मेंस्ट्रुअल हाइजीन और हेल्थ से परे: औरतों की राह में पीरियड्स के ड्रामे की बाधा!
– स्वाति शैवाल
हालांकि यूनाइटेड नेशन के कैलेंडर के लिहाज से इंटरनेशनल मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे, 28 मई को मन गया लेकिन क्या इस एक तारीख में पीरियड या मेंस्ट्रुअल हाइजीन और हेल्थ को वाकई बांधा जा सकता है? जवाब है नहीं और इस डे का असल मकसद भी किसी एक तारीख तक बांधकर रहना नहीं है. तो क्यों न एक किसी तारीख से इतर इस प्रक्रिया से जुड़े कुछ ऐसे मुद्दों पर बात की जाए जो बेवजह हर जगह छाए हुए हैं और जिन्होंने औरत होने का मतलब कमजोरी, कम्फर्ट और दिखावे तक सीमित कर डाला है.
एक सामान्य प्रक्रिया का असामान्य बना दिया जाना:
वैसे तारीख और पीरियड का आपसी रिश्ता बहुत गहरा है. पर इससे इतर पीरियड्स न बीमारी है, न ही कोई कमजोरी. यह एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है जो महिलाओं के जीवन का महत्वपूर्ण और आवश्यक हिस्सा है. 95 प्रतिशत से अधिक महिलाएं इसके साथ स्वस्थ और सामान्य जीवन जीती हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों में जिस तरह से पीरियड्स को महिलाओं के रास्ते की बाधा, उनके विकास में रोड़ा और उनके जीवन की समस्या बनाकर प्रस्तुत किया जा रहा है, वह कई सारे प्रश्न खड़े करता है.
सोशल मीडिया से फेमिनिज्म तक:
बीते कुछ महीनों और सालों में ऐसे कई दृश्य और खबरें मीडिया और सोशल मीडिया पर चर्चा बनीं जिनमें पीरियड्स को या तो एक हौव्वा बनाकर पेश किया गया या फिर इसके बहाने औरतों को कमजोर बताकर एक्स्ट्रा बेनिफिट्स देने की कोशिश की गई. उदाहरण के लिए, एल एंड टी अर्थात लार्सन एंड टुब्रो द्वारा एक दिन की पीरियड्स लीव देने का ऐलान. यानी कंपनी में काम करने वाली महिलाओं को एक दिन की पीरियड्स लीव मिलेगी और उस दिन की उनकी सैलरी भी नहीं कटेगी. बताया गया कि इस कदम से कंपनी में काम करने वाली हजारों महिलाओं को छूट का लाभ मिलेगा. ऐसा करने वाली यह कोई पहली कंपनी नहीं है. महिलाओं को महिला होने के नाते दी जा रही यह पहली छूट नहीं है. गूगल बाबा की मानें तो 1947 से जापान द्वारा औपचारिक रूप से प्रारंभ की गई पीरियड्स लीव को बकायदा उनके लेबर लॉ के अंतर्गत शामिल किया गया था. तब से अब तक कई देशों ने इस राह पर चलते हुए पीरियड्स लीव का ट्रेंड शुरू कर डाला. सोशल मीडिया या
पिछले दिनों एक फिल्म आई थी- मिसेज. इस फिल्म के एक दृश्य ने पुरानी यादें ताजा कर डालीं. इस फिल्म के एक सीन में नायिका को पीरियड्स की वजह से रसोई में जाना वर्जित कर दिया जाता है. हालांकि हीरोइन इस बात से प्रसन्न है क्योंकि पीरियड न होने पर सामान्यतः उसका पूरा दिन सिर्फ और सिर्फ किचन में बीतता है. रसोई या अन्य जगहों पर महावारी के दिनों में जाना या कुछ भी छूने से वंचित रखना कई भारतीय घरों में एक सामान्य प्रैक्टिस रही है, अब भी है. इसके पीछे का एक कारण यह भी था कि कम से कम उसी बहाने महिलाओं को तीन चार दिन आराम मिल जाया करता था. वरना तो हर दिन सुबह से शाम एक से रूटीन में बेल की तरह जुते रहना ही था. खैर…
दिखावे का पीरियड, छलावे की दुनिया:
