June 20, 2025
देश दुनिया

United Nations कंगाली की हालत में, वर्कफोर्स में भारी कटौती

यूएन को फिजूलखर्च मानने वाले ट्रंप ने इसके अस्तित्व पर ही सवाल उठाए हैं

यूनाइटेड नेशंस को दुनिया में शांति, मानवाधिकार और मदद के लिए पहचाना जाता है लेकिन अब तक ज्यादातर अमेरिकी फंड से चलने वाली यह संस्था कंगाल हो चुकी है, बजट संकट इतना गंभीर है कि बड़ी संख्या में कर्मचारियों को हटाने की योजना बना दी गई है और जो नहीं हटाए जाने वाले हैं उन्हें भी पांच महीने बाद पैसा कैसे मिलेगा इसका कोई ठिकाना नहीं है. यूएन के पास शांति सेना चलाने का पैसा तो छोडें सामान्य ऑफिस खर्च देने का भी पैसा नहीं बचा है. 3,000 से ज्यादा कर्मचारी तो हटाए जाने की सूची में ही हैं जबकि यह संख्यया अभी और बढ़नी है. यूएन ने नाइजीरिया, पाकिस्तान और लीबिया वगैरह में वर्कफोर्स बीस प्रतिशत घटाने का भी प्रस्ताव बना लिया है. अब तक अमेरिका ही यूएन का सबसे बड़ा कांट्रीब्यूटर रहा है लेकिन ट्रंप ने इस संस्था की उपयोगिता पर प्रश्न खड़े करते हुए इसकी 19 हजार करोड़ की फंडिंग अटका दी है.

वैसे यूएन का पैसा रुकने का सिलसिला बिडेन के समय से ही शुरु हो गया था. अब जो यूएन इस साल 32 हजार करोड़ का बजट मांग रहा हो उसका 19 हजार करोड़ एक ही देश से बाकी हो जाए तो मुश्किल तो होना ही है. 2024 से अन्य चालीस से ज्यादा देशों ने यूएन को सात हजार करोड़ रुपए की हिस्सेदारी भी नहीं दी है. ऐसा नहीं कि यूएन के लिए इन देशों से पैसा न आना ही समस्या है बल्कि उन देशों को लेकर भी मुश्किल है जो पैसा देने से पहले शर्तें रखने लगे हैं जैसे चीन की यूएन बजट में बीस प्रतिशत भागीदरी है लेकिन वह पैसा देने से पहले अपनी शर्तें मनवाते हुए महत्व के पदों पर अपने व्यक्तियों को बैठाने तक को कहता है. यूएन को बने अस्सी साल हो चुके हैं लेकिन इतने बुरे हालात पहली बार हैं. अब यूएन बता रहा है कि ट्रंप का यही रुख रहा और उसकी हिस्सेदारी समय पर नहीं आई तो अमेरिका को 2027 में सूएन जनरल काउंसिल में वोटिंग राइट खोना पड़ सकता है. सूएन का नियम है कि कोई सदस्य दो साल तक सदस्यता शुल्क न दे तो उसका वोटिंग का अधिकार खत्म हो जाता है.