Tariff से बड़ा मुद्दा अमेरिकी कंपनियों के दबाव है
नायरा कंपनी के ईमेल वगैरह बंद कर माइक्रोसॉफ्ट ने बता दिया कि अमेरिकी कंपनियों पर भरोसा नहीं किया जा सकता
हंगामा इस बात पर मचा हुआ है कि ट्रंप ने भारत पर पच्चीस प्रतिशत के टैरिफ और पेनल्टी लगाने का फैसला कर लिया है लेकिन यकीनन भारत पर इसका कोई बहुत बड़ा असर होने वाला नहीं है, हां असर जरुर होगा लेकिन इतना नहीं जितना बताया जा रहा है. इससे भी बड़ी एक बात वह है जिस पर अभी चर्चा नहीं हो रही है लेकिन वह अमेरिकी प्रभुत्ववादी तरीके को सीधे बताने के लिए काफी है. दरअसल पिछले दिनों यूरोपियन यूनियन और अमेरिका ने भारत पर लगातार इस बात के लिए दबाव डाला है कि वह रुस से तेल और हथियारों सहित व्यापार बंद कर दे और भारत यह बात मानने को तैयार नहीं है. इसी के चलते दबाव बनाने की कोशिश में भारत और रुस के नियंत्रण से चलने वाली पेट्रो कंपनी नायरा पर कार्रवाई कर दी, यहां तक भी ठीक था कि कुछ नियम और कायदे बताए होंगे या सामान्य व्यापार की यह आम प्रैक्टिस हो लेकिन हद तब हो गई जब नायरा के ईमेल वगैरह को माइक्रोसॉफ्ट ने बंद कर दिया यानी नायरा के कंप्यूटरों को माइक्रोसॉफ्ट की एमएस ऑफिस जैसी सामान्य सुविधाएं भी बंद हो गईं और आज की तारीख में इस तरह के प्रतिबंध का मतलब आप समझ ही सकते हैं.
नायरा ने अदालत का सहारा लिया तो यह फैसला तो आ गया कि तत्काल ईमेल वगैरह की सुविधाएं चालू कर दी जाएं लेकिन इसने एक बड़े खतरे से हमें रुबरु तो करा ही दिया. अमेरिकी कंपनियां इसी तरह के कंट्रोल अपने हाथ में लेती जा रही हैं कि वो जब चाहें किसी भी देश को अपनी बात मानने के लिए इस तरह भी मजबूर कर सकती हैं. एप्पल से लेकर फेसबुक और इंस्टा से लेकर वॉट्सएप तक सारी कंपनियां अमेरिका से संचालित हैं और माइक्रोसॉफ्ट का तो इस्तेमाल पूरी दुनिया में आम है ही. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अमेरिकी सरकार के दबाव में किसी दिन किसी भी संप्रभु देश को झुकाने के लिए इस तरह की ब्लैकमेलिंग का इस्तेमाल हो सकता है और जवाब हां में है. यहां तक कि टेस्ला की जो गाड़ियां हैं वो भी भारी डाटा एकत्र करती हैं जब जहां चाहे अमेरिकी कंपनी भारत में चल रही आपकी कार को मनचाही दिशा में मोड़ सकती है या जाम कर सकती है यानी आप चाहें कि आपकी कार काम करे लेकिन यदि अमेरिकी कंपनी न चाहे तो आप अपनी गाड़ी तक ड्राइव नहीं कर सकते और यही मामला आपके कंप्यूटर को लेकर भी है कि यदि आप चाहें लेकिन अमेरिकी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट या एप्पल तय कर ले कि आप काम नहीं कर सकते तो आप कुछ नहीं कर सकेंगे. ट्रंप टैरिफ और व्यापार में बार बार अमेरिकी लड़ाकू विमानों की खरीद की भी शर्त रखते हैं लेकिन वो तकनीक नहीं देने की जिद पर इसीलिए रहते हैं कि दो देशों के युद्ध के मामले में भी यदि अमेरिका न चाहे तो आप अपने खरीदे हुए करोड़ों डॉलर वाले प्लेन को हिला भी न सकें. नायरा एनर्जी का मामला हमारे लिए एक मिसाल होना चाहिए और सख्त जरुर इस बात की भी है कि इस मामले में हम चीन से सबक लें जो यूट्यूब से लेकर इंस्टा जैसे फीचर वाले सारे प्लेटफॉर्म खुद के ही इस्तेमाल करता है.