Kerala में कर्कुमचारी के गले में कुत्ते का पट्टा, कहां है इंसानियत
मार्केटिंग फर्म में टारगेट पूरा न करने पर गले में पट्टा डानकर चौपायों की तरह पानी पीने को कहा
बात केरल की है और यहां केरल को दो वजहों से हाइलाइट कर लीजिए, पहली तो यह कि यह देश्या का सबसे ज्यादा सुशिक्षित राज्य है और दूसरा यह कि यहां कामगारों के नाम पर पूरी दुनिया में कथित तौर परलड़ने वाली वामपंथी सरकार है. वीडियो है छोटा सा, जहां किसी कंपनी के ऐसे कर्मचारियों को कुत्ते के बांधने वाले पट्टे से बांधकर कुत्ते की ही तरह भौंकने और पानी पीने को मजबूर किया जाता है. वजह है कि इन कर्मचारियों ने अपने दिए गए टारगेट पूरे नहीं किए थे. जब वीडियो वायरल हो गया सवाल उठने लगे तो यह भी पता चल गया कि यह मामला कोच्चि का है और यहां की मार्केटिंग फर्म हिंदुस्तान पॉवर लिंक्स में यह सब हुआ है. सरकारों की नींदें खुली हैं और इस मामले की रिपोर्ट मांगी गई है. भला हो उन पूर्व मैनेजर साहब का जिन्होंने चार महीने से भी ज्यादा समय पहले यह वीडियो बना ली थी और कंपनी छोड़ने के बाद लोगों तक पहुंचा दी. अभी उस व्यक्ति का नाम सामने नहीं है जिसे कुत्ते का पट्टा डालकर घुटनों के बल चलने पर मजबूर किया गया और कुत्ते की तरह पानी पीने को कहा गया लेकिन यहाँ के और कारनामे सामने आ रहे हैं जिनमें बताया गया है कि सेल्स टारगेट पूरा न कर पाने वालों के सामने थूक दिया जाता था और उसे सजा स्वरुप चाटने को कहा जाता था. चार महीने पहले का तो वीडियो ही है और जब किसी ने वीडियो बनाया तो मामले लंबे समय से चल ही रहे होंगे. जिस व्यक्ति की यह वीडियो सामने आई है वह अब भी कंपनी में काम कर रहा है, यह सब झेलने वालों की औसत सेलेरी पर भी नजर मार लीजिए तो पता चलेगा कि दस हजार रुपया महीना भी इन्हें नहीं मिलता है यानी सरकार से तय मजदूरी से भी कम मजदूरी पर काम करने और इस तरह के तनाव के बाद भी लोग काम करने पर मजबूर हैं.
जिस दिन यह वीडियो शूट हुई होगी उस दिन इनमें से अधिकतर को यह पता होगा कि आज उनके साथ कैसा सुलूक हो सकता है लेकिन दो टकिया की नौकरी और दो रोटी के सवाल में बंधा यह बंदा दफ्तर आता है, टारगेट पूरा न करने की लानत मलामत झेलता है, गले में कुत्ते का पट्टा भी डलवा लिया, कुत्तों की तरह चल भी, चौपायों की तरह पानी भी पिया और इतने सब के बाद अब भी नौकरी कर रहा है क्यों? क्योंकि जो आठ नौ हजार रुपया कंपनी देती है वह पेट भरता है. आप उसे अब मानवाधिकार बताएंगे, न्यूनतम मजूदरी बताएंगे, बताएंगे कि केंद्र सरकार ने उसके लिए क्या क्या सोच रखा है और मजदूरों के लिए मोटी मोटी किताबें देने वाले लेनिन और मार्क्स की सच्ची अनुयायी कम्युनिस्ट सरकार ने केरल में कैसे मजदूरों के लिए स्वर्ग बना दिया है लेकिन समझिए जब बड़ी बड़ी कंपनी के ध्रन्किना सेठ कहते हों कि कर्एमचारियों को तो सप्ताह में 90 घंटे काम करना चाहिए तो ऐसी बातों का दबाव किस पर आता है?
यह तो हुआ वह स्यापा जो सबसे आम है, हर बात के लिए सरकार को दोषी ठहरा दो. अब यहां उनसे भी सवाल पूछिए जिन्हें मानवीयता के हिसाब से इसे रोकना था, वो कौन लोग थे जिन्होंने यह आदेश दिया था? वे जो इसके आसपास घूमकर उसे कुत्ता बना हुआ देख रहे थे? मालिक तो एक होगा लेकिन यह सबकुछ कई लोगों के मिले जुले दबाव का नतीजा है तो वे साथ देने वाले कौन हैं? श्रम कानूनों की असलियत देखनी है तो ऐसे सौ पचास वीडियो मिल जाएंगे और लोगों की आदमियत के मरने का नजारा देखना हो तो ऐसे लाखों वीडियो मिल जाएंगे. सरकारें तो वही करेंगी जो अब तक वो करती आई हैं इसलिए अब जरुरी है कि सवाल उनसे किए जाएं जिन्होंने यह सब होने दिया. टारगेट तो टारगेट हैं, आज इन्होंने पूरे कर लिए हैं तो इनके हाथ में कुत्ते का पट्टा है और कल जब ये पूरे नहीं हो पाएंगे तो इनके गले तक पहुंचने में इस पट्टे को कितनी देर लगेगी? फिर जिसके गले में पट्टा हो वही कुत्ता भी हो जरुरी तो नहीं है.