June 26, 2025
देश दुनिया

Cease Fire से क्या खोया क्या पाया हमने

आदित्य पांडे 

संघर्ष के नाटकीय तरीके से रुकने से कई मुद्दे अब भी अटके ही रह जाएंगे

भारत पाकिस्तान संघर्ष विराम की खबरों के साथ ही सोशल मीडिया पर उन संदेशों की बाढ़ सी आ गई जिन्हें युद्ध का यूं रुकना पसंद नहीं आ रहा. इनमें से कुछ तो परंपरागत तरीके से मोदी के हर कदम का विरोध करने वाले हैं लेकिन कुछ वो भी हैं जो चाहते थे कि इस बार तो कुछ ‘फुल एंड फाइनल’ जैसा कुछ हो जाए. उनके सपनों में भारत का पीओके पर कब्जा कर लेना, बलूचिस्तान के स्वतंत्र होने की घोषणा कर देना, मुनीर को पकड़ लाना या इमरान समर्थकों द्वारा पाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसी किसी स्थिति की कल्पना रही होगी जिसके पूरे न होने पर कड़वाहट हो सकती है. यह तो हम सोशल मीडिया वीरों की बात है जो न इस पूरे घटनाक्रम को जानते समझते हैं और न जिन्हें जियो पॉलिटिक्स की ठीक ठीक समझ है. वे लोग जो अंतरराष्ट्रीय मामलों को गंभीरता से समझते हैं, उनके हिसाब से जरुर यह भारत की एक बड़ी जीत है. इस बात को कुछ समय के लिए दरकिनार रखें कि पाकिस्तान ने संघर्ष विराम की घोषणा के बाद भी हरकतें जारी रखीं और हमले करने की कोशिशें भी जारी रखीं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तो डोनाल्ड ट्रंप ने महफिल लूट ही ली है कि देखो मैंने संघर्ष रोक दिया और यह काफी हद तक सच भी है. भले भारत का बयान हो कि पाकिस्तान ने बातचीत की पेशकश की और बिना किसी मध्यस्थता के समझौते तक पहुंचा गया लेकिन सभी जानते हैं कि कई शक्तियों के दखल के बिना इस मुकाम तक पहुंचा नहीं जा सकता था.

इसे भारत की जीत कहना फौरी तौर पर बड़ा बयान लग सकता है लेकिन हकीकत यही है कि संघर्ष के इन चार दिनों में भारत ने वह हासिल कर लिया है जिसके लिए घिसटते समझौतों आपसी समझ बनाने के चक्कर में चार दशक भी लग सकते थे. पहली बात तो यही कि इस बार हमारे ड्रोन पाकिस्तान के उन कोनों तक भी पहुंच गए जिन्हें पाकिस्तान दूरी के लिहाज से सुरक्षित मान बैठा था. भारत ने यह भी बता दिया कि पाकिस्तान का कोई ऐसा कोना या ठिकाना नहीं है जिस तक हमारी पहुंच न हो. दूसरी बड़ी बात कि दस उन आतंकी ठिकानों को खत्म कर दिया गया जो सालहा साल आतंक की ट्रेनिंग के सेंटर बने हुए थे और इनमें लश्कर से लेकर जैश तक के मुख्य मरकज शामिल हैं. सौ से ज्यादा वो आतंकी मारे गए हैं जो आज नहीं तो कल किसी न किसी पहलगाम घटना के लिए तैयार थे. पांच तो आतंकी आका ही मारे गए हैं और जिन आतंकियों के परू के पूरे परिवार इन हमलों में साफ हो गए हैं उनके बयान तो आपने देखे ही होंगे कि काश मैं भी मर ही जाता. इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा टेस्टिंग एक दूसरे की क्षमताओं को आंकने-नापने की हुई है और इसमें भारत का जो मजबूत पक्ष सामने आया है वह कमाल का रहा है. सौ प्रतिशत तक की इंटरसेप्टिंग और मिसाइलों, ड्रोन्स को मार गिराने की क्षमता जब वास्तविक परख पर खरी उतरी तो इसे सैन्य स्तर पर ‘द बेस्ट’ ही कहा जाएगा. इनमें भारत निर्मित जिन सैन्य उपकरणों ने उपयोगिता दिखाई है उनके लिए नए बाजार खुल रहे हैं वो तो एक अलग ही आयाम है. इस संघर्ष में हमने यह सीख लिया कि कौन हमारे साथ कितनी मजबूती से खड़ा है और तुर्की (और ईरान, अजरबैजान जैसे) कुछ देश एक्सपोज भी हुए कि इजराइल जैसे देशों से महारी मजबूत दोस्ती भी खरे सोने की तरह दमकी. चीन को लेकर इस संघर्ष ने हमें सोचने के नए आयाम दिए हैं जिसने साफ कहा कि वह पाकिस्तान के साथ खड़ा है, वह भी तब जब माना जा रहा था कि चीन अधूरे मन से पाकिस्तान को साथ देगा क्योंकि वह कभी भारत का बाजार नहीं खोना चाहेगा, खासतौर पर तब जब उसका सबसे बड़ा बाजार यानी अमेरिका उसके हाथ से लगभग जा ही चुका है. इस गंभीर और तनाव वाले संघर्ष में दो मजेदार पहलू भी उभर आए. पहला तो यह कि पाकिस्तान जिन्हें हथियार और सैन्य उपकरण समझकर चीन को खूब पैसा इनके बदले दे रहा था, वह सब कचरे से ज्यादा कुछ नहीं निकला. अब चीन से पाकिस्तान इस बात की शिकायत कर रहा है और चीन का जवाब है कि हमारे उपकरण तो बढ़िया काम कर रहे हैं यानी प्रकारांतर से वह कह रहा है कि पाकिस्तानी लोगों को इन हथयारों को इस्तेमाल करते ही नहीं आए, दूसरे शब्दों में वह पाकियों को बेवकूफ बता रहा है. दूसरा मजे का पक्ष यह कि हमारे सामने पाकिस्तान के हुक्मरानों से लेकर सैन्य प्रमुखों तक का मानसिक स्तर सामने आ गया. वैसे इसमें एक और बात जोड़ी जा सकती है कि इस संघर्ष के दौरान पाकिस्तान जिस अंदाज में आईएमएफ से भीख मांगने में सफल रहा है वह बताता है कि इस काम यानी भीख मांगने में अब वह कितना एक्सपर्ट हो चुका है और यह एकमात्र वह स्किल है जिसमें न भारत उसे मात दे सकता है और न कभी देना ही चाहेगा.