June 14, 2025
तीज त्यौहार

Navratri2024 मां के सभी स्वरुप और पर्व की महत्ता

घट स्थापना के बाद नौ दिन की मां के पूजन व अर्चन विधि

नवरात्रि पर्व का महत्व आदि शक्ति दुर्गा की पूजा के पावन पर्व की तरह ही मुख्य है. यूं तो प्रति वर्ष चार नवरात्रि मनाई जाती हैं लेकिन इनमें चैत्र तथा शारदीय नवरात्र को मुख्य माना जाता है, दो गुप्त नवरात्रि विशिष्ट सिद्धियों के लिए साधक मनाते हैं लेकिन चैत्र व शारदीय नवरात्रि तो पूरा भारत मनाता है. आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से लेकर आरंभ होने वाली शारदीय नवरात्रि में आदिशक्ति मां दुर्गा का पूजन होता है. इस वर्ष यह पर्व 12 अक्टूबर तक मनेगा. यानी इस बार नवरात्रि में दस दिनों तक पूजन होगा. नवरात्रि में तिथियों का बढ़ना शुभ होता है, इस बार तृतीया तिथि दो दिन है, यानी तीसरा दिन दो दिन तक फैला होगा. अष्टमी भी दो दिन रहेगी. 10 अक्टूबर को दोपहर के बाद नवमी तिथि शुरू होगी, जो 12 अक्टूबर दोपहर तक रहेगी. इस तरह नवरात्रि समाप्ति और दशहरा पर्व का आरंभ 12 अक्टूबर को होगा.
नवरात्रि नवशक्तियों की प्रतीक स्वरूप है. नवरात्रि पर्व ‘शक्ति’ की कामना का पर्व ही है. मां दुर्गा के नौ रूपों में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, मां कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा होती है. नवरात्रि के पहले स्वरूप में पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती रुप में पूजी जाती हैं. वृषभ पर सवार शैलपुत्री के एक हाथ में त्रिशूल व दूसरे में कमल है. ये वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक हैं.

दूसरे दिन ‘ब्रह्मचारिणी’ पूजी जाती हैं जो विद्यादायिनी हैं. तप का आचरण करती मां ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र पहने अष्टदल की माला और कमंडल लिए होती हैं. भगवान शिव को पाने के लिए कठोर उपवास और तप के कारण वे ब्रह्मचारिणी नाम धराती हैं.

तीसरे दिन मां चंद्रघंटा के पूजन का विधान है. मां चंद्रघंटा के मस्तक पर चंद्रमा विराजमान है. भक्तों का कल्याण करने वाली मां चंद्रघंटा बाघ पर सवार होती हैं. स्वर्णाभ वाली मां तीन नेत्रों और दस हाथों से युक्त हैं. इनके दस हाथों में कमल, धनुष-बाण, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र-शस्त्र हैं. सफेद पुष्पों की माला और मुकुट धारिणी मां साधकों को आरोग्य और सम्पन्नता का वर देती हैं.उनके घंटे की आवाज राक्षसों के लिए काल का संकेत है.

दुर्गा का चतुर्थ स्वरूप है देवी कुष्मांडा. जो बाघ की सवारी करती हैं अष्टभुजाधारी मां हाथों में कमंडल, कलश, कमल, सुदर्शन चक्र, गदा, धनुष, बाण और अक्षमाला धारती हैं. मंद मुस्कान से ब्रह्मांड उत्पन्न से इनका नाम कुष्मांडा पड़ा. जब चारों ओर अंधकार के सिवा कुछ नहीं था. तब देवी ने हल्की-सी हंसी से ब्रह्मांड की उपजाया. सूरज की गर्मी उनके ही महास्वरूप का छोटा सा अंश है यानी मां जीवन शक्ति देने वाली और पोषण दात्री हैं.

देवी के पांचवें स्वरूप में स्कन्दमाता कार्तिकेय की माता हैं और चूंकि कार्तिकेय का ही दूसरा नाम स्कंद है इसलिए मां को स्कन्दमाता कहा जाता है. कमल आसन पर विराजित होने से ये पद्मासन देवी भी कहलाताी हैं. सिंह पर सवार मां दुर्गा का यह स्वरूप कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री हैं. कमलदल लिए गोद में ब्रह्मस्वरूप सनतकुमार को थामे स्कंद माता की सिद्धिदात्री हैं.

छठवें दिन मां कात्यायनी का पूजन किया जाता है. शुभ कार्यों को सिद्ध करने के लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट होने और उनकी पुत्री स्वरुप रहने से मां को कात्यायनी नाम मिला. दुष्ट विनाशिनी मां कात्यायनी सिंह पर सवार होकर अपनी चारों भुजाओं से हर शुभ को आशीष देती हैं.

दुर्गा का सातवां स्वरूप कालरात्रि का है, दुष्टों के लिए जिनका स्वरुप भयानक है वो मां भक्तों को सदा शुभ फल देती हैं. शुभंकारी मां ‘कालरात्रि’ दुष्टों के संहार के समय काले रंग-रूप, खुले केश और चारों भुजाओं में अस्त्र शस्त्र या शत्रु की गर्दन के साथ होती हैं. तांडव मुद्रा में नजर आने वाली मां की आंखों से क्रोध के समय अग्नि वर्षा होती है. खड़ग तलवार कालरात्रि विकट रूप में विराजमान होती हैं.

नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी के पूजन का विधान है. उत्पत्ति के समय ही उनकी यष्टि आठ वर्ष की बालिका जैसी थी इसलिए इन्हें नवरात्र के आठवें दिन पूजा जाता है. अन्नपूर्णा स्वरूप मां भगवती अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन से प्रसन्न होती हैं और धनधान्य का अशीष देती हैं. धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी मां महागौरी उज्जवल, कोमल, श्वेतवर्णा तथा श्वेत वस्त्रधारी है. त्रिशूल और डमरू अपने कर में लिए हुए मां महागौरी गायन और संगीत से प्रसन्न होती हैं.
नवरात्रि के नौवें दिन मां दुर्गा का ‘सिद्धिदात्री’ स्वरूप पूजा जाता है, मां को सभी सिद्धियां देने और साधकों के तप से आसानी से प्रसन्न हो जाने वाली देवी माना जाता है. मां सिद्धिदात्री की पूजन विधि सबसे आसान है और मां दुर्गा के इस नौवें स्वरूप के पूजन के साथ ही नवरात्रि पर्व का समापन संपन्न माना जाता है.