3 Idiots के प्रोफेसर, अच्युत पोत्दार नहीं रहे
125 से ज्यादा फिल्में और भारत एक खोज जैसे सीरियल में काम करने वाले अच्युत पोतदार नहीं रहे. एक युग का अवसान.
‘थ्री इडियट्स’ फिल्म में जो पात्र आमिर से पूछता है ‘आखिर कहना क्या चाहते हो’, वह किरदार अच्युत पोत्दार ने निभाया था लेकिन मंगलवार को उनके निधन की खबर आई कि अब यह दिग्गज कलालकार हमारे बीच नहीं रहा. भोपाल के निवासी रहे अच्युत पोतदार का जीवन केवल अभिनय तक सीमित नहीं था—वह अनुशासन, विविधता और आत्मीयता का जीवंत उदाहरण थे.
अच्युत पोतदार का अभिनय करियर चार दशकों से भी अधिक लंबा रहा. लेकिन अभिनय से पहले उनका जीवन कई मोड़ों से गुज़रा. वे भारतीय सेना में कैप्टन के पद पर कार्यरत रहे और बाद में इंडियन ऑयल में 25 वर्षों तक सेवा दी. हर क्षेत्र में अपनी भूमिका को पूरी निष्ठा से निभाया.
अभिनय की दुनिया में उन्होंने 44 वर्ष की उम्र में कदम रखा—एक ऐसा समय जब अधिकांश लोग अपने करियर की स्थिरता की ओर बढ़ते हैं लेकिन पोतदार ने इस उम्र में एक नया अध्याय शुरू किया और हिंदी व मराठी सिनेमा में 125 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया. उनके अभिनय में एक सहजता थी, एक गरिमा थी, और सबसे बढ़कर एक आत्मीयता थी जो दर्शकों को उनके किरदारों से जोड़ देती थी.
उनकी फिल्मी यात्रा में कई यादगार भूमिकाएँ रहीं, लेकिन ‘3 इडियट्स’ में निभाया गया प्रोफेसर का किरदार उन्हें एक नई पहचान दे गया. फिल्म में उनका संवाद—“आखिर कहना क्या चाहते हो?”—इतना लोकप्रिय हुआ कि वह सोशल मीडिया पर मीम्स का हिस्सा बन गया. यह संवाद केवल एक फिल्मी लाइन नहीं थी, बल्कि एक पीढ़ी की उलझनों और सवालों का प्रतीक बन गया.
इसके अलावा उन्होंने ‘भारत एक खोज’, ‘अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो’, ‘बालिका वधू’, ‘सपना बाबुल का…बिदाई’ जैसे कई चर्चित धारावाहिकों में भी काम किया. टेलीविज़न की दुनिया में उनकी उपस्थिति एक स्थायी छाप छोड़ गई. वे जिस भी किरदार को निभाते थे, उसमें एक गहराई होती थी—चाहे वह पिता का रोल हो, शिक्षक का, या समाज के किसी अनुभवी सदस्य का.
उनकी अभिनय शैली में कोई दिखावा नहीं था. वे संवादों को जीते थे, निभाते नहीं थे. यही कारण है कि दर्शकों को उनके किरदारों में एक सच्चाई महसूस होती थी. वे कैमरे के सामने नहीं, दिलों के भीतर अभिनय करते थे.
अच्युत पोतदार का जीवन एक प्रेरणा है उन सभी लोगों के लिए जो मानते हैं कि उम्र किसी भी नए शुरुआत की सीमा नहीं होती. उन्होंने 44 की उम्र में अभिनय शुरू किया और उसे एक प्रतिष्ठित मुकाम तक पहुँचाया. उनका जीवन यह भी दर्शाता है कि अनुशासन और संवेदनशीलता साथ-साथ चल सकते हैं. सेना की सख़्ती और अभिनय की कोमलता—दोनों उनके व्यक्तित्व में समाहित थीं.
उनके निधन की खबर ने फिल्म जगत को स्तब्ध कर दिया है. कई कलाकारों, निर्देशकों और प्रशंसकों ने सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि दी. उनके साथ काम कर चुके कई सहकर्मियों ने उन्हें एक ‘सच्चा सह-कलाकार’, ‘शांत लेकिन प्रभावशाली व्यक्तित्व’ और ‘संवेदनशील मार्गदर्शक’ बताया.
अच्युत पोतदार का जाना केवल एक अभिनेता का जाना नहीं है, बल्कि एक युग का अवसान है. वे उन विरले कलाकारों में से थे जिन्होंने अभिनय को केवल पेशा नहीं, बल्कि एक साधना माना. उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि हर भूमिका—चाहे वह सेना की हो, कॉर्पोरेट की हो या कला की—एक जिम्मेदारी होती है, और उसे गरिमा के साथ निभाना ही सच्चा जीवन है.
उनकी स्मृति में केवल फिल्में और धारावाहिक नहीं रहेंगे, बल्कि वह संवाद भी रहेगा जो उन्होंने अपने जीवन से दिया—“आखिर कहना क्या चाहते हो?”