July 18, 2025
देश दुनिया

Ahilya Bai जिनका जीवन दर्शन उन्हें लोकमाता बनाता है

आज उस महान विभूति का तीन सौवां जन्मदिवस है जो अपने सुशासन के चलते आज भी लोगों के दिलों पर राज करती हैं

भारतीय इतिहास में लोक कल्याण की बात हो लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर का नाम अग्रणी रुप से आता है. 31 मई, 1725 को औरंगाबाद के चौड़ी गांव में जन्मीं अहिल्या बाई के पिता माणकोजी और मां सुशीला बाई थीं. अहिल्याबाई पर बाल्यकाल में ही मल्हारराव होलकर की दृष्टि पड़ी और उनके संस्कार, बुद्धिमत्ता और व्यवहार से प्रभावित मल्हार राव ने उनका अपने पुत्र खांडेराव से विवाह किया और इस तरह वे इंदौर के होलकर राजघराने की बहू बनीं.

1754 में पति खांडेराव की युद्ध में असमय मृत्यु हो गई और कुछ ही सम बाद ससुर मल्हारराव होलकर नहीं रहे, इसके बाद उनके पुत्र मालेराव भी चल बसे लेकिन अहिल्याबाई ने लोकल्याण को दृष्टिगत रखते हुए निजी दुखों से ऊपर आकर साम्राज्य संभाला. 1767 में उन्हें होलकर साम्राज्य की कमान मिली और फिर उनका आचरण और सुशासन उन्हें ‘लोकमाता’ की उपाधि तक ले गया.

राजधानी महेश्वर में रहते हुए सादगी भरा और धार्मिकता के साथ उन्होंने लोकल्याण के कई मानक रचे. अहिल्याबाई का सूत्र वाक्य था “राजा का पहला कर्तव्य प्रजा का पालन है, अपना लाभ नहीं.” देवी अहिल्याबाई ने सांस्कृतिक पुनरुत्थान की जोत जगाते हुए देश भर में सैकड़ों मंदिरों, घाटों, कुओं, धर्मशालाओं, सदावर्त की नींव रखी. लगभग हर बड़े हिंदू तीर्थ पर उनकी छाप आज भी देखी जा सकती है, चाहे वह पूर्व से पश्चिम में देखें या उत्तर से दक्षिण. 1669 में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़ दिया था उसे भी मां अहिल्या ने 1780 में फिर बनवाया. उन्होंने सड़कों, जल प्रबंधन, आवागमन, सुरक्षा जैसे मामलों में भी उनकी सोच बेहद स्पष्ट थी, उन्हीं के शासनकाल में काशी से कलकत्ता तक सड़क बनी. आज भी अहिल्याबाई का व्यक्तित्व प्रेरणा देता है कि ईमानदारी, त्याग व सेवा भाव से कैसे शासन चलाया जा सकता है. अहिल्याबाई का सम्पूर्ण जीवन एक ग्रंथ है, जिसमें त्याग है, धर्म है, नीति है, नेतृत्व है और सबसे बढ़कर है लोकमंगल. और इसी के चलते यह ‘लोकमाता’ आज तक हमारे दिलों पर राज करती हैं.