Navjot का दावा और साइंस की कसौटी
आहार विहार में बदलाव को बताया पत्नी के कैंसर मुक्त होने का कारण तो भड़कीं कई लॉबी
तो लीजिए हुजूर नवजोत सिद्धू को अवैज्ञानिक बताने वालो की पूरी भीड़ खड़ी हो गई है जिनमें बड़े बड़े डॉक्टर और अस्पताल भी शामिल हैं और मामला सिर्फ इतना है कि सिद्धू ने अपनी पत्नी के चौथे स्टेज के कैंसर से मुक्त होने के लिए खान पान, आहार-व्यवहार में बदलाव की तारीफ कर दी. अस्पतालों को चिंता हो गई कि यदि सिद्धू की बात लोग मानने लगे तो उन दवा कंपनियों और इन बड़े अस्पतालों का क्या होगा. माना कि अस्पताल बंद होने नहीं जा रहे लेकिन यदि लोगों ने अपने खानपान पर ध्यान देना शुरु कर दिया, तरीके से रहना शुरु कर दिया और संतुलन बनाने लग गए तो मुनाफे तो खतरे में पड़ ही जाएंगे.
इस पूरे मामले में सबसे पहले तो लीजिए विज्ञान को, यदि सिद्धू ने नॉन साइंटिफिक बात भीकर दी तो गलत क्या है. क्या सारी बातों को तौलने के लिए विज्ञान अंतिम तराजू है? माफ करें यदि किसी तराजू को मान्यता देनी ही है तो उसका बैलेंस ठीक ठाक होना भी जरुरी है और साइंस उर्फ विज्ञाान के खाते में ऐसा कुछ नजर नहीं आता. आज भी चार सवालों के जवाब दे पाने में इस विज्ञान का दम फूल जाता है. यहां विज्ञान के हमत्व को कतई कम नहीं आंका जा रहा और न उसके जो वरदान रहे हैं उनसे इंकार किया जा रहा है लेकिन ख्ह भी सच है कि विज्ञान की अपनी सीमाएं हैं, रही हैं और हमेशा रहेंगी. आज बच्चा यह तो पढ़ लेता है कि हाइड्रोजन के दो और ऑक्सीजन का एक परमाणु मिला दें तो पानी बन जाएगा लेकिन वही बच्चा जलसंकट की बड़ी डरावनी डॉक्यूमेंट्री भी टीवी पर देखता है. विज्ञाान उसे आज तक नहीं बता पाया कि जब इतना आसान है पानी बना लेना तो आज इक्कीसवीं सदी में पानी को लेकर तीसरे विश्वयुद्ध की चेतावनी क्यों देनी पड़ती है, भले ही विज्ञान को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन फिर प्रकृति से उधार लेना पड़े लेकिन जीववन तो आसान कर दे. सेबफल गिरा, यह तय हो गया कि कोई गुरुत्वाकर्षण है जो चीजों को वापस जमीन पर खीचें लेता हैं लेकिन क्या इससे पृथ्वी के करोड़ों साल से कायम गुरुत्व बल में कोई कमी या बढ़ोतरी देखी गई. बाकी मामले तो छोड़िए इसी कैंसर को लेकर विज्ञान क्या कह रहा है. इसके लाईलाज होने और कुछ इलाजों से फायदा होने की बातों में ही हम झूल रहे हैं. मोटी भाषा में वैज्ञानिकों को सिर्फ इस बात का उपया खोजना था कि कैंसर की कोशिकाएं अनियंत्रित गति से बढ़ना बंद कर दें लेकिन कैंसर की भयावहता विज्ञान के लिए पैसा दुहने की मशीन बन गई है. सच कहें तो इस मामले में भी सिद्धू की बातें ज्यादा तार्किक लगती हैं क्योंकि वो इन कोशिकाओं को रोकने या खत्म करने की जुगत की बात तो कर रहे हैं भले ही उनके बताए उपपया कसौटियों पर खरे न उतरते हों लेकिन जो अस्पताल सिद्धू की बातों का विरोध कर रहे हैं वे दवाओं और कीमोथेरेपी की दुहाई दे रहे हैं. मैं और मेरी ही तरह करोड़ों लोग जानते या मानते हैं कि कीमोथेरेपी कहीं से भी कैंसर सेल को खत्म करने की विधा नहीं है और इसीलिए ऑपरेशन के जरिए उस कोशिका समूह को निकाला जाता है. दवाएं भी कैंसर खत्म करने की नहीं होती हैं. इस बीमारी के मामले में यदि ईलाज की संभावना की कोई अच्छी खबर आती भी दिखती है तो उसमें प्राकृतिक रुप से पाई जाने वाली चीजें ही नजर आएंगी न कि कथित वैज्ञानिक प्रयोंगों से बने केमिकल्स. हालांकि उसके भी मूल तक जाएं तो प्रकृति का बनाया आदमी और प्रकृति की ही बनाई चीजें तो होती हैं. विज्ञान बहुत आगे तक जरुर जा चुका है लेकिन यकीनन यह अभी उस जगह तो नहीं ही पहुंचा है जहां इसे तराजू बना दिया जाए. यह मानव के संकलित ज्ञान और एक वृहद दुनिया का एक छोटा सा कोना भर है. वैज्ञानिक सोच जैसी भाषा को इस तरह ओवर हाइप्ड कर दिया गया है कि इससे कुछ भी तौले जाने की उम्मीद की जाने लगी है. इस सृष्टि के चलते जाने का एक अंश भी पकड़ पाने में जो विज्ञान खुद को लंगड़ा, लूला और नाबीना पाता है उसके नाम पर हम न जाने कितनी उन बातों को भी खारिज करते आ रहे हैं जो विज्ञान के समझ के बूते से बाहर हैं. नवजोत सिंह सिद्धू तो सिर्फ बहाना हैं, हर उस व्यक्ति पर जिससे इस ‘वैज्ञानिक सोच’ की धंधेबाजी पर असर पड़ता हो, इसी तरह हमले होंगे. विज्ञान की आड़ में वामपंथी विचारों ने राजनीति चमका ली सिर्फ बार बार यह कह कर कि धर्म का कॉन्सेप्ट वैज्ञानिक नहीं है और धर्म तो अफीम है. विज्ञान के नाम पर अस्पतालों, दवा माफियाओं और ऐसे न जाने कितने उद्योगों को खड़ा कर दिया जो सिर्फ सवाल उठाकर भाग जाने में भरोसा रखते हैं जबकि जवाब खुद उनके पास भी नहीं हैं. इस मामले में भी सिद्धू पर सिर्फ सवाल खड़े किए गए हें यह नहीं कहा गया कि ऐसा ही कोई दूसरा केस फोर्थ स्टेज का लाकर दीजिए और हम उसके कैंस सेल्स खत्म कर देंगे, करेंगे भी नहीं क्योंकि इनकी शैतानी सवाल खड़े करने तक सीमित है, जवाब इनके पास कभी नहीं थे.