Lokpal के अधिकार क्षेत्र में न्यायाधीशों की जांच का मामला उलझा
लोकपाल के अनुसार जज भी पब्लिक सर्वेंट हैं इसलिए उसे जांच का हक
पिछले दिनों छिड़ी लोकपाल के अधिकारों की बहस में नया मोड़ तब आ गया जब सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल के दस निर्णय पर रोक लगा दी जिसमें कहा गया था कि हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ शिकायतों की जांच करना हमारे अधिकार क्षेत्र में है. कोर्ट ने लोकपाल के दावे को बहुत परेशान करने वाली बात ठहराया. कोर्ट ने केंद्र, लोकपाल रजिस्ट्रार के साथ शिकायतकर्ता को भी इस बाबत नोटिस देते हुए अगली तारीख 18 मार्च रखी है. लोकपाल ने 27 जनवरी को एक आदेश में हाईकोर्ट के जज पर मिली दो शिकायतों पर कार्रवाई की बात कही थी. संबंधित जज पर एक निजी कंपनी के पक्ष में फैससे की सिफारिश करने का आरोप है. जिन जज ने फैसले को प्रभावित करने की कोशिश की वे इस कंपनी के लिए वकालत करते थे.
इस मामले को न्यायपालिका की स्वतंत्रता से संबंधित महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इस मामले के बाद मांग उठ रही है कि इस पर एक कानून बनाया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और अब लोकपाल एएम खानविलकर ने Lokpal and Lokayuktas Act, 2013 के मद्देनजर कहा था कि लोकपाल हाईकोर्ट जजों पर लगे भ्रष्टाचार वाली शिकायतें सुन सकता है क्योंकि लोकपाल कानून के हिसाब से ये जज भी पब्लिक सर्वेंट की श्रेणी में हैं. जस्टिस खानविलकर सहित लोकपाल के सभी 9 सदस्यों ने इस बात पर सहमति जताई है. लोकपाल के पक्ष को सही मानने वाले सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के चार के मुकाबले एक से 1991 में आए निर्णय का हवाला दे रहे हैं जिसमें हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988 के अंतर्गत पब्लिक सर्वेंट माने गए हैं.