July 11, 2025
Film

78 th Cannes Film Festival आखिरी दिन रही बिजली गुल

कान फिल्म फेस्टिवल विशेष- प्रज्ञा मिश्रा

ईरानी डायरेक्टर जफर पनाही 20 साल से नजरबंद लेकिन उनका फिल्म बनाना नहीं रुका

शनिवार 24 मई की सुबह कान फिल्म फेस्टिवल में आपाधापी के साथ हुई , दरअसल सुबह 10 बजे पूरे शहर और इलाके की बिजली सप्लाई बंद हो गयी, रोज़मर्रा के काम में जो मुश्किलें आयीं उनका तो कोई ख़ास हिसाब नहीं लेकिन फेस्टिवल में कुछ फिल्मों स्क्रीनिंग पर ज़रूर असर पड़ा और ऐसा बताया गया कि सिनेयम सिनेमा में तो लोगों को सिनेमा हॉल से बाहर ही निकलना पड़ा , लेकिन बिजली के न होने का सबसे ज़्यादा असर ट्रैन और टैक्सी से सफर कारण वालों पर पड़ा , शनिवार फेस्टिवल का आखिरी दिन था और अधिकतर लोग इस दिन कान शहर छोड़ अपने अपने ठिकानों की तरफ लौट जाते हैं , यह लोग लम्बे समय तक ट्रैन और टैक्सी का इंतज़ार करते हुए पाए गए.

दोपहर में दो बजते बजते कान शहर की यह हालत हो गयी थी कि ज़्यादातर बेकरी में सामान खत्म हो चुका था और रेस्टोरेंट में कई तरह का खाना बन ही नहीं सकता था क्योंकि वहां बिजली नहीं थी… खैर खरामा खरामा छह सात घंटे के बाद जब पावर सप्लाई लौटी तब तक फेस्टिवल में सभी फिल्म की स्क्रीनिंग आराम से चल रही थीं, कॉम्पीटीशन सेक्शन की जूरी में शामिल पाँच महिलाओं में इंडिया की “पायल कपाड़िया ” हैं और इस बार जूरी ने ईरानियन फिल्म डायरेक्टर जफ़र पनाही को पाम डी’ओर अवार्ड दिया, पनाही पिछले 20 सालों एक तरह से अपने ही देश में नज़र बंद हैं, उन पर ईरान की सरकार का बैन है कि वो फिल्में नहीं बना सकते और देश छोड़ कर नहीं जा सकते, इतनी पाबंदियों के बावजूद जफ़र पनाही को कोई भी फिल्म बनाने से रोक नहीं पाया है.

एक तरह से पनाही सबसे बहादुर फिल्म डायरेक्टर कहे जा सकते हैं क्योंकि जितनी पाबंदियों और मुश्किलों में वो फिल्में बनाते हैं वो सोचना भी नामुमकिन है… कान फिल्म फेस्टिवल में उनकी प्रसिद्धि ने उन्हें एक ऐसा व्यक्ति बना दिया है जिसके साथ सरकारों को सावधानी से काम लेना होगा, और ईरानी अधिकारी अच्छी तरह से जानते हैं कि पनाही और उनके सिनेमा ने अपने देश के लिए इंटरनेशनल सिनेमा में जो जगह बनाई है इस तरह से कोई और नहीं कर सकता.

बेस्ट डायरेक्टर का अवार्ड ब्राज़ीलियन डायरेक्टर क्लेबर मेंडोंसा को फिल्म सीक्रेट एजेंट के लिए मिला , यह फिल्म ७० के दशक में ब्राज़ील के हालत को दिखाती है, यह यक़ीन कर पाना कुछ मुश्किल है कि ऐसा भी होता है… बेस्ट स्क्रीनप्ले का अवार्ड बेल्जियम के डायरेक्टर भाइयों दारदेने ब्रदर्स को उनकी फिल्म “यंग मदर्स ” के लिए मिला, यह फिल्म काम उम्र में माँ बन जाने वाली लड़कियों की ज़िन्दगी की कहानी है, फिल्म को देखते हुए कई बार एहसास होता है कि यह लोग बेल्जियम में हैं तो इन्हें इस कदर बेहतरीन सहारा मिला हुआ है पर फिर भी ज़िन्दगी के कई मसले हैं जो आसानी से नहीं सुलझते.

ट्रायर की बड़ी, दिल को छू लेने वाली ड्रामा फिल्म सेंटिमेंटल वैल्यू, जिसने ग्रैंड प्री अवार्ड जीता, लोगों को खुश करने वाली, आलोचकों को खुश करने वाली और जूरी को खुश करने वाली फिल्म थी. फिल्म परिवार और घर दोनों की बात करती है कि किस तरह घर की बनावट और परिवार का तानाबाना बच्चों की ज़िन्दगी पर असर डालता है, यह फिल्म पूरी तरह से कलाकारों के परफॉरमेंस पर आधारित फिल्म है और जिस शिद्दत से कलाकारों की टीम ने इस फिल्म में काम किया है वो काबिल ए तारीफ है.

पिछले दस दिनों में फेस्टिवल में हजारों की तादाद में लोगों में हर स्क्रीनिंग के लिए भीड़ लगायी , कुछ फिल्मों को वाह वाही मिली और कुछ ने निराश किया लेकिन शुरू से अंत तक एक ही नाम छाया रहा और वो जफ़र पनाही का नाम है और सही मायनों में यह फेस्टिवल पनाही का फेस्टिवल ही बन गया. …