July 10, 2025
धर्म जगत

ShriKrishna के विश्वरुप के दर्शन करने वाले अर्जुन के अलावा कौन थे

मां यशोदा के अलावा महर्षि उत्तंक को भी अपने इस विशिष्ट रुप के दर्शन दिए थे श्रीकृष्ण ने

आमतौर पर यही माना जाता है कि श्रीकृष्ण के विश्वरूप के दर्शन अर्जुन ने तब किए जबकि उन्होंने रणक्षेत्र में लड़ने से इंकार किया और फिर भगवान ने उन्हें गीतोपदेश दिया लेकिन श्रीकृश्ण का विराट स्वरुप एक बार नहीं बल्कि तीन बार सामने आया और अर्जुन उनमें से एक थे जिन्होंने इस स्वरुप को देखा लेकिन याद करिए कि जब मां यशोउस को लगा कि लल्ला ने मिट्टी खाई है तो उन्होंने श्रीकृष्ण से मुंह खोलकर दिखाने को कहा और तब उन्हें भी उस मुंह में समाए संसार की झलक मिली थी. हालाकिं इसके अलावा भी दो बार श्रीक़ष्ण द्वारा विश्वरुप दिखाए जाने का उल्लेख मिलता है. हस्तिनापुर की कौरवसभा में जब वे शांतिदूत बनकर पहुँचे थे तब भी श्रीकृष्ण ने विश्वरुप दिखाया था और इस बात की जानकारी हमें महाकाव्य के पांचवे उद्योग पर्व के 131वें अध्याय में वर्णित है. विदयुत कांति वाले इस स्वरूप में ब्रह्मा और वक्षःस्थल में रुद्र विराजमान थे. वहां मौजूद तो कई राजा महाराजा थे लेकिन द्रोण, भीष्म, विदुर और संजय जैसे कुछ ही सुपात्र थे जिन्हें स्वयं श्रीकृष्ण ने दिव्यदृष्टि प्रदान की थी. गीता का उपदेश देते हुए उन्होंने अर्जुन को विराट स्वरुप दिखाया था जिसका वर्णन महाभारत के छठवें भीष्म पर्व में मिलता है. इस स्वरूप को देखने की कामना और याचना खुद अर्जुन ने श्रीकृष्ण से यह कहते हुए की थी कि हे प्रभु! यदि आप मानते हैं कि मैं आपके विश्वरूप को देखने में समर्थ हूँ तो कृपया मुझे वह विश्वरूप दिखाइए. अर्जुन को भी प्रभु ने दिव्यदृष्टि देकर अपना विश्वस्वरुप दिखाया था. इसके बाद भी एक बार श्रीकृष्ण ने एक बार विश्वरुप के दर्शन कराए थे और इस दर्शन का पुण्य लाभ महर्षि उत्तंक को मिला, दरअसल पांडवों की विजय और युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के बाद श्रीकृष्ण द्वारका लौट रहे थे तो महामुनि उत्तंक के सामने पड़े जो इस बात से नाराज थे कि पूर्ण समर्थ होते हुए भी श्रीकृष्ण ने भाइयों के बीच महाभारत हो जाने दिया. आश्वमेधिक पर्व के 55वें अध्याय में वर्णन है कि कैसे उनका क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने श्रीकृष्ण से अपने विश्वरूप के दर्शन की याचना की तो श्रीकृष्ण ने वही विश्वरूप दिखाया जो अर्जुन ने देखा था और उत्तंक तपस्या के इतने धनी थे कि उन्हें इस दर्शन के लिए दिव्यदृष्टि देने की आवश्यकता भी नहीं हुई.

जगद्गुरु श्रीकृष्ण विश्वरूप प्रतीकात्मकता के साथ दिखाते हैं. सारी सृष्टि की समग्रता का संदेश संकेत बताते हैं. भक्त अर्जुन, वात्सल्यमयी मां यशोदा और महर्षि उत्तंक तक के सहारे विश्वरूप के दर्शन कर सके.