August 3, 2025
देश दुनिया

Raja Raghuvanshi Murder और सोनम की जटिल साइकोलॉजी

स्वाति शैवाल

इंदौर के राजा रघुवंशी हत्याकांड में पत्नी सोनम का कातिल निकलने के पीछे का मनोविज्ञान और तथ्यों का विश्लेषण मनोचिकित्सक डॉक्टर ज्ञानेंद्र झा द्वारा

इंटरनेट पर यूनाइटेड स्टेट्स गवर्नमेंट की ऑफिशियल वेबसाइट पर नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन, नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन पर वर्ष 2014 में पब्लिश एक शोध का जिक्र है. सेक्स डिफरेंसेज इन द एसोसिएशन बिटवीन टेस्टोस्टेरॉन एंड वायलेंट बिहेविअर्स विषय पर 21 से 23 वर्ष के युवाओं (पुरुष व महिलाएं दोनों) पर किए गए इस शोध में एक चौंकाने वाली बात सामने आई थी. इसके अनुसार हिंसक व्यवहार और टेस्टोस्टेरॉन के स्तर में परिवर्तन को लेकर महिलाओं में महत्वपूर्ण पॉजिटिव संबंध पाया गया था. यही नहीं रिसर्च में यह भी पाया गया कि जिन महिलाओं का शैक्षणिक स्तर ऊंचा था उनमें एग्रेसिव बिहेवियर कम पाया गया. यानी गुस्सैल व्यवहार जो पहले आमतौर पर सिर्फ पुरुषों के कैरेक्टर का अहम हिस्सा हुआ करता था, अब औरतों में भी तेजी से बढ़ता दिखाई देने लगा है.

सावित्री पति की ज़िन्दगी यमराज से ले आई… और दूसरी उसे मौत के मुंह में धकेल आई….

यह बहुत भावुक पंक्तियां मेरी आदरणीय प्रोफेसर ने अपनी फेसबुक वॉल पर पोस्ट की है, इंदौर के राजा रघुवंशी हत्याकांड को सुनने के बाद. इस घटना ने उन्हें झकझोर कर रख दिया है. वह इसके बारे में सोचकर भी विचलित हो रही हैं. मैं उनकी स्थिति समझ सकती हूं क्योंकि मैं भी स्तब्ध हूं और आश्चर्यचकित भी. स्तब्ध हूं कि कोई किसी के साथ इतनी क्रूरता से कैसे पेश आ सकता है, वह भी किसी अपने के साथ और आश्चर्य इस बात का कि इस मासूम से चेहरे वाली लड़की के मन में आखिर इतनी क्या खराब बात रही होगी जिसने इसे हत्यारा बना दिया!
लेकिन इस वट सावित्री व्रत के दो पहलू और हैं. एक बड़ा प्रतिशत उन महिलाओं का जो वट सावित्री या ऐसे किसी भी व्रत को रखने के बाद सालभर पति के थप्पड़, गालियां और ताने खाती होंगी और अब कुछ प्रतिशत उन महिलाओं का भी जो पति की लंबी उम्र के लिए व्रत तो चाहे रखें न रखें लेकिन पतियों की उम्र को कम जरूर कर जाती हैं, जैसे कि सोनम. और यह दोनों ही पहलू समाज के लिहाज से बहुत दुखद हैं.

प्रसन्न मुद्रा में तस्वीरें खिंचवाता, भविष्य के सपने संजोता एक शादीशुदा जोड़ा. लेकिन असल में तो आधा ही जोड़ा प्रसन्न था, वह भी असमंजस वाला प्रसन्न क्योंकि जिस तरह की खबरें सामने आ रही हैं उसके अनुसार राजा की मां ने यह बताया है कि राजा ने शादी के पहले ही इशारा किया था कि सोनम उनमें रुचि नहीं दिखा रही है, क्या वह इस रिश्ते में आगे न बढ़ें? लेकिन आमतौर पर इस तरह की बातें हमारे समाज में सामान्य नर्वसनेस मानकर या हुंह! कुछ तो भी! की तर्ज पर नजरअंदाज कर दी जाती हैं. राजा के पैरेंट्स ने भी वही किया और यह शादी हो गई. अब जीवन भर राजा के पैरेंट्स इस बात से उबर नहीं पाएंगे कि काश उन्होंने राजा की बात को सीरियसली ले लिया होता. इस विवाह के वायरल हो रहे कई वीडियो में से एक वीडियो में जहां सोनम और राजा विवाह के बाद डिनर टेबल पर बैठे हैं, राजा के चेहरे के भाव देखकर कोई भी कह सकता है कि उसे सोनम के सबके सामने खुश रहकर फोटो खिंचवाने वाले एटीट्यूड पर सहज भरोसा नहीं हो रहा है. राजा उन तमाम इंसानों (इसमें लड़कियां भी शामिल हैं) का प्रतिनिधित्व करता है जो रिश्तों और लोगों पर सहज विश्वास करते हैं.

