख़ैर, जैसे-तैसे अपनी तैयारी को संभाले मैं क़रीब पंद्रह मिनट के वक्तव्य के बाद जब पीछे विंग में पहुंचा, तो वे बड़े प्यार से आकर गले लगे और वक्तव्य को सराहते हुए मुझसे पूछ बैठे -‘आप किस घराने के शागिर्द हैं?’ मेरे जवाब पर कि बस सुन- सुनकर और घर के परिवेश के चलते संगीत पर कुछ लिखता -पढ़ता रहता हूं।… और भी ज्यादा खुश होकर बोले -‘तब तो और भी अच्छा है कि आप किसी घराने से बंधे हुए नहीं हैं, आप ऐसे ही बिना किसी घराने की हद में न फंसकर, बेलौस ढंग से लिखते रहिएगा संगीत पर.. मैं खुश हूं कि नए लोग, शास्त्रीय संगीत को गंभीरता से सुन और परख रहे हैं।’
मेरे लिए उस्ताद की इतनी मुक्त कंठ सराहना, जिसे तुरंत बजाने के लिए बैठना था, मुझसे मिलकर बात करना, दिल को गहरे से प्रभावित कर गया था। एक जिम्मेदारी भी सिखा गया, कि बड़े फनकार भी नयों को दिलचस्पी से सुनते हैं, इसलिए बहुत गंभीरता से ख़ुद की संगीत आलोचना को मुझे आगे बरतना होगा।
आयोजन की समाप्ति पर उस्ताद ज़ाकिर हुसैन और किशोरी जी ने अपने वक्तव्यों में मुझे सराहा और प्यार से मंच पर प्रतीक चिन्ह और दुशाला ओढ़ाई थी।
आज, तबला के इस अपरिहार्य फनकार के चले जाने पर उनका सहज स्नेह और युवाओं में उनकी दिलचस्पी याद में उभर आया है।
ऐसे सहज कलाकार का जाना, अंदर से बहुत दुःखी करता है। अपने वालिद उस्ताद अल्लारखा खां साहब के साथ की उनकी जुगलबंदी के पुराने रेकॉर्ड से चार ताल की सवारी,जैसे मन से कभी उतरती ही नहीं..

नमन उस्ताद !