कानून की देवी, खुली पट्टी और जले हुए नोट
–अक्टूबर 2024 में हटवाई थी जस्टिस चंद्रचूड़ ने कानून की देवी की आंखों से पट्टी
-आदित्य पांडे की कलम से…
-कानून की देवी की आंख से तब के सबसे बड़े ‘लॉर्ड’ ने पट्टी हटवाने का निर्देश दिया था. इस पट्टी को हटे छह महीने भी पूरे नहीं हुए हैं कि न जाने कितनी पोल पटि्टयां कानून की देवी देख चुकी हैं. पट्टी हटते ही कॉलेजियम के “बंद क्लब सिस्टम” नजर आया. एक दूसरे को ही न्यायाधीश बनाने की होड़ वाली आवाजें वो अब तक सिर्फ सुनती ही थीं लेकिन अब तो खुली आंखों से देखा कि कुछ परिवारों के पास ही यह अधिकार है.
यह भी सामने ही दिख गया कि कैसे न्यायाधीश के दोस्त होने का फायदा होता है और यदि आप सबसे बड़े ‘लॉर्ड’ साहब के दोस्त हों तो आपकी फीस करोड़ों में हो सकती है, आप चौबीस घंटों में से जिस समय चाहें अमूमन छुट्टी पर रहने वाली कोर्ट को खुलवा सकते हैं. यह सब कानून की देवी देख ही रही थीं कि अग्निदेवता ने उन्हें एक अद्भुत नजारा भी दिखा दिया. जज साहब छुट्टी मनाने के लिए गए हुए थे कि उनके निवास में रखे धन पर अग्नि देवता प्रसन्न्न हो गए. जब तक वरुण देवता के प्रतिनिधि स्वरूप फायर ब्रिगेड वहां पहुंचकर आग बुझाएं, तब तक नोटों से भरे बोरे और उनमें लगी आग किसी ने कैमरे में कैद कर ली. इधर फायर ब्रिगेड का बयान आया कि जज साहब के बंगले में लगी आग में कोई नोट नहीं जले और उधर वह वीडियो सामने आ गया जिसमें यह सफेद झूठ काले जले नोटों से उजागर हो रहा था. अब कानून की देवी हैरान हैं कि इससे तो अच्छा था आंखों पर पट्टी बंधी ही रहती, कानाफूसी में भले आपको पता सब चल रहा हो लेकिन इन्हें झूठ मान लेने की गुंजाइश बनी रहती है कि जब आंखों से देखा ही नहीं तो सच कैसे मानें. अब जज साहब के मुंह पर मक्खन लगा है और वो कह रहे हैं मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो. ये जो पट्टी हटाने का विचार था वहीं सारी गड़बड़ी छुपी हुई है. पट्टी होती तो चार लोग कहते कि जज साहब ने बारह बोरे नोट घर में भर रखे थे जो जल गए लेकिन देवी मान लेतीं कि फायर ब्रिगेड वाले साहब ने सही कहा कि कोई नोट नहीं जला. अब आंखें वीडियो देख रही हैं, जज साहब का बंगला देख रही हैं, आग बुझाते दमकल कर्मी देख रही हैं, बोरों में जलते नोट देख रही हैं और सुन यह रही हैं कि जज साहब खुद को निर्दोष बता रहे हैं. कानून की देवी की आंखों से पट्टी हटवाने वाले साहब ने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है. साफ नजर आ रहा है कि कॉलेजियम सिस्टम ने कानूनी सिस्टम को बंधक बना दिया है. खुली आंखों से नजर आ रहा है कि कैसे चंद वकीलों और दलालों के हिसाब से निर्णय बदल जाते हैं, साफ दिख रहा है कि बच्चियों से होने वाली ज्यादतियों तक में संवेदनशील तरीके से निर्णय न ले पाने वाले खुद को माई लॉर्ड और योर लॉर्डशिप कहला रहे हैं… आंख की पट्टी सिर्फ आंख ही बंद नहीं करती थी बल्कि कुछ हद तक कान तक आने वाली आवाजें भी रोक देती थी लेकिन पट्टी खुलने के बाद से वो निर्णय भी साफ सुनाई पड़ रहे हैं जो कहीं से भी कानूनी निर्णय न होकर पक्षपाती और गलत लोगों के समर्थन में ज्यादा हैं. काले जले नोटों में जो गांधी की छवियां जली हैं उनकी बेबसी तो नजर नहीं आती यदि आंखों पर पट्टी बंधी ही होती तो. रिटायर हो चुके सुप्रीम लॉर्ड कुर्सी पर फिर नहीं लौटते लेकिन अब कानून की देची को इंतजार है कि या तो चंद्रचूड़ या ऐसा कोई भी बड़ा ‘लॉर्ड’ आए जो पट्टी वापस बंधवाने का इंतजाम कर दे. छह महीने से जो पट्टी खुली उसने बुरे दृश्य ज्यादा दिखाए हैं, बेहतर है हाथ में न्याय की तराजू तो हो लेकिन आंख पर पट्टी कायम रहे.