June 26, 2025
देश दुनिया

एक चुटकी सिंदूर, पाकिस्तान में सुभानअल्लाह!


विजय मनोहर तिवारी (लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलगुरु हैं)
एक चुटकी सिंदूर पाकिस्तान नाम के एक सड़ते घाव पर छिड़का गया है, वह कोई आक्रमण नहीं है. उपचार की एक सिद्ध पद्धति है. किंतु भारतीय मूल की इस दवा की पैकेजिंग कमाल है. इसका नाम कुछ और भी हो सकता था. प्रोडक्ट की ब्रांडिंग और विज्ञापन एजेंसियों के लिए यह प्रेरक प्रयोग है. कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह के जरिए सिंदूरी रात का बयान. क्या कयामत है. पहलगाम में लाश हो चुके अपने पति के पास रोती हुई उस बेबस बेटी की तस्वीर याद कीजिए, जो अभी-अभी किसी घर की बहू बनकर आई थी और अब घर लौटते ही उसकी माँग का सिंदूर हटने वाला था…
पाकिस्तान के मामले में अगर एक देश की तरह सोचेंगे तो कहीं नहीं पहुंचेंगे. ऐसा करके कहीं न कहीं हम एक देश के रूप में उसे मान्य ही कर रहे होंगे, जो कि सबसे बड़ा झूठ है. वह एक देश नहीं है. देश ऐसे बनते नहीं हैं. तो पाकिस्तान क्या है? सात दशकों के लक्षण क्या बताते हैं? पाकिस्तान की पैदाइश की पृष्ठभूमि क्या बताती है?
वह भारत की धरती पर हुआ गैंगरीन था, जिसे बटवारे की सर्जरी से काटकर अलग किया गया. गैंगरीन सहित अलग हुआ भारत की धरती का वह अभागा टुकड़ा पाकिस्तान कहलाया. बचा-खुचा भारत तो काफी हद तक निजात पा गया मगर कटकर अलग हुआ वह गैंगरीन और सघन होता हुआ आज दुनिया के सामने है. हालांकि भारत के स्वस्थ होने की उम्मीदें उसी समय धूमिल हो चुकी थीं क्योंकि यह सर्जरी तत्कालीन लालची उपचारकर्ताओं के कारण बहुत जल्दबाजी में हुई. संक्रमण की सफाई ठीक से न हो तो मेडिकल साइंस गैंगरीन के संदर्भ में यही व्याख्या करती है, जो आज भारत भोग रहा है.
दूरदर्शी लीडर हजार साल न सही सौ साल बाद का भविष्य देखते हैं और उसके अनुसार नीतियाँ बनाते हैं, दिशा तय करते हैं. भारत के निर्णायक लीडरों की नाकाम दूरदर्शिता का जीता-जागता नमूना आज का भारत है. न उन्हें बीमारी की पहचान थी, न उपचार में सिद्धहस्त थे. उन्हें बस सत्ता में आना था. आकर जमना था. अपनी पीढ़ियों को सेट करना था. उन्हें देश से कोई लेना-देना नहीं था. वह आबादी में तीस करोड़ से एक सौ तीस करोड़ के बोझ तक चला जाए, कश्मीर टूट जाए, बंगाल बर्बाद हो जाए, घुसपैठियों से भर जाए, कूड़े का ढेर बन जाए, गाँव वीरान हो जाएं, शहर तबाह हो जाएं, इतिहास की मिलावट होती है तो होती रहे, नक्सल हिंसा, विषैला वामपंथ, इस्लामी आतंक. जो होता है, होता रहे, अपनी बला से. अपनी सत्ता कायम रहे, बस.
पहलगाम के बाद कुछ लंबी खिंचे इंतजार का यह परिणाम चुटकी भर सिंदूर जैसा है. पाकिस्तान के जिन ठिकानों पर यह चुटकी पर सिंदूर बिखरा है, मस्जिद-मदरसे-मरकम के साइनबोर्ड के पीछे वह जहर की फलती-फूलती फैक्ट्रियाँ ही थीं, जिनकी भारत में भी ऐसे यूनियन कार्बाइडों की कोई कमी नहीं है. आरफा खानम के साथ आरिफ मोहम्मद खान ने एक इंटरव्यू में देवबंदी पाठ्यक्रमों के डरावने डिटेल्स का जिक्र किया था, जो इन मदरसों की तथाकथित शिक्षा प्रणाली की बुनियाद हैं.
जो समझ गए हैं, उन्हें इशारे की काफी हैं. आतंक की मार झेल रहे दुनिया के कई समझदार देशों ने नमाजियों के रिकॉर्ड मांगने शुरू कर दिए हैं. जुमे की नमाज के समय पढ़े जाने वाले खुतबों की स्थानीय भाषा में कॉपी अनिवार्य कर दी है. वे जानना चाहते हैं कि आप किसी भी रूप में पढ़ा क्या रहे हैं, बता क्या रहे हैं, संदेश क्या दे रहे हैं, शासन को बताइए. वे मस्जिदों के डिजाइन अपने परंपरागत स्थापत्य में तैयार करा रहे हैं. वे नकाब-हिजाब समेट रहे हैं. वे समझ गए हैं कि दाल में कुछ काला नहीं है. दाल ही गड़बड़ है.

