Sindoor पर आपत्ति करने और ‘शांति’ मांग रहे चेहरे याद रखें
-आदित्य पांडे कुछ लोग इतने पाकिस्तानपरस्त हैं कि असमय ही शांति शांति चिल्ला रहे हैं
यह हर बार का रोना है कि जब भारत अटैक न करे तो लाचार होने की तोहमत लगाएंगे और जैसे ही पाकिस्तान पर चौतरफा मार पड़नी शुरु हुई इनको शांति और पीस जैसे शब्दों के दौरे पड़ने लग जाते हैं. शांति किसे नहीं चाहिए? जो लोग पहलगाम गए थे वो भी रोजमर्रा की भागदौड़ से दूर शांति की ही तलाश में वहां गए थे. अब शांति के पैराकारों ने नया तर्क गढ़ा है कि युदध की बातें वो ही करते हैं जिनके परिवार का कोई सदस्य लड़ाई में नहीं जाता, कमाल यह है कि मैंने खुद फौजियों और उनके परिवारों को ऐसे आतंकी हमलों के बाद ईलाज करने की ही बात करते सुना ही नहीं देखा है. कभी आइये हमारे साथ फौज में रह चुके बुजुर्गों से बात कर देखिए. दरअसल शांति की बातें दो ही तरीके से होती हैं, एक जब आपके पास इतनी ताकत हो कि आप सामने वाले को बच्चा समझ कर शांति बनाए रखें और दूसरा यह कि आप सामने वाले से खौफ खाए बैठे हों.
भारत ने अब तक पाकिस्तान को बच्चा समझकर शैतानियां करने दीं और हर बार माफ करता रहा लेकिन यदि इसी बच्चे की हरकतें परिवार के लिए नासूर बन जाएं तो क्या करेंगे. दूसरे तरह की शांति के मामले हमने सुने ही हैं जब हमारा एक दिवंगत प्रधानमंत्री खुलकर कहता था कि मुझ पर मुंबई हमले के बाद खूब दबाव पड़ा लेकिन मैंने दबाव झेलकर भी कार्रवाई नहीं की क्योंकि पाकिस्तान के पास परमाणु बम भी है. इसे थोड़ा भद्दे तरीके से कहें तो एक होती है बिके हुए व्यक्ति की कथित शांति जो दरअसल आत्मसमर्पण होता है और दूसरी होती है वह शांति जिसमें सामने वाले को यह पता होता है कि अब किसी शैतानी का हश्र क्या होगा.
अभी जो शांति के मसीहा सामने आ रहे हैं ना उन्हें गौर से देख लीजिए, ये सब किसी न किसी तरह से बिके हुए लोग हैं. किसी के अकाउंट में विरोधियों का पैसा आ जाता है तो किसी को दूसरे लालच खरीद लेते हैं. वैसे शांति के नारे लगाने वालों से पूछिए कि कश्मीरी पंडितों को तो इसी शांति पाठ ने जम्मू के कैंपों तक पहुंचा दिया फिर कल रात वहां भी उनकी जान पर पाकिस्तानी मिसाइलें क्यों मंडरा रही थीं. दरअसल हम लंबे समय तक ऐसी बकवास सोच की कैद में रहे हैं जहां बुरा मत देखो, बुरा मत कहो वाले बंदरों से लेकर बिना खड़ग बिना ढाल आजादी मिल जाने की बातें ही बताई गई हैं. इस सोच ने बोस और भगत सिंह या आजाद की सोच को हर तरह से निगल जाने की कोशिश की और काफी हद तक इसमें सफल भी रहे. आज शांति का राग अलापने वालों को देखिए, ये कहीं से भी उन पुराने ‘शांतिप्रिय’ लोगों से कहीं अलग नजर नहीं आएंगे जिनके लिए अंग्रेज पालकियां सजवाते थे, जिनकी कैद सिर्फ इसलिए होती थी कि लोगों के बीच यह संदेश न जाए कि ये अंग्रेजों के पिट्ठू हैं. जिन्हें कैद में फूलों की क्यारियों के बीच कमरे दिए जाते थे और ‘शांति’ से किताबें लिखने के लिए सुविधाएं मुहैया कराई जाती थीं. जिन्हें आज शांति याद आ रही है वो कब कब चुप रहे यह याद करना ज्यादा जरुरी है और इससे भी जरुरी है उनकी यह जांच करवाना कि आखिर किन सुविधाओं ने उन्हें देशद्रोही होने के स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है. किसी को सीधे खाते में आने वाले पैसे की वजह से शांति याद आ रही है तो किसी को विदेशी पासपोर्ट हसिल करने के एवज में हर पल अपने देश को गरियाने का काम सौंप दिया गया है. एक वह देश है जो अपने जन्म के समय से कहता आ रहा है कि भले भूखे मर जाएं लेकिन परमाणु बम तो बनाएंगे और उसका निशाना तयशुदा तौर पर भारत होगा. हद यह कि उस देश की अवाम वाकई भूखे नंगे रहते हुए भी इस बात के लिए तैयार रही, आज भी उनका आर्मी चीफ यदि सैनिकों के बीच बोलने खड़ा होता है तो आयतें पढ़ पढ़ कर उन्हें बताता है कि आप तो अल्लाह की राह के सैनिक हो, ठीक वही बात जो पहलगाम के आतंकियों के दिमाग में भरकर उन्हें ‘काफिरों’ को मारने के लिए भेजा गया था. जिनके दिमाग में अब तक यह कूड़ा भरा पड़ा है कि युद्ध नहीं होना चाहिए उन्हें अपने दिमाग का ईलाज कराना चाहिए क्योंकि अब तक बिना लड़े उनकी हर बात मान ली गई, अपनी लाश पर भारत के बंटवारे की बात कहने वाले गांधी ने अपनी आंखोँ से बंटवारा देख लिया तब तो यह शांति राग बंद होना चाहिए. युद्ध किसी को नहीं चाहिए लेकिन ऐसी शांति भी नहीं चाहिए जो हर बार पुलवामा से लेकर पहलगाम तक मरघट की याद दिलाए. हां, जिन्होंने यह तर्क दिया हो कि जिनके परिवार के लोग सेना में होते हैं वो युद्ध नहीं चाहते उन सभी को यह समझ लेना चाहिए कि हर देशवासी के लिए सेना परिवार ही नहीं उससे भी कहीं बढ़कर है. सेना का हर व्यक्ति हमारे परिवार का अभिन्न सदस्य है चाहे आप इसे जिस रिश्ते में जोड़ लें. आप हमें समझाएंगे कि युद्ध कितनी तबाही लाता है तो मैं आपको यह समझाने को भी तैयार हूं कि झूठी शांति युद्ध से ज्यादा तबाही कैसे लाती है. जब सेना युद्ध के मोर्चे पर हो तब उसका विश्वास डिगाने वाली बातें कर रहे लोग मेरे, आपके या देश के साथी तो नहीं हो सकते, इन्हें आप क्या नाम देना चाहते हैं आप जानें, मैं तो युद्ध के समय शांति के नारे लगाने वालों को देशद्रोही कायर कहता हूं.