जो चीजें अभी कुछ समय में पीरियड्स को लेकर सामने आ रही हैं वह चिंता में डालने वाली हैं. पीरियड लीव देने के प्रति चिंता तो खैर इसमें शामिल है ही एक और चीज जिसने मुझे चकित किया वह है सोशल मीडिया पर लगभग एक सी स्क्रिप्ट के साथ किए जा रहे अभिनय. सीन नंबर – 1, कोई महिला या युवती बैठी है. आज उसके पीरियड्स शुरू हो गए हैं (अनोखी बात!), वह इसकी घोषणा करती है और उसके साथ का युवक जो उसका पति, पार्टनर या मित्र हो सकता है, वह ऐसी चिंता में, मानो मेरी पत्नी, पार्टनर या मित्र पर अचानक किसी गंभीर संक्रमण ने हमला कर दिया हो, उस महिला के लिए हॉट वाटर बैग, चॉकलेट्स तथा तमाम तरह का फैंसी नाश्ता और आराम का इंतजाम करता है और पूरी तरह समर्पण के साथ उसके हर महीने आने वाले इन पीरियड के लिए युद्ध स्तर की तैयारी करता है. सीन नंबर-2, कुछ शहरी युवा और पुरुष सजावटी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज लेकर बैठे हैं. ये डिवाइसेज यानी यंत्र उनके पेट पर चिपकाए जाते हैं और उनके शरीर में दर्द की लहरें पहुंचाई जाती हैं. ताकि उन्हें पता चले कि पीरियड के दौरान महिलाएं किस तकलीफ का सामना करती हैं. इस बीच वहां दर्शकों की भांति मौजूद महिलाएं उनकी दर्द सहने की क्षमता पर कटाक्ष करती हैं, हंसती हैं और अंततः पुरुष हार मानी की तर्ज पर कह देते हैं कि भैया, अक्लफूटी, हमसे न हो पाएगा!
क्या यह सच में हार है?
मेरे दिमाग में पेरिस ओलम्पिक में चौथे स्थान पर आने वाली वेटलिफ्टर मीराबाई चानू के शब्द अब भी घूमते हैं. उन्होंने इस खराब प्रदर्शन के बाद कहा, मैं कमजोर महसूस कर रही थी क्योंकि यह मेरे पीरियड्स का तीसरा दिन था! इसलिए मैं अपना बेस्ट नहीं दे पाई. शायद मीराबाई न जानती हों लेकिन उस दिन यह कहने के बाद उन्होंने मेरे जैसी न जाने कितनी ही महिलाओं का दिल तोड़ दिया होगा. क्या उन्हें पहली बार इस मंथली साइकिल का सामना करना पड़ा? क्या वह स्पोर्ट्स के क्षेत्र में अकेली महिला हैं जिन्हें पीरियड की वजह से समस्या हुई? मैं उनकी बात को पढ़ने के बाद इन सवालों से घिर गई. फिर मेरे सामने आई चीन की एथलीट ली मेईजेन की कहानी, जिन्होंने 42 किलोमीटर की मैराथन के बीच में अचानक पीरियड्स शुरू हो जाने के बाद भी रेस रोकी नहीं, पूरी की. इस बीच उनके शरीर से रक्त की धारा बहती रही. इसी कड़ी में याद आया 2016 के रियो ओलंपिक में स्विमिंग फू यूएनहाउवी नामक तैराक का इंटरव्यू. उन्होंने अपनी टीम के साथ चौथे नंबर पर फिनिश करने के बाद कहा, कि उन्होंने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया. यह उनका पीरियड्स का दूसरा दिन था इसलिए थकान ज्यादा हो रही थी लेकिन यह कोई एक्सक्यूज नहीं है क्योंकि मै इसके अलावा भी अच्छे से तैर नहीं पाई.
भेदभाव पैदा करने वाली सोच:
इसी साल भारतीय सेना में पहली बार 17 महिला कैडेट्स की बैच एनडीए (नेशनल डिफेंस एकेडमी) से पास होकर निकली है. मुझे याद है एनसीसी के दिनों में जब परेड के दौरान कोई लड़की पीरियड्स की बात करती थी तो हमारे इंस्ट्रक्टर एक ही बात कहते थे, आर्मी में युद्ध लड़ेगी और पीरियड आ गए तो क्या आराम करने बैठ जाओगी? बस इस एक लाइन को सुनने के बाद न कोई दर्द याद रहता था, न ही समस्या. चलिए आर्मी, पुलिस या ऐसे कामों को छोड़ एक सामान्य महिला की दिनचर्या को ही लीजिए. क्या पीरियड के दौरान हर महिला आराम करने के लिए काम से छुट्टी ले लेती है? बल्कि खेतों में काम करने से लेकर मजदूरी करने और घर के तमाम काम खत्म कर दफ्तर भी जाने वाली महिलाएं उन दिनों में सहजता से काम करती हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि कुछ ही महिलाओं की स्थिति ऐसी होती है जिन्हें पीरियड के दौरान दवाइयों या बेड रेस्ट की जरूरत पड़े. ज्यादातर महिलाएं इसके साथ भी आसानी से काम करती हैं क्योंकि यह उनके जीवन का अहम हिस्सा होता है. बल्कि जिम, एक्सरसाइज, वॉक आदि के दौरान भी कुछ चीजों को छोड़कर पीरियड्स के समय भी रूटीन को कंटिन्यू किया जाता है. अगर हर महिला पीरियड्स में छुट्टी लेकर घर बैठने लग जाए तो मुश्किल खड़ी हो जाएगी. यही नहीं इससे तो उसके आगे बढ़ने के चांसेज भी खत्म हो जाएंगे.
