Heat Wave और हमारी बढ़ती जिम्मेदारियां
जलती धरा से इंसानी जानें जाने की दर तेज हो गई है.जनजीवन अस्तव्यस्त है, सावधानियां बताई जा रही है और भारत के कई हिस्सों में 45 से 50 डिग्री सेल्सियस तक तापमान दर्ज हो रहा है. औद्योगिक इकाईयों की वजह से, परिवहन के बढ़ते साधनों के लक्जरी में बदलते जाने से, जलते अपशिष्ट, कटते पेड़ों और जंगल की आग ही नहीं फैलते प्लास्टिक के दायरे ने भी इसमें जमकर बढ़ोतरी कराई है. कार्बन डाइऑक्साइड के साथ अन्य जहरीली गैसों ने खुद उसी इंसान का जीना दूभर कर दिया है जिसका स्वार्थ इस सबकी जड़ है लेकिन खामियाजा सिर्फ इंसानों को नहीं उठाना पड़ रहा है बल्कि पशु, पक्षी, कीट-पतंगों सहित पूरी धरती को इसके नुकसान झेलना पड़ रहे हैं. हीटवेव बढ़ रही है तो हरियाली याद आती है, पेड़ पौधों की जरुरत लगने लगती है लेकिन सीजन बदलते ही हम ये बातें भूल जाते हैं. पेड़ पौधे हमारी हर तरह से सुरक्षा करते हैं, आपदाओं के दौरान सुरक्षा कवच बनते हैं. पेड़-पौधों का हमारे जीवन से क्या संबंध है लेकिन अपनी सुविधा से इस बात को भूल जाते हैं. इंसान के पास जो विशेषता है दिमाग होने की उसका उपयोग होना तो इस बात के लिए चाहिए था कि वह इस धरती के प्रत्येक जीव के लिए धरती को अनुकूल बनाता लेकिन उसने तो अपने ही लिए धरती रहने लायक नहीं छोड़ी.
वृक्ष का कर्ज भी चुकाएं
हमारे वेद, पुराण, उपनिषद, धार्मिक ग्रंथ सभी संस्कृति और समाज, सभ्यता, इतिहास के साथ प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण देने की शिक्षा देते हैं. प्रकृति के दिए संसाधनों के साथ छेड़छाड़ का परिणाम ही है कि आज हम आग उगल रही धरा पर हीटवेव झेल रहे हैं. पृथ्वी को विनाश से बचाने के लिए हमें जल-ऋण और वृक्ष-ऋण को चुकानें की जरुरत है और यदि अब भी हम इसकी गंभीरता नहीं समझ पाए ताे बहुत देर हो चुकी होगी.