इस केस में अभी काफी बातों का खुलासा होना बाकी है. पुलिस ने सोनम को मुख्य अभियुक्त ठहराया है जबकि सोनम के पिता ने इसे साजिश और झूठ बताते हुए सीबीआई जांच की मांग तक कर डाली थी. कुछ दिनों में जांच पूरी होने के बाद पूरा सच सामने आयेगा लेकिन यह स्पष्ट है कि इस घटना ने केवल दो नहीं बल्कि 6 परिवारों को बर्बाद करके रख दिया है. चार वे लोग जिन्हें साजिश में शामिल माना जा रहा है और खुद सोनम और राजा का परिवार. अगर सबकुछ अच्छा होता तो ये पूरे 6 परिवार अच्छा भविष्य जी रहे होते और अपने अपने जीवन में आगे बढ़ रहे होते. राजा के जाने का दुख तो उसके परिवार को सालता ही रहेगा, आरोप साबित होने पर बाकी पांचों की जिंदगी जेल में गुजरेगी और उनके परिवारों को सामाजिक प्रताड़ना का सामना जीवन भर करना पड़ेगा. विडंबना यह भी कि बाकी चारों युवक 19- 23 साल के हैं और यह उनकी जिंदगी का पहला क्रूरतम अपराध है.

शिलांग में हनीमून मनाने गए जोड़े के साथ जो भी हुआ उसकी वजह से इंदौर का नाम सुर्खियों में है. ऐसा तो कोई भी इंदौरवासी शायद न चाहे कि हम पोहे जलेबी, कचौरी खाने वाले सीधा और शांत जीवन जीने वाले लोगों का नाम ऐसी किसी घटना की वजह से प्रसिद्ध हो. यह घटना और इससे जुड़े तथ्य जो सामने आ रहे हैं, उनमें एक चीज जो तेजी से उभरकर सामने आई है, वह है महिलाओं के खलनायिका वाले एक्सट्रीम रूप का सामने आना. खुद पर होने वाले अत्याचार या समाज में फैली बुराइयों के खिलाफ चंडी, ज्वाला और काली बनकर इंसाफ करने वाली देवियां पूज्यनीय हैं लेकिन सिर्फ अपनी पसंद से जीवन जीने के लिए किसी को मौत के घाट उतार देने वाली महिलाएं प्रश्न उठाती हैं कि क्या हम वाकई ऐसा समाज चाहते हैं?

बहादुर महिलाओं का रूप:
बात आज से करीब 20 साल पहले की है. तब हमारा मुकाम रतलाम था. उन दिनों अधिकांश छोटे शहरों में टैंपो चला करते थे. ऐसे ही एक दिन शाम ढले मैं और मम्मी बाजार से कुछ सामान खरीदकर टैंपो में घर वापस लौट रहे थे. टैंपो वाले ने, नियम तोड़ना हमारा मूल अधिकार है की तर्ज पर क्षमता से अधिक लोगों को बैठा लिया था. हमारी वाली तरफ महिलाएं ही थीं इसलिए हम निश्चिंतता से बैठे थे. हमारे ठीक सामने एक अधेड़ उम्र जोड़ा बैठा था जो बाजार से सब्जी भाजी खरीदकर लौट रहा था. फिर अचानक जो हुआ उसने मुझे ही नहीं सबको आश्चर्य से भर डाला. हुआ यूं कि उस जोड़े के पास बैठा एक “टल्ली” पुरुष कभी पति को धक्के दिए जा रहा था, कभी उससे जबरन सटकर बैठा जा रहा था. वह पुरुष किसी किशोर या कॉलेज जाने वाली बेबस लड़की की तरह प्रतिकार करने से बच रहा था और बार बार अपनी पत्नी की तरफ सिमट रहा था. जैसे ही पत्नी को यह समझ आया. उसने सबसे पहले टैंपो वाले को रुकने के लिए कहा और फिर टैंपो में ही अपनी चप्पल उतारकर जो उस शराबी की पिटाई की कि उसका सारा नशा हिरण हो गया. वह बार बार उस महिला के पैर पढ़कर माफी मांगने लगा. हम इस घटनाक्रम में क्या करें, क्या न करें कि स्थिति में थे और तमाशबीन बन गए. इतने में महिला ने चप्पल वापस पैरों में पहनी. अपने पति के साथ वापस आकर सीट पर बैठी और टैंपो वाले से गुस्से में बोली- सवारी बैठाने से पहले देख तो लिया करो. इतना भी क्या रुपए, 2 रुपए का लालच! टैंपो वाला जो अब तक मुंह खोले सारा मामला देख ही रहा था. अकबका गया और बोला, जीजी आगे से ध्यान रखूंगा. और सारी सवारियां बैठाकर आगे चल दिया.

