Bihar में मतदाता सूचियाें की गड़बड़ और लोकतंत्र की रक्षा
बिहार की जनसंख्या का दस प्रतिशत तक पहुंच चुका है फर्जी या अनचीन्हे मतदाताओं वाला आंकड़ा
2011 की जनगणना, राष्ट्रीय परिवार स्वस्थ्य सर्वेक्षण व अन्य के आंकड़ों पर जब बिहार में वैध मतदाताओं की संख्या का अनुमान लगाने की बात हुई तो बड़ा तथ्य यह सामने या कि वास्तविकता और कागजी संख्या में भारी फर्क है. चुनाव आयोग के अनुसार 2024 के चुनावों में बिहार में 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाता हैं जबकि जनगणना और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण कहता है ये संख्या 7.12 करोड़ होगी. यानी 77 लाख नाम मौजूदा सूचियों में से हटने चाहिए. इतना फर्क न तो सामान्य है और न तकनीकी चूक. आखिर यह आंकड़ा राज्य की कुल मतदाता संख्या का लगभग 10 प्रतिशत तक जा बैठता है जो चुनावी परिणाम बदल डालने के लिए काफी है. दरभंगा और मधुबनी जैसे जिलों में तो यह आंकड़ा 21 प्रतिशत से भी ज्यादा है. सीतामढ़ी जिले की जनसंख्या तो सिर्फ 11.3 प्रतिशत बढ़ी लेकिन मतदाताओं की संख्या 29.3 प्रतिशत बढ़ गई. राज्य की मतदाता सूची में लाखों नामों का कोई जनसांख्यिकीय आधार ही नहीं है. जाहिर है ये हालात लोकतंत्र की निष्पक्षता पर गंभीर संकट बन सकते हैं.
2020 के विधानसभा चुनावों में बिहार की 243 सीटों में से 90 पर जीत-हार का अंतर 10,000 या इससे कम वोटों का रहा था जबकि अब हर विधानसभा क्षेत्र में औसतन 50,000 तक फर्जी नाम दर्ज बताए जा रहे हैं. यह रिपोर्ट अभी बिहार की है लेकिन ऐसे ही हालात कई राज्यों में हैं और इनमें सीमवर्ती राज्य ज्यादा आगे हैं जैसे पश्चिम बंगाल में भी कमोबेश यही हाल बताए जाते हैं और वोटबैंक के चलते टीएमसी मतदाताओं की सही पहचान का हमेशा विरोध करती है. यदि मतदाता सूची ही अविश्वसनीय हो तो नतीजे कैसे विश्वसनीय माने जाएं. बिहार की मतदाता सूची के 77 लाख फर्जी नाम एक चेतावनी हैं और हमारे लिए सीधा संदेश भी कि मतदाताओं की सही पहचान किए बिना हम लोकतंत्र की रक्षा नहीं कर सकते.