July 17, 2025
तीज त्यौहार

वट सावित्री व्रत अमावस्या के शुभ मुहूर्त क्या हैं,जानिए कथा और पूजा विधि

-वट सावित्री व्रत अमावस्या 6 जून 2024,गुरुवार के दिन है. वट सावित्री व्रत का व्रत ज्येष्ठ अमावस्या और आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस व्रत को सौभाग्यशाली सुहागन स्त्रियां जीवनसाथी की लंबी आयु के लिए रखती हैं.

आइए जानते हैं वट सावित्री व्रत की पूजन सामग्री, पूजा के शुभ मुहूर्त, व्रत की कथा, पूजन की विधि आदि के बारे में विस्तार से….

सबसे पहले जानते हैं शुभ मुहूर्त

वट सावित्री व्रत 2024 मुहूर्त
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि का प्रारंभ: 5 जून, बुधवार, शाम 07 बजकर 54 मिनट से
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि का समापन: 6 जून, गुरुवार, शाम 06 बजकर 07 मिनट पर
ब्रह्म मुहूर्त: 04:02 एएम से 04:42 एएम तक
अभिजीत मुहूर्त: 11:52 ए एम से 12:48 पी एम तक
शुभ-उत्तम मुहूर्त: 05:23 एएम से 07:07 एएम तक
लाभ-उन्नति मुहूर्त: 12:20 पीएम से 02:04 पीएम तक
अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त: 02:04 पी एम से 03:49 पी एम तक.

क्या-क्या सामग्री जरूरी है

वट सावित्री व्रत की पूजा सामग्री लिस्ट 
रक्षा सूत्र,
कच्चा सूत,
बरगद का फल,
बांस का बना पंखा,
कुमकुम,
सिंदूर,
फल,
फूल,
रोली,
चंदन
अक्षत्,
दीपक,
गंध,
इत्र,
धूप
सुहाग सामग्री,
सवा मीटर कपड़ा,
बताशा,
पान,
सुपारी
सत्यवान, देवी सावित्री की मूर्ति
वट सावित्री व्रत कथा और पूजा विधि की पुस्तक
पानी से भरा कलश,
नारियल,
मिठाई,
मखाना
घर पर बने पकवान,
भींगा चना,
मूंगफली,
पूड़ी,
गुड़,
एक वट वृक्ष
वट सावित्री की पूजा बरगद के पेड़ के नीचे की जाती है। बरगद का पेड़ नहीं है तो बरगद की एक टहनी तोड़कर उसकी भी पूजा कर सकती हैं।
कलावा या सफेद सूत (हल्दी में रंगा हुआ)
मौसमी फल जैसे आम, लीची,तरबूज
फूल (लाल या पीला) और फूलों की माला
काला चना
धूप बत्ती
पान
गंगाजल
पवित्र जल
केला का पत्ता
नए वस्त्र (लाल, पीला)
मिट्टी का घड़ा
दीप बाती
देसी घी
तांबे/चांदी/सोने/पीतल के कलश में गंगाजल मिला जल

वट सावित्री व्रत की पूजा विधि क्या है?
सबसे पहले वट सावित्री व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए.

शुभ मुहूर्त में आपको वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए सामग्री एकत्र करके किसी बरगद के पेड़ के पास जाना चाहिए.

वहां उसके नीचे ब्रह्म देव, देवी सावित्री और सत्यवान की मूर्ति को स्थापित करें.

फिर उनका जल से अभिषेक करें.

उसके बाद ब्रह्म देव, सत्यवान और सावित्री की पूजा करें.

एक-एक करके उनको पूजा सामग्री चढ़ाएं.

फिर रक्षा सूत्र या कच्चा सूत लेकर उस बरगद के पेड़ की परिक्रमा 7 बार या 11 बार करते हुए उसमें लपेट दें.

फिर आसन पर बैठ जाएं.

अब आप वट सावित्री व्रत की कथा सुनें. फिर ब्रह्म देव, सावित्री और सत्यवान की आरती करें.

वट सावित्री व्रत की कथा

वट सावित्री व्रत कथा
देवी सावित्री का विवाह सत्यवान से हुआ था, लेकिन वे अल्पायु थे. एक बार नारद जी ने इसके बारे में देवी सावित्री को बता दिया और उनकी मृत्यु का दिन भी बता दिया.

सावित्री अपने पति के जीवन की रक्षा के लिए व्रत करने लगती हैं. वे अपने पति, सास और सुसर के साथ जंगल में रहती थीं. जिस दिन सत्यवान के प्राण निकलने वाले थे, उस दिन वे जंगल में लकड़ी काटने गए थे, तो उनके साथ सावित्री भी गईं.

उस दिन सत्यवान के सिर में तेज दर्द होने लगा और वे वहीं पर बरगद के पेड़ के नीचे लेट गए. देव सावित्री ने पति के सिर को गोद में रख लिया. कुछ समय में यमराज वहां आए और सत्यवान के प्राण हरकर ले जाने लगे. उनके पीछे-पीछे सावित्री भी चल दीं.

यमराज ने उनको समझाया कि सत्यवान अल्पायु थे, इस वजह से उनका समय आ गया था. तुम वापस घर चली जाओ. पृथ्वी पर लौट जाओ. लेकिन सावित्री नहीं मानीं. उनके पतिव्रता धर्म से खुश होकर यमराज ने सत्यवान के प्राण लौटा दिए, जिससे सत्यवान फिर से जीवित हो उठे.

उसके बाद से ज्येष्ठ अमावस्य को ज्येष्ठ देवी सावित्री की पूजा की जाने लगी. वट वृक्ष में त्रिदेव का वास होता है और सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे ही जीवनदान मिला था. इस वज​​ह से इस व्रत में वट वृक्ष, सत्यवान और देवी सावित्री की पूजा करते हैं.