October 19, 2025
तीज त्यौहार

Diwali विशेष- पर्व जिसमें आस है, विश्वास है, रास है उल्लास है

मैं ही राष्ट्र को ऐश्वर्य देने वाली शक्ति हूँ

स्मृति आदित्य

smriti

एक मधुर सुगंधित आहट. आहट त्योहार की. आहट रास, उल्लास और श्रृंगार की. आहट आस्था, अध्यात्म और उच्च आदर्शों के प्रतिस्थापन की. एक मौसम विदा होता है और सुंदर सुकोमल फूलों की वादियों के बीच खुल जाती है श्रृंखला त्योहारों की. श्रृंखला जो बिखेरती है चारों तरफ खुशियों के खूब सारे खिलते-खिलखिलाते रंग.

हर रंग में एक आस है, विश्वास और अहसास है. हर पर्व में संस्कृति है, सुरूचि और सौंदर्य है. ये पर्व न सिर्फ कलात्मक अभिव्यक्ति के परिचायक हैं, अपितु इनमें गुँथी हैं, सांस्कृतिक परंपराएँ, महानतम संदेश और उच्चतम आदर्शों की भव्य स्मृतियाँ. इन सबके केंद्र में सुव्यक्त होती है -शक्ति. उस दिव्य शक्ति के बिना किसी त्योहार, किसी पर्व, किसी रंग और किसी उमंग की कल्पना संभव नहीं है.

हमारे समस्त रीति-रिवाज, तीज-त्योहार या अनुष्ठान-विधान गृहस्वामिनी के हाथों ही संपन्न होते हैं. इस धरा की महकती मिट्‍टी की महिमा है कि स्त्री इतने सम्मानजनक स्थान पर प्रतिष्ठापित है. सदियों पूर्व इसी सौंधी वसुंधरा पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट स्वरूप दिखाते हुए कहा था –

‘कीर्ति: श्री वार्क्च नारीणां
स्मृति मेर्धा धृति: क्षमा.’

अर्थात नारी में मैं, कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा हूँ. दूसरे शब्दों में इन नारायण तत्वों से निर्मित नारी ही नारायणी है. संपूर्ण विश्व में भारत ही वह पवित्र भूमि है, जहाँ नारी अपने श्रेष्ठतम रूपों में अभिव्यक्त हुई है.

आर्य संस्कृति में भी नारी का अतिविशिष्ट स्थान रहा है. आर्य चिंतन में तीन अनादि तत्व माने गए हैं – परब्रह्म, माया और जीव. माया, परब्रह्म की आदिशक्ति है एवं जीवन के सभी क्रियाकलाप उसी की इच्छाशक्ति होते हैं. ऋग्वेद में माया को ही आदिशक्ति कहा गया है उसका रूप अत्यंत तेजस्वी और ऊर्जावान है.

फिर भी वह परम कारूणिक और कोमल है. जड़-चेतन सभी पर वह निस्पृह और निष्पक्ष भाव से अपनी करूणा बरसाती है. प्राणी मात्र में आशा और शक्ति का संचार करती है.

देवी भागवत के अनुसार -‘समस्त विधाएँ, कलाएँ, ग्राम्य देवियाँ और सभी नारियाँ इसी आदिशक्ति की अंशरूपिणी हैं. एक सू‍क्त में देवी कहती हैं –

‘अहं राष्ट्री संगमती बसना
अहं रूद्राय धनुरातीमि’

अर्थात् –
‘मैं ही राष्ट्र को बाँधने और ऐश्वर्य देने वाली शक्ति हूँ. मैं ही रूद्र के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाती हूँ. धरती, आकाश में व्याप्त हो मैं ही मानव त्राण के लिए संग्राम करती हूँ.’ विविध अंश रूपों में यही आदिशक्ति सभी देवताओं की परम शक्ति कहलाती हैं, जिसके बिना वे सब अपूर्ण हैं, अकेले हैं, अधूरे हैं.

हमारी यशस्वी संस्कृति स्त्री को कई आकर्षक संबोधन देती है. माँ कल्याणी है, वहीं पत्नी गृहलक्ष्मी है. बिटिया राजनंदिनी है और नवेली बहू के कुंकुम चरण ऐश्वर्य और सौभाग्य लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक है. हर रूप में वह आराध्या है.

पौराणिक आख्यान कहते हैं कि अनादिकाल से नैसर्गिक अधिकार उसे स्वत: ही प्राप्त हैं. कभी माँगने नहीं पड़े हैं. वह सदैव देने वाली है. अपना सर्वस्व देकर भी वह पूर्णत्व के भाव से भर उठती है.