तेजी से बदलती दुनिया के रंग-ढंग को अगर किसी एक इस्लामी मुल्क ने ठीक से समझा है तो वह सऊदी अरब है, जो अल्लाह के फजल से इस्लाम की जन्मभूमि है. एमबीएस के नाम से मशहूर “इस्लाम के कॉपी एडिटर’ मोहम्मद बिन सलमान का इस्लामी दुनिया के फलक पर नमूदार होना जैसे अल्लाह की मर्जी से ही मुमकिन हुआ है. वे इस्लाम के डिजाइन में मौजूद खामियों के सबसे कुशल मैकेनिक बनकर सामने आए हैं. पिछले तीन सालों में सुधारों की जो झड़ी उन्होंने अरब की जमीन पर लगाई है, पाकिस्तान के मरकजों की दाढ़ियाँ और तहमदें उड़ी हुई हैं. अरब से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि उनकी जमीन पर बुतपरस्ती को बाइज्जत जगह मिलेगी. मोहम्मद बिन सलमान के सुधार कट्टर इस्लाम के नुकीले नाखूनों पर नेल कटर की सेवा के बाद नेल पॉलिश की तरह आए हैं. महिलाओं को बराबरी के मौके देकर उन्होंने लिपिस्टिक भी लगा दी है.

भारत के स्वाधीनता काल के एक दूरदर्शी लीडर बाबा साहेब आंबेडकर ने “पाकिस्तान, पार्टीशन ऑफ इंडिया’ में लिखा था-“मुसलमानों में इन बुराइयों का होना दुखद है किंतु उससे भी अधिक दुखद तथ्य यह है कि भारत के मुसलमानों में समाज सुधार हेतु इन बुराइयों का सफलतापूर्वक उन्मूलन के लिए कोई संगठित आंदोलन नहीं उभरा. मुसलमान यह महसूस ही नहीं करते कि ये बुराइयाँ हैं.’ भारत के कुछ सदियों या दशकों पहले बने नए-नए मोमिनों के अड़ियल रुख पर बाबा साहेब के विचार क्रांतिकारी थे. सऊदी अरब की भूमि पर सुधारों की यह शुरुआत एक ऐसे समय हुई है जब पूरी दुनिया में इस्लामी आतंक अपनी भयावह शक्ल दिखा चुका है. शरणार्थियों की समस्या से यूरोपीय देश संक्रमित हैं. लंदन से लेकर पेरिस तक मानवाधिकार के नकली नारों की हवा निकली हुई है.

गैंगरीन के लक्षण गजब हैं. वह कहीं भी और कभी भी हो सकता है. चोट, दवा, शराब, गर्मी, सर्दी, इंजेक्शन किसी से भी. जिन देशों ने समझ लिया है कि यह केवल मानवीय या राजनीतिक समस्या नहीं है, वे किसी चर्चा या समझौते में समय नष्ट करने की बजाए एकसूत्रीय उपचार में अपनी समस्त वैज्ञानिक ऊर्जा लगा रहे हैं. इजरायल को आप एक दक्ष और साहसी डॉक्टर की नजर से देखिए. भारत ने यह कोशिश अपने ही एक अंग को काटकर की थी मगर हमारे टोपी-चरखाधारी डॉक्टर झोलाछाप निकले. वे तो राजपाट से शुरू हुई और बारी-बारी से राजघाट की ओर पहुँची अपनी सियासी यात्रा संपूर्ण करके समाधिस्थ हो गए. यह संक्रमित विरासत एक सौ चालीस करोड़ भारतीयों के हवाले कर गए. एक चुटकी सिंदूर पाकिस्तान के सड़ते घावों पर छिड़का गया है. उसे आक्रमण कहना रियासते-मदीना के प्रति ज्यादती होगी. उपचार की वह एक सिद्ध पद्धति है. किंतु भारतीय मूल की इस दवा की पैकेजिंग कमाल है. इसका नाम कुछ और भी हो सकता था. प्रोडक्ट की ब्रांडिंग और विज्ञापन एजेंसियों के लिए यह टाइटल एक प्रेरक प्रयोग है. कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह के जरिए सिंदूरी रात का बयान. क्या कयामत है. पहलगाम में लाश हो चुके अपने पति के पास रोती हुई उस बेबस बेटी की तस्वीर याद कीजिए, जो अभी-अभी किसी घर की बहू बनकर आई थी और अब घर लौटते ही उसकी माँग का सिंदूर हटने वाला था.

ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की लाखों पीड़ित स्त्रियों के कलेजे ठंडक से भर दिए हैं. वे स्त्रियाँ, जिनकी माँगों के सिंदूर सरहद पर आतंकियों की गोली के शिकार होते रहे और लाश बनकर गाँव-कस्बों में लौटते रहे. वे स्त्रियाँ, जिनकी अस्मतें लूटी गईं और घरों को जला दिया गया. सरहद के पार छिड़का गया यह सिंदूर सरहद के भीतर सक्रिय उन पैशाचिक प्रवृत्तियों के भीतर भी भय पैदा करे, जो लाखों बेटियों को झूठे प्रेमजाल में फँसाकर उनकी जिंदगी तबाह कर रहे हैं. जो नए-नए नाजायज कब्जों में जमीनों पर हरे रंग की खरपतवार बनकर फैल रहे हैं. जो शहरों की सड़कों पर बरबादी फैलाने में माहिर भीड़ के रूप में संकरी गलियों में तैयार बैठे हैं. जिनके दिमागों में जहर जमा हुआ है. पाकिस्तान के एक मरकज पर जरा से सिंदूर ने सुभानअल्लाह कर दिया है. मरकजों की महिमा कहीं कम नहीं है. एक चुटकी सिंदूर की आवश्यकता सब दूर है!