International Yoga Day और ‘योग: कर्मसु कौशलम’
योग- साधना, तप, विज्ञान और शारीरिक आचरण का जोड़ है
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस भारत के योग विज्ञान के पूरी दुनिया तक फैलने का उत्सव है. भारतीय ग्रंथों में योग परंपरा और आदि योगी शिव के माध्यम से इस पर अपनी बात रखी गई है. संस्कृत के शब्द युज से बने योग का अर्थ है स्वयं से मिलन. पतंजलि ने योगसूत्रों में बताया कि चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है. सांख्य दर्शन कहता है पुरुष एवं प्रकृति का अलगाव जहां खत्म हो, स्व स्वरुप में होना योग है. विष्णु पुराण में परमात्मा से मिलन को ही योग कहा गया है और गीता में श्रीकृष्ण हार हालत में समभाव रखने को ही योग कहा है. आचार्य हरिभद्र मोक्ष से जोड़ने वाले सभी व्यवहार को योग कहते हैं. बृहदारण्यक उपनिषद में याज्ञवल्क्य और गार्गी संवाद में बताया गया है कि शरीर की स्वच्छता के लिए आसन और ध्यान आवश्यक हैं. अथर्ववेद में शारीरिक आसन पर बल दिय गया है. संहिताओं में भी मुनियों, महात्माओं और विभिन्न साधु और संतों द्वारा कठोर शरीरिक आचरण, ध्यान और तपस्या के अभ्यास को योग कहा गया है. महाभारत के शांतिपर्व में भी इसके उद्धरण हैं. स्वामी विवेकानंद ने शिकागो के धर्म संसद सम्मेलन में अपने ऐतिहासिक भाषण से योग से परिचय कराया. महर्षि महेश योगी, परमहंस योगानंद और रमण महर्षि ने भी योग दुनिया तक पहुंचाया.
अद्वैत भी योग का समर्थन करते हैं, अनीश्वरवादी भी इसका अनुमोदन करते हैं. बौद्ध ही नहीं मुस्लिम सूफी और ईसाई मिस्टिक भी अपनी मान्यताओं और दार्शनिक सिद्धांतों में योग को जोड़े हुए हैं. इसे एक पूर्णचिकित्सा पद्धति भी माना जाता है. गीता में कृष्ण जब ‘योगः कर्मसु कौशलम्’ कहते हें तो वे कह रहे होते हैं कि योग से कर्मों में कुशलता आती है. गीता में योग के विभिन्न रुपों का भी जिक्र है जिसमें कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग शामिल हैं. बौद्ध धर्म में कुशल चित् की एकाग्रता को ही योग बताया गया है. जैन तत्वार्थसूत्र में योग को मन, वाणी व शरीर की गतिविधियों के कुलयोग से योग को सामने रखा गया है. षड् दर्शनों में से एक का नाम ही योग है. यानी योग में शरीर, मन और आत्मा को साथ लाया जाता है. योगपाठ अमृतकुंड का अरबी व फारसी भाषाओं में अनुवाद इसीलिए कराया गया कि इसकी स्वीकृति पूरी दुनिया में बढ़े और आज हम देख रहे हैं कि इसका पूरी दुनिया पर प्रभाव पड़ ही रहा है. योग को ‘यूनेस्को’ ने अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों में शामिल किया है. योग को लेकर दुनिया का आकर्षण बढ़ा है और उसकी उपयोगिता को पहचाना गया है तो निःसंदेह यह योग की वैज्ञानिक महत्ता का प्रतिफल है. 21 जून 2015 को पहली बार योग दिवस मना और इस तरह अब इसने योग दिवस मनाए जाने के दस साल पूरे कर लिए हैं और इन दस सालों में पूरी दुनिया में योग के प्रति जागरुकता कई गुना बढ़ी है.
योग दिवस पर विश्वविख्यात योगगुरु डॉक्टर ओमानंद जी का संदेश
हम अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना रहे हैं, यह वह मौका है जब हम खुद समझें कि कैसे योग हमारे जीवन का अभिन्न अंग है और यह बात पूरी दुनिया तक पहुंचाएं कि कैसे योग हमारे मन, बुद्धि और शरीर तीनों को हर बार नया रंग रुप देने में सक्षम है. योग कोई भी कर सकता है और इससे कोई भी अपने जीवन को बदल सकता है, जिसे हम ट्रांसफॉर्मेशन कहते हैं. योग ‘असतो मा सदगमय्र तमसो मा ज्योर्तिगमय’ का जीवंत स्वरुप है जो हमें बीमारी से आरोगय की ओर ले जाता है. योग हमें उस दिशा में ले जाता है जहां हम अपने अंदर की जीवन ज्योति को पा सकते हैं, यह हमारे दिल- दिमाग और आचार- विचार को सात्विक रखने का ऐसा साधन है जो सभी को सहज उपलब्ध है.

यह हमें हर तरह के बेहतर स्वास्थ्य की ओर ले जाने की तकनीक है चाहे वह शारीरिक स्वास्थ्य हो, मानसिक स्वास्थ्य, भावनात्मक स्वास्थ्य या सामाजिक स्वास्थ्य ही क्यों न हो. योग ही है जो हमें मोक्ष के मार्ग पर प्रवृत्त करता है और इससे भी बढ़कर यह हमें अपने मानस की ही जंजीरों या वैचारिक द्वंद्व से निकलने में सहायता करता है. योग से हम अपने अंदर की खूबसूरती, शांति और प्रेम का साक्षात्कार कर सकते हैं और यदि हम आत्मा ही परमात्मा में भरोसा रखते हैं तो मानना होगा कि योग हमें आत्मा के दिव्य दर्शन कराता है जो प्रकारांतर से परमात्मा का ही दर्शन है. आइये हम योग दिवस पर संकल्प लें कि योग की इस दिव्य ज्योति को विश्व कल्याण के लिए सभी तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे और इसकी शुरुआत हमें अपने आप से ही करनी होगी.