Water Crisis: छोटे छोटे उपाय भी बहुत काम के हो सकते हैं
केपटाउन से शुरु करते हैं बात
बदलते पर्यावरण चक्र,कम बारिश और गिरते भूजलस्तर को देखते हुए कहा जा सकता है कि इंसानों के लिए यह दुर्लभ होने जा रहा है. जैसे दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन को दुनिया का पहला जलविहीन शहर घोषित कर दिया गया है क्योंकि सरकार ने पानी की आपूर्ति करने में असमर्थता जता दी है. नहाने पर रोक लगाने और 10 लाख से अधिक कनेक्शन काटने के बाद अधिकतम 25 लीटर पानी देने की योजना है. यह एक शहर का उदाहरण नहीं है बल्कि आने वाली सच्चाई का आईना है. जिन्हें यह उपलब्श है उनमें इसका दुरुपयोग रोकने पर जागरूकता नज़र नहीं आती दूसरी तरफ कई कई किलोमीटर दूर से पीने का पानी लाने को मजबूर तस्वीरें भी ज्यादा दूर की नहीं हैं.
अब बेंगलुरु को कर लें याद
बेंगलुरु में हुई भयावह स्थिति दूर बैठे पानी आसानी से ले पा रहे लोगों के लिए मीम्स बनाने का विषय हो सकती है लेकिन जो इस संकट से जूझे रहे हैं वे जानते हैं कि मामला गंभीर है. देश के 21 बड़े शहर ग्राउंड वाटर के मामले में शून्य पर हैं. 25 साल बाद तो पानी संकट के बहुत मुश्किल होने के अनुमाान तो फिर भी दूर के हैं और कुछ विषेषज्ञ तो अगले पांच साल में ही हालात खराब होने की घोषणा कर रहे हैं. संरक्षण, संचयन और पुनर्भरण पर हमारे प्रयास अधूरे हैं. जलस्रोतों के संरक्षण, उन्हें प्रदूषण से बचाने, जल स्त्रोतों के पास पौधारोपण, वॉटर हार्वेस्टिंग तो करना ही हैं लेकिन पानी बचाने के लिए छोटे कदम भी उतने ही जरूरी हैं. आरओ फ़िल्टर के कथित वेस्ट, इस्तेमाल में ले लिए गए पानी का दूसरा उपयोग और फिर उसकी नमी का फायदा जैसे कई छोटे लेकिन कारगर उपाय हैं. अपने टपकते नलों को ठीक करवाने के लिए जो आगे नहीं आते ऐसे लोगों के बीच पानी के संरक्षण की बात अजीब लग सकती है लेकिन तब आबिद सूरती याद आते हैं जो आज भी लोगों के दरवाजे खटखटा कर पूछते हैं कि पाानी टपकने की समस्या तो नहीं है और यदि किसी के यहां नल टपक रहा हो तो खुद उसे ठीक कर ही दम लेते हैं.सालों से जो पानी आबिद बचा पाए हैं उसे सहेजने के लिए एक हाथ तो आप भी बढ़ा ही सकते हैं.
(चित्र सौजन्य-चार वर्षीय मायरा मिश्रा की बनाई पेंटिंग)