हौव्वा नहीं, हिम्मत बनाइए:
शहर में रहने वाली कुछ प्रतिशत आबादी शायद यह नहीं जानती कि आज भी महिलाओं के एक बड़े प्रतिशत के पास सैनिटरी नैपकिंस तक की सुविधा नहीं है और हर साल बड़ी संख्या में महिलाएं इसके कारण संक्रमण को शिकार हो जाती हैं. जिनमें से कई तो इलाज न मिलने और शर्म के कारण अपनी बात न रख पाने की वजह से मर तक जाती हैं. यह तथ्य केवल गांवों से नहीं बल्कि शहरों में मौजूद निचली बस्तियों, कस्बों आदि से भी जुड़ा है. (यूएन विमेन) यूनाइटेड नेशंस विमेन ने पीरियड पॉवर्टी (यानी मासिक धर्म से संबंधित साधनों और सुविधाओं से महरूम) लिस्ट में जिन देशों को रखा है उसमें भारत भी शामिल है. यह वह देश हैं जहां महिलाओं का बड़ा प्रतिशत पीरियड्स के दौरान सामान्य सुविधाओं से भी महरूम रहता है. अभी भी देश में 40 प्रतिशत से भी कम महिलाएं सैनिटरी हाइजीन के बारे में जानती हैं. हमारे देश में तो स्कूल, कॉलेज और बाजारों में महिलाओं के लिए बाथरूम बनाना ही कुछ समय पहले शुरू किया गया है. तो असल में हमारे लिए अभी यह मुद्दे चर्चा और एक्शन का विषय होने चाहिए, बजाय इसके कि हम पीरियड में महिलाओं को कितना दर्द होता है इसका सामना पुरुषों को करवाएं या महिलाओं को पीरियड्स की छुट्टी देने के बहाने घर पर बैठा दें. जरा सोचिए पहले ही हर क्षेत्र में खुद को साबित करने वाली महिलाओं को यह ताने सुनने पड़ते हैं, कि वे अपने महिला होने का फायदा उठाती हैं. ऐसे में पीरियड्स की छुट्टी या अतिरिक्त सुविधा का लाभ उठाकर क्या हम इस ताने को सच में नहीं बदल रहे? पीरियड्स के दौरान होने वाली ऐसी परेशानियां जिनमें डॉक्टर की सलाह की ही जरूरत पड़े, उनका प्रतिशत बहुत कम होता है. ऐसे लोगों को बकायदा प्रिस्क्रिप्शन दिखाकर छुट्टी दी जानी चाहिए, अगर उन्हें जरूरत हो तो. लेकिन इसे सबके लिए लागू करने की जरूरत क्यों हो भला?
क्यों बनें मजाक?
पीरियड्स के दौरान पेटभर पौष्टिक भोजन, अतिरिक्त श्रम न करना, सामान्य नींद लेना और भरपूर पानी पीना और हल्की फुल्की एक्सरसाइज करना पीरियड्स के सिम्टम्स को कंट्रोल में रखता है. देर रात तक जागना, जंक फूड, मैदा या गैस करने वाले पदार्थों का सेवन, बिना शारीरिक श्रम वाली दिनचर्या आदि पीरियड्स की तकलीफ को कई गुना बढ़ा देती है. तो बजाय पीरियड पर बेवजह छुट्टी लेकर अपने औरत होकर फायदा उठाने की बजाय यदि हम सामान्य और स्वस्थ तरीके से पीरियड से जुड़े अंधविश्वास, भ्रांतियों और अव्यवस्थाओं को दूर करने का बीड़ा उठाएं तो हमारा महिला होना अधिक सार्थक होगा. तब होगी पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलने की सच्ची भावना और तब कोई यह ताना नहीं मार सकेगा कि इन्हें तो औरत होने का फायदा मिल गया. तो तय आप कीजिए, या तो इस सहज और सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया को सकारात्मक रूप से साथ लेकर आगे बढ़िए या फिर घर बैठकर आराम कीजिए. फिर शिकायत न कीजियेगा कि आपके साथ समाज अन्याय कर रहा है क्योंकि यह सुविधा आपकी ही मांगी हुई होगी.