May 16, 2025
देश दुनिया

Cease Fire का जश्न और सामाजिक ताने बाने का फर्क

-आदित्य पांडे

अपनी बर्बादी पर जश्न मना रहे देश की जनता का सामाजिक व्यवहार क्या है

पहलगाम से अब तक की सारी घटनाओं को लेकर आपने खबरिया नजरिए पर नजर रखी, युद्ध की आहट को महसूस किया और जीत हार के गणित समझने में उलझे रहे लेकिन एक बार 22 अप्रैल से आज तक की सभी घटनाओं को समाज के नजरिए से भी देखिए बल्कि हो सके तो भारत और पाकिस्तान में बसे दो अलग समाजों के लिहाज से देखिए और आप चकित रह जाएंगे कि कभी एक ही देश रहे ये दो मुल्क एक ही बात पर कितने अलग तरीके से प्रतिक्रिया देते हैं. पहलगाम होते ही पाकिस्तान की तरफ से प्रतिक्रिया भले कोई न आई हो लेकिन अंदाज यही था कि 26 लोगों के खून बहने पर इतना बवाल मचाने की क्या जरुरत है. जिस देश की फौज हजारों के मरने पर उफ न करती हो बल्कि जिसने अपने जन्म के समय से ही भारत लाशें भर भरकर ट्रेनें पहुंचाई हों, जिनके लिए खून बहाने में दिल पसीजने जैसा कोई मुद्दा ही खड़ा न होता हो, उनकी इस प्रतिक्रिया पर अचरज न होना था और न हुआ लेकिन भारत में? यहां सबक सिखाने की तैयारियों के लिए समय लिया जाना ही हमें भारी पड़ रहा था, हम उतावले थे कि आखिर छब्बीस लोगों का खून बहा है, बल्कि भारतीयों का कहें तो पच्चीस ही (क्योंकि एक तो नेपाली थे), लेकिन जो जान की कीमत जानते हैं उनकी तरफ से यह सवाल स्वाभाविक भी था.

जो भावना का ज्वार देशभर में मृतकों के प्रति उमड़ा वैसा आपने कभी पाकिस्तान किसी मसले पर देखा नहीं होगा. बलूचों पर जिस तरह जुल्म होता रहा है या अब बलूच जिस तरह से पाकिस्तानी फौजियों या पुलिस को उड़ा देते हैं, उसमें कभी आपने भावनाओं की वह तीव्रता तो छोड़िए अंश मात्र भी नहीं दिखा होगा. इसके बाद शुरु हुई बदले की कार्रवाई, उसमें जमकर नुकसान उठाने के बाद भी पाकिस्तान ने ऐसा ही दिखाया मानो उसे कोई फर्क न पड़ता हो. अब तक भारत की तरफ से हुए किसी भी हमले की हदें पीओके के कुछ हिस्से से आगे नहीं बढ़ी थीं लेकिन इस बार पाकिस्तान का कोई ऐसा बड़ा शहर नहीं बचा जहां टारगेट पर भारतीय हमला अचूक तरीके से न लगा हो, परमाणु संयंत्र के दरवाजे पर जब बम गिरा तो पाकिस्तान की हिम्मत टूटी लेकिन उससे पहले बेशुमार जानें गंवाने, कई जेट खो देने अैर सैन्य ठिकानों तक को न बचा पाने वाले पाकिस्तान ने यह कमाल जरुर किया कि संसद में मंत्री एक से एक झूठ बोलते रहे और प्रधानमंत्री खुद बताने पहुंचे कि भारत ने हमारा हवाई सुरक्षा वाला सिस्टम तोड़कर अस्सी जेट पाकिस्तान में भेज दिए. साथ ही यह भी जोड़ दिया कि हमने पांच को गिरा भी लिया और जब रक्षामंत्री से पूछा गया कि पांच में से एक के तो दर्शन करा दें तो उन्होंने बताया कि हमें तो सोशल मीडिया से पता चला है कि हमने पांच जेट गिराए हैं. भारत की तरफ से आने वाली सेना यह है एक समाज बतौर झूठ बोलने और सफेद झूठ बोलने की ट्रेनिंग. भारत की प्रेस ब्रीफिंग देखिए और पाकिस्तान की कई देशों के रिपोर्टरों के सामने की गई प्रेस कांफ्रेंस को देखिए. यह पूरा मामला सामाजिक ताने बाने और परवरिश का है. जब हमले शुरु भी नहीं हुए थे तो 72 हूरों के लिए पेट पर बम बांध लेने वाले माधुरी दीक्षित से लेकर ऐश्वर्या तक को अपनी बांदी बनाने के बयान दे रहे थे, भारत की तरफ से एक ऐसा मामला बता दीजिए जहां इस तरह की ओछी बातें की गई हों. फिर आया वह मौका जब पाकिस्तान को समझौते के लिए भागना पड़ा. दरअसल भारत ने हमले में पाकिस्तान के एक न्यूक्लियर सेटअप का गेट उड़ा दिया और नूर खान एयरबेस पर जो भारतीय जेट्स ने तबाही मचाई उसके बाद इस बात का हंगामा हो गया कि कहीं परमाणु संयंत्र में लीक तो नहीं हो गया. हद यह कि झूठ को ही जीने और झूठ पर ही भरोसा करने वाले पाकिस्तानी सिर्फ पाकिस्तान में नहीं बल्कि लंदन सहित दुनिया के कई कोनों में जश्न मना रहे हैं और ठीक उसी समय अमेरिका का एक विमान यह पता लगाने नूर खान इलाके में मंडरा रहा है कि पता तो करें क्या वाकई न्यूक्लियर लीक जैसा भी कुछ हुआ है. जश्न मना रही भीड़ को पता भी नहीं है कि यदि वाकई न्यूक्लियर लीक जैसा कुछ हुआ है तो वे किस खतरे में हैं, आईएमएफ ने जो कर्जा दिया है उससे कहीं ज्यादा भारत के हमलों में स्वाहा हो चुके हैं और यह भी कि पाकिस्तान को घुटनों पर बैठकर भारत से हमले बंद करने को कहना पड़ा. एक समाज के तौर पर हमसे महज बीस प्रतिशत आबादी वाले पाकिस्तान ने जितनी बेहूदगी दिखाई है वह यह भी बताता है कि हमें कितना सतर्क रहने की जरुरत है. इस सबके बीच एक और खास बात यह भी थी कि पाकी रक्षामंत्री ने कहा कि मदरसे में पढ़ रहे बच्चे हमारे लिए दूसरी पंक्ति की सेना हैं और यदि जरुरत पड़ी तो हम उन्हें भी युद्ध में बुला लेंगे(झोंक देंगे), समझने की जरुरत है कि ऐसे ही बड़ी संख्या में सेटअप हम हिंदुस्तान में देख रहे हैं और कमोबेश वैसी ही सीख यहां ये भी सीख समझ रहे हैं. असली खतरा यहां से शुरु होता है. इस बार भी हमने समाज के तौर पर जिम्मेदार व्यवहार किया है लेकिन वैसी दूसरी पंक्ति यहां खड़ी न हो, इसका तो ध्यान रखना ही होगा.