June 22, 2025
Film

Film Stars को क्यों लुभाती है राजनीति

फिल्म कलाकार राजनीति में क्यों ?

आलेख- विवेक भावसार (व्यंग्यकार, चिंतक)

फिल्मी कलाकारों का राजनीति में आना काफी समय से चलन में है, खासकर दक्षिण भारत में. यहां के अनेक दिग्गज फिल्म कलाकार राजनीति में आए और इसमें भी अपने झंडे दमदारी से गाड़ दिए. इनमें प्रमुख रूप से नाम लिया जाए तो एम जी रामचंद्रन, जय ललिता और एन टी रामाराव. इनके अलावा भी अनेक नाम हैं जो फिल्मों से राजनीति में आए और अपने-अपने राजनीतिक दलों का गठन किया; जैसे वर्तमान में कमल हसन, चिरंजीवी, रजनीकांत, पवन कल्याण आदि. सुरेश गोपी, विजय शांति ने भी दलों की ओर से चुनाव लड़ा और जीते.

दक्षिण भारतीय कलाकारों की अपेक्षा बॉलीवुड कलाकारों का राजनीति में आना विशेष सफल नहीं रहा. राजनीतिक दलों ने इनकी लोकप्रियता को भुनाने के लिए इन्हें चुनाव में खड़ा अवश्य किया. अपने ग्लैमर के दम पर ये जीतकर भी आए. लेकिन अपने चुनाव क्षेत्र में ये जनता को कितने उपलब्ध रहे और अपने क्षेत्र और देश के विकास में अपना क्या योगदान दे पाए, यह विचारणीय और चिंतनीय है. राजनीति में आने के बावजूद फिल्मी दुनिया का मोह न छोड़ पाना अर्थात एकसाथ दो नावों की सवारी करना इसका प्रमुख कारण रहा होगा. परेश रावल जैसे कुछ कलाकारों को यह बात जल्द समझ आ गई और इन्होंने जल्द ही राजनीति से किनारा कर लिया.

बॉलीवूड कलाकारों का राजनीति में आना दक्षिण भारतीय कलाकारों की तुलना में देर से हुआ. फिर भी इनकी काफी लंबी सूची है…
सुनील दत्त, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, धर्मेंद्र, विनोद खन्ना (अटल जी की सरकार में मंत्री भी रह चुके), वैजयंती माला, हेमा मालिनी, सनी देओल, गोविंदा, परेश रावल, किरण खेर, दीपिका चिखलिया, रवि किशन, शत्रुघ्न सिन्हा, राज बब्बर, नीतीश भारद्वाज, जयाप्रदा, हंसराज हंस, बाबूल सुप्रियो, मनोज तिवारी, चिराग पासवान (यह भी कंगना के साथ एक मात्र फिल्म कर चुके हैं) और अभी अभी कंगना रनौत, अरुण गोविल आदि लोकसभा का चुनाव लड़कर संसद पहुंचे हैं. इनके अलावा क्षेत्रीय फिल्मों से जुड़े अनेक लोग भी चुनाव लड़े हैं.

इनके अतिरिक्त शेखर सुमन, राजपाल यादव, उर्मिला मातोंडकर, संजय दत्त (इनका पर्चा ही निरस्त हो गया था) आदि भी चुनाव मैदान में उतर चुके हैं किंतु असफल रहे हैं.

पृथ्वीराज कपूर, नर्गिस दत्त, दारासिंह, शबाना आजमी, जया बच्चन, मिथुन चक्रवर्ती, रेखा, लता मंगेशकर (लता जी ने कभी भी अपने संसद सदस्यता का वेतन नहीं लिया) आदि राज्यसभा के माध्यम से संसद में पहुंचे.

इनमें से स्मृति ईरानी, शत्रुघ्न सिन्हा, राज बब्बर ही हैं जो फिल्में पूरी तरह छोड़कर राजनीति में आए हैं. शेष अधिकतर से यह शिकायत है कि न तो ये संसद में नियमित रूप से उपस्थित होते हैं न ही अपने संसदीय चुनाव क्षेत्र में जनता को उपलब्ध होते हैं. न तो इन्हें जनता और अपने संसदीय क्षेत्र के अत्यावश्यक मुद्दों की समझ होती है न ही राजनीति की. यहां तक कि क्षेत्र के विकास के लिए इन्हें मिली सांसद निधि तक भी यह खर्च नहीं कर पाते. ऐसे में क्या ये लोग अपने क्षेत्र का उचित प्रतिनिधित्व कर पाते हैं?

चुनाव जीतने के बाद भी यह लोग फिल्मी करियर से पूरी तरह अलग नहीं हो पाते, ऐसे में न तो यह देश के किसी काम आते हैं न जनता के, साथ ही साथ किसी अन्य योग्य उम्मीदवार का स्थान भी छीन लेते हैं.

राजनीतिक दलों को सोचना चाहिए कि आखिर क्यों इनसे चुनाव लड़वाया जाता है? दलों को चाहिए या तो फिल्मी कलाकारों को राजनीति में न लाएं या ग्लैमर के बल पर चुनकर आनेवाले फिल्मी कलाकारों को राजनीति में लाने से पहले सुनिश्चित करवाया जाए कि चुनाव जीतने के बाद शतप्रतिशत समय देश और जनता की सेवा में दें. यदि यह शर्त मंजूर हो तभी इन्हें चुनाव लड़वाया जाए, अन्यथा इन्हें राजनीति में लाना संसद के समय और राष्ट्र के धन का नाश ही है. इन्हें अपने फिल्मी करीयर में ही मस्त रहने दिया जाए.