यह एक सामान्य घटना थी. अपनी तरह की पहली भी नहीं थी लेकिन उस दिन मुझे बहुत बड़ा सबक यह मिला कि दांपत्य जीवन हो या कोई भी रिश्ता, जब आपका साथी मुश्किल में होता है तो इंसान होने के नाते उसकी सुरक्षा का दायित्व स्त्री-पुरुष कोई भी ले सकता है. और जरूरत पड़ने पर इस मामले में औरतों से बहादुर और कोई नहीं होता.

रिश्तों और विश्वास के टूटने के अफसाने:
लेकिन बदलते समय ने महिलाओं की इस छवि को भी बदल दिया है. लोगों के जेहन में कुछ ही दिनों पहले का मेरठ केस ताजा है. जहां पूर्व मर्चेंट नेवी अधिकारी सौरभ राजपूत की हत्या उनकी पत्नी मात्र 28 साल की मुस्कान ने अपने बॉयफ्रेंड साहिल शुक्ला के साथ मिलकर कर डाली थी. यह मर्डर भी न केवल प्लान करके किया गया था बल्कि बहुत शांति से लाश को सीमेंट से भरे नीले ड्रम में ठिकाने लगाया गया था. जैसे कोई शातिर और अनुभवी अपराधी करता हो. इस अपराध के साबित होने के बावजूद मुस्कान न केवल संयमित रही बल्कि उसने जेल में अपने वकील से पर्याप्त सहयोग न मिलने पर खुद ही इस केस की पैरवी करने की गुहार लगाई. हालांकि 8 वीं पास मुस्कान इसके लिए पात्र नहीं थी लेकिन इस केस ने वाकई पुरुषों के मन में खौफ पैदा कर दिया. केवल अपनी इच्छा पूरी करने के लिए किसी को मार देना, वह भी इतने क्रूर तरीके से, यह इंसान के दिमाग के शैतानी और मशीनी होने का पक्का सबूत है.

