श्रावण मास 2024 :अब तो नाम के त्यौहार हैं और नाम का आना जाना है
–नेहा व्यास
–हरियाला सावन, सजने-संवरने का सावन
-भगवान शिव का प्रिय माह सावन अपने साथ हरियाली और किसानों के चेहरे की मुस्कान यानी बारिश लेकर आता है। बारिश के पानी में चिड़ियों की अठखेलियां बारिश से बचने के लिए मुंडेर पर चहचहाते पक्षियों का इकट्ठा होना। मन में एक मधुर संगीत सा बजने लगता है।मानो सावन में सब गुनगुना रहे हैं। सावन का महीना लगते ही पहले सोमवार से ही सावन की छटा को देखा जा सकता है। कुंवारी लड़कियों का अच्छे पति को पाने की चाह में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उपवास रखना एक अद्भुत प्रसन्नता भरा होता है।
हरियाली अमावस्या से ही महिलाओं के हृदय में त्यौहार को लेकर उत्साह होने लगता है इसी दिन से महिलाओं में हरी-हरी चूड़ियां और हरी साड़ी पहनने का उत्साह होता है। हरियाली अमावस्या को भारत के हर प्रांत में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। मध्य प्रदेश, पंजाब ,राजस्थान आदि में इस दिन को पर्यावरण संरक्षण के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से वृक्षारोपण किया जाता है।
साल भर हरियाली और खुशहाली की कामना लेकर किसान इस दिन नई फसल की बुवाई और नए-नए वृक्ष लगाते हैं। मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में इस त्यौहार को हरी-ज्योति भी कहा जाता है।हरियाली अमावस्या को वर्षा ऋतु के आगमन पर उसके स्वागत का त्यौहार भी कहा जाता है। अधिकतर मंदिरों में इस दिन भगवान शिव का विशेष श्रृंगार व पूजन अर्चन किया जाता है। इसके दो दिन बाद हरियाली तीज का त्यौहार आता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार यह माना जाता है की माता पार्वती की अथाह भक्ति और प्रेम से प्रसन्न होकर आज ही के दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को अपनी पत्नी रूप में स्वीकारने का वरदान दिया था। कहते हैं इस दिन जो भी गौरी शंकर की सच्चे मन एवं भक्ति भाव से पूजा अर्चना करता है। वह मनवांछित वर प्राप्त करता है।
हरियाली तीज का व्रत शीघ्र विवाह एवं सुखद वैवाहिक जीवन की कामना के लिए सर्वोत्तम माना गया है। इस दिन महिलाएं हरे वस्त्र एवं हरी-हरी चूड़ियां पहनकर साजो-श्रृंगार करके मंदिर में पूजा अर्चना करती हैं। सारी महिला एकत्र होकर एक दूसरे को माता गौरी का आशीर्वाद स्वरुप सुहाग बांटतीं हैंऔर झूला भी झूलती हैं। इसके पश्चात नाग पंचमी का त्यौहार आता है।
इस दिन सभी जाति एवं वर्ग के लोग अपनी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नाग देवता का व्रत एवं पूजन करते हैं। भगवान शिव के प्रिय एवं भगवान शिव के गले में विराजमान उनके गले का हार कहे जाने वाले नागदेव ‘वासुकी’ की पूजा भारत एवं नेपाल सहित अनेक हिंदू आबादी वाले देश में बड़े ही भक्ति भाव से की जाती है।
सावन माह की अष्टमी और नवमी को छोटी-छोटी बस की टोकरी या छोले के वृक्ष के पत्तों की टोकरिया बनाकर इनमें मिट्टी भरकर गेहूं के दाने बोए जाते हैं। इन्हें भुजरिया कहा जाता है। इनमें रोज पानी दिया जाता है एवं सावन माह में भुजरियों को झूला झूलने की भी परंपरा है।
सावन के माह का समापन पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन के दिन होता है। इस दिन सभी बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं एवं त्यौहार का लुत्फ उठाती हैं। यूं तो सावन माह का हर दिन एक विशेष महत्व लिए होता है। परंतु पाश्चात्य सभ्यता के कारण कुछ समय से लोग सावन के माह में आनंदित होना एवं उसका लुत्फ उठाना कुछ हद तक भूल चुके हैं। पुराने समय में लड़कियों का चपेटों से खेलना लड़कों का भोरों को चलाना मानो बचपन में खो जाने को कहता था।
नए परिवेश बाहरी चमक को भूलकर सिर्फ एक दिन ही सही पर अपनी बहनों के लिए वक्त निकालना उनसे राखी बनवाना हर भाई को भाता था। साल भर में सिर्फ एक दिन अपने भाइयों के लिए सजना सबसे सुंदर लगने की गलतफहमी होना सावन का प्यारा सा भाव ही तो है।भाइयों का अपनी बहनों को देने के लिए तोहफे तलाश करना सबसे खूबसूरत तोहफा लाना सबको खुश कर जाता था।

सावन की हरी भरी हरियाली से चूड़ियां खरीदी महिलाओं का जमघट हरी, पीली, लाल, गुलाबी चूड़ियां खरीदतीं महिलाएं नए-नए खिलौने खरीदते बच्चे। बेटियों का मायके आकर अपनी सहेलियों के साथ बैठकर हंसी ठिठोली करना। बहुओं का मायके जाना बेटियों का मायके आना सब कुछ भूल कर सिर्फ अपने लिए कुछ वक्त निकालना सावन में ही तो हो पता था।
बहनों का बहनों से मिलना ना ससुराल की चिंता ना बच्चों की फिक्र बस अपने आप में खो जाना और सावन का लुफ्त उठाना सब कुछ सावन में ही हो पाता था। परंतु नए परिवेश में आकर लोग आजकल ऑनलाइन राखी बांधने और बंधवाने लगे हैं। बहने ऑनलाइन राखियां भेजने लगी हैं और भाई राखियां बंधवा के त्यौहार को मना लेते हैं। ना बेटियों का लाना है ना बहुओं को ले जाना है। ना भुजरिया बांटना है ना आपस में खुशियों का मानना है। अब तो नाम के ही त्यौहार हैं और नाम का आना जाना है।
कृपया अपनी बेटियों को सावन में घर जरूर बुलाएं और अपनी सुख समृद्धि का मार्ग सुगम और सरल बनाएं। मायके में मां हो ना हो पर अपना फर्ज जरूर निभाएं। कम से कम सावन में तो बेटियों को मायका ना होने का एहसास ना दिलाएं।
इन्हीं शुभकामनाओं के साथ शुभ श्रावण…
नेहा व्यास
व्याख्याता सिविल
भोपाल