Judiciary बोरों में पैसा रखने वाले इतने आराम से कैसे हैं
जज साहेबान को ट्रांसफर से ज्यादा कोई सजा मिलती क्यों नहीं दिखती
जज साहब के बंगले पर बोरों में भरे नोटों में लगी आग वाले मामले पर सुप्रीम चिंताएं जारी हैं और धड़ाधड़ मीटिंग्स भी चल रही हैं. इतनी सारी अधजली नगदी मिलने के बाद जांच तेज हुई है और उनके सरकारी आवास पर पुलिस के अलावा वे जज भी पहुंचे जिन्हें इस मामले की जांच करनी है. ऐसे मामलों में किसी भी आम आदमी को पुलिस अलग अलग कारणों से गिरफ्तार कर सकती थी लेकिन वर्मा का मामला हटकर है क्योंकि वे जस्टिस हैं और जज को कई विशेषाधिकार हैं.
पुलिस उनके घर सीधी छापेमारी करना तो दूर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बिना पुलिस इन्हें रोक तक नहीं सकती. जब रोका ही नहीं जा सकता तो उनकी गाड़ी की छानबीन कर सकने का सवाल ही नहीं है. यदि जज किसी गंभीर अपराध के आरोपी हों तो भी उन्हें उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय की स्वीकृति पर ही गिरफ्तार किया जा सकता है. गिरफ्तारी के दौरान और बाद में भी जज को कई विशेष कानूनी अधिकारहैं. गिरफ्तारी पर उन्हें तुरंत अदालत में पेश करना होता है. गिरफ्तारी के दौरान जज के खिलाफ कोई बयान या पंचनामा नहीं होता. चूंकि जज इन्हीं कॉलेजियम वाले साथियों यानी दूसरे जजों के सहारे से सिस्टम में आए होते हैं इसलिए इस बात की संभावना बहुत ज्यादा होती है कि उनके खिलाफ गिरफ्तारी की अनुमति ही न मिले. बोरों में भरे नोटों को लेकर यदि पूछताछ भी करनी हो तो पुलिस को कठिन रास्तों से ही गुजरना होगा जहां जजों के विशेषाधिकार का पूरा ध्यान रखना भी जरुरी होता है.