स्वतंत्रता का असल मतलब:
विमेन इंपावरमेंट और फेमिनिज्म के जो अर्थ और परिभाषाएं आजकल तेजी से ट्रेंड में आ रही हैं, उन्होंने इन दोनों का अर्थ पूरी तरह बदल कर रख दिया है। यह पूरी तरह सही है कि दुनिया भर को आजादी मिल जाने के बावजूद महिलाओं को आजादी मिलने में बहुत समय लगा. अभी भी आजादी पूरी तरह हासिल नहीं हुई है. सिर्फ आधा शरीर ढांकने वाले कपड़े पहन कर सिगरेट का धुआं उड़ाना और खुद को ही, खुद के नाम की (मां, बहन की) गालियां दे देना कतई आजादी नहीं है. तो पढ़ने लिखने, नौकरी में कुछ प्रतिशत आगे बढ़ने के मौके मिलने के अवसरों को लड़कियों ने कुछ अलग ही आजादी के अर्थों में ले लिया. उन्होंने बजाय लड़कों को गाली देने, लड़कियों से छेड़छाड़ या अभद्र व्यवहार करने, लड़कियों को सिर्फ मनोरंजन की वस्तु मानने, ड्रग्स या अन्य नशे की लत में पढ़ने, घरेलू हिंसा करने, रिश्वतखोरी करने जैसी कई बुरी चीजों के लिए टोकने और सुधारने के, खुद भी वही सब शुरू कर दिया और इसे नाम दिया गया आजादी. आज आपको कई जगह लड़कियां इस फेकिनिज्म और ढोंग भरी स्वतंत्रता का खुलेआम सबूत देते दिख जाएंगी. यह सोच इस कदर हावी है कि लड़कियां यह भी भूल चुकी हैं कि उनमें प्रकृति ने ऐसे रचनात्मक गुण और शक्तियां दी हैं जिनसे वह समाज को सकारात्मक रूप से नया बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं. परिणाम यह कि पुरुषवादी सोच वाला जो समाज आज से 50 साल पहले था वह अब भी बाकी है उल्टे अब उसे लगता है कि बुराई करने के मामले में तो लड़कियां हमारे बराबर आ गईं तो अब क्या पर्दा करना. लिहाजा खुलेआम यौन हिंसा, प्रताड़ना और अपराधों का प्रतिशत बढ़ता ही जा रहा है। तो जिस समाज को रचनात्मकता के गीत गाने चाहिए थे वो अब विध्वंस का बिगुल बजा रहा है. इन सबका खामियाजा उन लोगों को भुगतना पड़ रहा है जो पूरी ईमानदारी और भावनाओं के साथ लोगों पर विश्वास करते हैं और इनमें लड़कियां और लड़के दोनों ही शामिल हैं. बल्कि जिस लिहाज से आजकल कोर्ट में झूठे केसेस का प्रतिशत बढ़ रहा है, लड़के ज्यादा दयनीय स्थिति में आने लगे हैं.

क्या बदल रहा है लड़कियों का दिमाग?:
इस घटना के बारे में अपने सोशल मीडिया के जरिए अभिनेत्री कंगना रनौत ने एक बड़ी महत्वपूर्ण बात की और इशारा किया है. उन्होंने स्पष्ट कहा कि माता पिता के डर के कारण एक लड़की शादी के लिए न नहीं कह सकती लेकिन बड़ी निर्ममता से सुपारी किलर्स के साथ पति की हत्या की साजिश रच सकती है? वह घर से भाग सकती थी, पति को तलाक दे सकती थी! यह सब कितना मूर्खतापूर्ण और क्रूर है. कंगना का यह संदेश वाकई सच है.
क्या इसका मतलब यह भी है कि लड़कियों के विचारों और व्यक्तित्व में परिवर्तन आ रहा है? हालांकि स्पष्ट तौर पर इसको लेकर अब तक कोई शोध नहीं हुआ है लेकिन इंटरनेट पर यूनाइटेड स्टेट्स गवर्नमेंट की ऑफिशियल वेबसाइट पर नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन, नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन पर वर्ष 2014 में पब्लिश एक शोध का जिक्र है.
सेक्स डिफरेंसेज इन द एसोसिएशन बिटवीन टेस्टोस्टेरॉन एंड वायलेंट बिहेविअर्स विषय पर 21 से 23 वर्ष के युवाओं (पुरुष व महिलाएं दोनों) पर किए गए शोध में एक चौंकाने वाली बात सामने आई थी. इसके अनुसार हिंसक व्यवहार और टेस्टोस्टेरॉन के स्तर में परिवर्तन को लेकर महिलाओं में महत्वपूर्ण पॉजिटिव संबंध पाया गया था. यही नहीं रिसर्च में यह भी पाया गया कि जिन महिलाओं का शैक्षणिक स्तर ऊंचा था उनमें एग्रेसिव बिहेवियर कम पाया गया. यहां यह गौर करने वाली बात है क्योंकि मेरठ वाले केस में और उक्त सोनम वाले केस में, दोनों ही युवतियां कम पढ़ी लिखी हैं.
उल्लेखनीय है कि टेस्टोस्टेरॉन एक हार्मोन है जो कि पुरुषों में पाया जाता है और उनकी रिप्रोडक्टिव हेल्थ में महत्वपूर्ण योगदान निभाता है. लेकिन महिलाओं के मामले में कई बार पीसीओडी या अन्य स्थितियों में टेस्टोस्टेरॉन का स्तर भी बढ़ सकता है. हो सकता है सोनम के साथ भी ऐसी कोई स्थिति हो. बिना जांच हालांकि यह एक कयास ही है.

विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
इस केस में साइकोएनालिसिस भी होना चाहिए

डॉ. ज्ञानेंद्र झा,
वरिष्ठ मनोचिकित्सक,
जबलपुर
इस पूरे घटनाक्रम की जांच जारी है इसलिए हम अभी तक जो कहानी पुलिस, मीडिया आदि द्वारा सामने लाई गई है उसके आधार पर बात करेंगे.
सबसे पहली बात कि किसी को मार डालने या क्रूरतम तरीके से प्रताड़ना देने का कार्य एक नॉर्मल व्यक्ति नहीं कर सकता। यह विवेकहीन व्यक्ति का काम होता है। यह एंटीसोशल पर्सनालिटी का एक रूप है। इसलिए यहां लड़की का साइकोएनालिसिस भी होना चाहिए कि कहीं पहले भी वह इस तरह के अत्यधिक गुस्से या विवेकहीन स्थिति के एपिसोड्स से गुजर चुकी है क्या? हालांकि जिस तरह हमारे समाज में इस तरह की बातें छुपा ली जाती हैं, यह बहुत आम होगा अगर लड़की का यह पहलू सामने न आ पाए.
दूसरे, यह मामला हो या मेरठ का नीले ड्रम वाला मामला या आए दिन चर्चा में आने वाली ऐसी खबरें जिनमें 2 बच्चों की मां द्वारा अपने से 10 वर्ष कम उम्र के प्रेमी के साथ मिलकर पति का कत्ल कर दिए जाने का जिक्र हो, यह अब चौंकाता नहीं है क्योंकि पिछले करीब एक-डेढ़ दशक में इनका प्रतिशत बढ़ता गया है. चूंकि अभी कुछ सालों पहले तक महिलाओं या लड़कियों के लिए वर्जनाएं, रोक टोक और नियमों का दबाव था. उन्हें बड़ी मुश्किल से स्वतंत्रता मिलनी शुरू हुई है, उसका भी प्रतिशत काफी कम है. तो इस स्वतंत्रता के चलते उस इन्हीबिशन का टूटना लाजमी है जो अब तक लड़कियों के ऊपर हावी रही हैं. जो स्वतंत्रता उससे छीन ली गई थी अब वह उसे छीनकर ही लेना चाहती है. इसी स्थिति में रिवेंज के स्तर तक की भावना भी महिलाओं में पनप सकती है जो अब तक दबी छुपी थी.
इस केस में एक पहलू यह भी है कि इस दंपत्ति के विवाह तय होने और विवाह होने के बीच के समय यानी प्री हनीमून फेज़ में बहुत सारे रेड फ्लैग सामने आए जिन्हें नकारा गया. जब लड़के को यह आभास हुआ कि लड़की का व्यवहार संदेहास्पद है, इससे ही स्पष्ट हो जाता है कि लड़की पर इस विवाह के लिए दबाव डाला जा रहा होगा. इस बात को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए था. लड़की में इस बढ़ते दबाव ने नफरत को जन्म दिया जो क्राइम में बदल गई. उसमें शायद इस सोच ने जन्म लिया कि जो अन्याय मेरे साथ किया गया, वही मैं भी करूंगी.
इसमें साइकोसोशल चेंज की भी बड़ी भूमिका है. जिसके चलते एग्रेशन और रिवेंज वाले मामलों का प्रतिशत बढ़ता ही जा रहा है. यह याद रखिए कि समाज में बैलेंस की जो अवधारणा है वह एक मरीचिका है. ऐसा कुछ होता नहीं है. यह एक आदर्श स्थिति है. मतलब यह कि यदि एक समय पुरुषों ने महिलाओं पर प्रभुत्व कायम रखा तो हो सकता है आने वाले समय में यह स्थिति उल्टी हो जाए. क्योंकि किसी भी स्वतंत्रता को पाने वाला हर उस आयाम को छूना चाहता है जो उसे पहले दबाकर रखने वाले ने छुआ. यही कारण है कि बजाय लड़कों या पुरुषों को सिगरेट, शराब के नुकसान से बचाने के महिलाओं ने भी इन चीजों से खुद को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है. कि अगर तुम यह कर सकते हो तो मैं भी कर सकती हूं. और यह स्थिति हर मनुष्य के लिए तकलीफदायक है, चाहे औरत हो या मर्द.