Mars Viking के नतीजे मान लेने थे नासा को
मंगल ग्रह पर जीवन होने या न होने को लेकर चल रहे प्रयोगों के बीच जर्मनी की टेक्निकल यूनिवर्सिटी बर्लिन के प्रोफेसर और खगोलजीवविज्ञानी (Astrobiology) के विशेषज्ञ डॉर्क शुल्ज़े-माकुच का कहना है कि मंगल ग्रह पर जीवन का पता 50 साल पहले ही लग चुका था, लेकिन दुर्भाग्य से इसे नासा ने नष्ट कर दिया. दरअसल 1970 के दशक में, नासा ने क्यूरियोसिटी रोवर (Curiosity Rover) से पहले वाइकिंग कार्यक्रम (Viking Program) की शुरुआत की थी. इस कार्यक्रम के तहत मंगल ग्रह की सतह पर दो लैंडर गए थे. इनका मुख्य उद्देश्य मंगल की सतह की पहली झलक पाना और वहां जीवन के संकेतों की तलाश करना था. माकुच का दावा है कि वाइकिंग मिशन के दौरान मिले कुछ नतीजे जीवन की उपस्थिति दर्शा रहे थे. इनमें से एक है मंगल की सतह पर पाए गए भूगर्भिक संरचनाएं, जो पानी के प्रभाव से बनी हैं. यहां ज्वालामुखियों पर मौजूद ढलानें हवाई के ज्वालामुखियों जैसी हैं, जो पहले बारिश के संपर्क में रही होंगी. उनका कहना है कि वाइकिंग लैंडर्स ने मंगल की मिट्टी में कम मात्रा में क्लोरीनेटेड कार्बनिक पदार्थों की भी पहचान की थी. मंगल की मूल कार्बनिक संरचनाओं में क्लोरीनेटेड रूप से कार्बनिक यौगिकों की मौजूदगी की पुष्टि की है. वाइकिंग प्रयोगों के शुरुआती चरण में मंगल की लाल मिट्टी में पोषक तत्वों और रेडियोधर्मी कार्बन को डाला गया था. अगर मंगल पर सूक्ष्मजीव मौजूद होते, तो वे इन पोषक तत्वों का उपयोग करते और रेडियोधर्मी कार्बन को गैस के रूप में छोड़ते। शुरुआती नतीजों में इस रेडियोधर्मी गैस के उत्सर्जन का संकेत मिला था.
बाद में हुए विश्लेषणों में विरोधाभासी परिणाम सामने भी आए और कुछ वैज्ञानिकों ने कहा कि यह गैस मिट्टी में पहले से मौजूद रसायनिक प्रतिक्रियाओं का परिणाम हो सकता है इसलिए वाइकिंग कार्यक्रम के निष्कर्षों को निर्णायक नहीं माना गया.प्रयोगों में इस्तेमाल हुआ पानी मंगल की मिट्टी के लिए बहुत ज़्यादा ऑक्सीकृत (oxidized) था। माना जाता है कि मंगल पर मौजूद (यदि हो तो) जीवन संभावित रूप से अवायवीय (anaerobic) होगा, यानी यह ऑक्सीजन की उपस्थिति में पनपेगा नहीं.