May 4, 2025
धर्म जगत

Shiv Mahima श्रीकृष्ण के आराध्य भी महादेव ही थे

बारंबार श्रीकृष्ण ने रुद्र व शिव के पूजन की महत्ता बताई और अर्जुन को महादेव की शरण लेने को कहा

महाभारत के अनुशासन पर्व के 160वें अध्याय में, युधिष्ठिर के समक्ष भगवान शिव की महिमा का वर्णन करते हुए, कृष्ण कहते हैं, ‘हे भगवान, महादेव ही तीनों लोकों में सभी प्राणियों का स्रोत है. वे ही समस्त प्राणियों की उत्पत्ति के कारण हैं. सैकड़ों वर्षों में भी उनका गुणगान संभव नहीं है. द्रोणपर्व, शांतिपर्व व अनुशासनपर्व तक कृष्ण की शिव के प्रति अनन्य भक्ति की अनगिनत कथाएं बताती हैं कि शिव ही पौराणिक साहित्य के अध्येता श्रीकृष्ण का आश्रय रहे हैं. जब कृष्ण कहते हैं, ‘प्रयतः प्रतरुत्थात् यद्धिये विषमपते. तुम दोनों हाथ जोड़कर मुझसे सौ रुद्रों के विषय में कहो. यानी कृष्ण प्रतिदिन शतरुद्रिय का जप और पाठ करते रहे. कृष्ण ने युधिष्ठिर से यह कहा है. साफ है कि कृष्ण की शिव शंकर में कितनी दृढ़ और अनन्य आस्था थी. वनपर्व में श्रीकृष्ण शाल्व के आक्रमण की आपबीती सुनाते हुए कहा कि शाल्व के नाश के संकल्प पर कैसे उन्होंने शिव की शरण ली.

कृष्ण मानते थे कि अपनी और अपनों की विजय के लिए एकमात्र शिव की शरणागति ही सही राह है. जयद्रथ वध की प्रतिज्ञा पर भी कृष्ण को केवल शिव का स्मरण रहा. उन्होंने अर्जुन को शिव आराधना की न सिर्फ आज्ञा दी बल्कि स्वयं पूजन व्यवस्था कर अर्जुन के हाथों पूजा करवाई. कृष्ण भीष्म पर्व के भगवद्गीता के 10वें अध्याय में अर्जुन को अपना परिचय देते हुए एकादश रुद्रों में प्रमुख शिव बताते हैं. द्रौपदी उन्हें रुद्र कहकर पुकारती हैं. शिव की प्रसन्नता के लिए कृष्ण को प्रसन्न करना ही पर्याप्त है. महादेव ही अर्जुन को पाशुपतास्त्र प्रदान करते हैं. जरासंध भी शिव भक्त है और अश्वत्थामा भी. दक्ष ने शिव की स्तुति में कहा, ‘नमो भवाय शर्वाय रुद्राय वरदाय च. पशूनां पतये नित्यं नमोऽस्त्वन्धकघातिने .. त्रिजटाय त्रिशीर्षाय त्रिशूलवरपाणिने. त्र्यम्बकाय त्रिनेत्राय त्रिपुरघ्नाय वै नमः.’ और ‘नमः स्तुताय स्तुत्याय स्तूयमानाय वै नमः. सर्वाय सर्वभक्षाय सर्वभूतान्तरात्मने..’ अर्थात् हे शिव ! आप सबके उद्भव का स्थान होने से भुन्न हैं. संहार करने के कारण शर्व हैं. ‘रु’ अर्थात् पाप एवं दुःख को दूर करने से रुद्र हैं तथा वरदाता होने से वरद हैं. पशुओं अर्थात् समस्त जीवों के पालक होने से पशुपति हैं. आप सर्वस्वरूप, सर्वभक्षी और सम्पूर्ण भूतों के अंतरात्मा हैं. शांतिपर्व के 341वें अध्याय में श्रीकृष्ण ने कहा है कि ‘मैं सम्पूर्ण जगत् की आत्मा हूँ. अतः पहले आत्मस्वरूप रुद्र को पूजता हूं. शिव वे आदि-अनादि महादेव हैं जिनकी पूजा अनजाने काल से वेद प्रमाणित है.