Supreme Court से राष्ट्रपति के 14 सवाल, कानूनी बवाल
राष्ट्रपति ने प्रेसिडेंशियल रेफरेंस के तहत सुप्रीम कोर्ट से ही मांगी राय, उसी का था फैसला
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के दिए एक आदेश पर जो सवाल उठ रहे थे वही सवाल अब बाकायदा राष्ट्रपति की तरफ से पूछे गए हैं. राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि आखि राष्ट्रपति को तीन महीने में किसी अध्यादेश को पारित करने या उसके लिए समय सीमा तय करने का अधिकार उसे कैसे मिल जाता है. राष्ट्रपति या राज्यपाल विधानसभा से आए बिलों को कितने समय में मंजूरी दे यह बात सुप्रीम कोर्ट कैसे आदेशित कर सकता है. पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रपति या राज्यपाल को विधानसभा से पास हुए अध्यादेश को तीन महीने में यदि मंजूरी नहीं मिलती है तो उसे स्वत; पास मान लिया जाना चाहिए. इसके बाद से ही विधायिका और कार्यपालिका की विभाजन रेखा पर सवाल उठ रहे थे. राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से संविधान के अनुच्छेद 200, 201, 361, 143, 142, 145(3) और 131 पर सवाल पूछते हुए यह भी कहा है कि राज्य सीधे सुप्रीम कोर्ट चले आ रहे हैं और कोर्ट इन्हें नागिरकों के मौलिक अधिकार की धारा के तहत सीधे सुन रहे हें जबकि केंद्र और राज्य के मामले इसके तहत नहीं आते. राष्ट्रपति ने यह भी पूछा है कि क्या राज्यपाल मंत्री परिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य है?
राष्ट्रपति की ओर से पूछे गए प्रश्नों में यह भी शामिल है कि क्या यह राज्यपाल के संवैधानिक अधिकारों को कम करता है. संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से आमतौर पर राय नहीं माँगी जाती है लेकिन राष्ट्रपति ने ये सवाल इसी के तहत पूछे हैं. अनुच्छेद 143(1) को प्रेसिडेंशियल रेफरेंस भी कहते हैं जिसका उपयोग बमुश्किल ही किया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट से जो 14 सवाल पूछे गए हैं. उनके लिए सुप्रीम कोर्ट को पाँच या अधिक जजों की संवैधानिक पीठ बनानी होगी. राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 का भी जिक्र किया है जो बिलों की मंजूरी प्रक्रिया बताते हैं, इनमें कहीं मंजूरी के लिए समय-सीमा का जिक्र नहीं है और न खुद पास होने जैसे किसी बात का जिक्र है. वैसे यह मामला आखिर उसी बेंच के पास जाना है जिसने यह फैसला दिया था लेकिन इसके बाद भी उठाए गए सवाल काफी अहम हैं क्योंकि ये केंद्र, राज्य और विधायिका न्यायपालिका को लेकर कई मामलों में स्पष्टता के लिए हैं. जो सवाल राष्ट्रपति की ओर से पूछे गए हैं वे इस तरह हैं.
.राज्यपाल के पास बिल आए तो उनके पास क्या-क्या विकल्प होते हैं?
.क्या बिल पर फैसले के लिए राज्यपाल को मंत्रियों की सलाह मानना जरुरी है?
.क्या राज्यपाल के फैसले को कोर्ट में चुनौती दिया जाना संभव है?
.संविधान का अनुच्छेद 361 राज्यपाल के फैसले पर क्या राय रखता है?
संविधान में समय-सीमा का जिक्र नहीं है, तो कोर्ट कैसे तय कर सकता है कि राज्यपाल को कब फैसला लें?
.क्या राष्ट्रपति के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है?
.क्या कोर्ट बताएगा कि राष्ट्रपति बिल पर कब और कैसे फैसला लें?
.राज्यपाल कोई बिल राष्ट्रपति को भेजें तो क्या राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट की राय लेनी होगी?
.क्या बिल जब कानून ही नहीं बना हो तब भी कोर्ट उसमें दखल दे सकता है?
.क्या सुप्रीम कोर्ट 142 में राष्ट्रपति या राज्यपाल के फैसले बदलने में सक्षम है?
.क्या बिना राज्यपाल की मंजूरी कोई बिल कानून बन जाएगा?
.क्या संविधान के अनुसार बड़े कानूनी सवालों को पाँच जजों की बेंच पर भेजना चाहिए?
.क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत ऐसा आदेश दे पाएगा जो संविधान या कानून के खिलाफ हो?
.क्या केंद्र और राज्य के मतभेद अनुच्छेद 131 के तहत ही सुलझाए जा सकते हैं, या और भी रास्ते हैं?