April 19, 2025
धर्म जगत

कवि कुलगुरु तुलसीदास का जन्मस्थल दर्शन और यमुना स्नान

-दिलीप कर्पे

नर्मदे हर, जय श्री राम
आत्मीयजन,

“तुलसी भरोसे राम के
निर्भय होके सोय,
अनहोनी होनी नहीं
होनी होनी होय सो होय”

आज प्रातः अमिलो डीहा ग्राम से हनुमानजी, शिवजी व काली माता के दर्शन करके राजापुर पहुंचे. यह ग्राम सनातन धर्म और संस्कृति के संरक्षक सन्त शिरोमणि कविकुल गुरु, कालजयी विश्व कवि गोस्वामी तुलसीदास की जन्मभूमि है, रामबोला से संत तुलसी दास बनने की कहानी से हम सब परिचित हैं, उनके जन्मस्थल पर जाने का अवसर मिला, “तुलसी जन कुटीर” की सभी दीवारें, कक्ष कुछ न कुछ कहते हैं. पुजारी श्री सनक महाराज ने बताया कि यमुना के किनारे ही मौजूद सामने वाले कक्ष में ही तुलसीदास जी की मूर्ति जमुना जी से प्रकट हुई थी, यहीं भगवान नरसिंह की छोटी सी मूर्ति है जिसके बारे में कहा जाता है कि तुलसीदास जी प्रतिदिन इनकी पूजा करते थे. सामने की ओर तुलसी परिवार है पिता श्री आत्माराम, माता हुलसी ,पत्नी रत्नावली एवम पुनिया माई भी है.
परम् विदुषी, रत्नावली जमुना पार महेवा की रहने वाली थी ,सामने की ओर दिखाई देने वाले यमुना नदी के संबंध में जानकारी प्राप्त करते हैं, यमुना जी को कालिन्दी, सूर्यतनया आदि नामों से जाना जाता है. पौराणिक दृष्टि से यमुना सूर्य की पुत्री और यमराज की भगिनी है. इस दृष्टि से वह शनि की भी बहिन कहलाएगी. बहुत संभव है कि यमुना के नीले जल के कारण शनि और यम से उसकी रंग समानता का अभिप्राय इस तरह की मिथक संरचना में निहित हो. यमुना को गंगा की भी बहिन माना गया है. लोक में गंगा-यमुना दो बहिनों का संबोधन प्राप्त होता है. एक ही पिता हिमालय से जन्म लेने के कारण गंगा और यमुना को संभवतः बहिन कह दिया गया हो. यमुना का महत्व कृष्णावतार के बाद और अधिक बढ़ा है. कृष्ण की प्रिय नदी के रूप में यमुना का स्मरण पौराणिक साहित्यों के साथ-साथ प्राकृत-अपभ्रंश तथा हिन्दी साहित्य में किया गया है. यमुना का उद्गम, जहां यह हिम पिघलता है वहां ही यमुनोत्री स्थान है. धवल बर्फ से निसृत होने के कारण ही इसे सूर्य पुत्री की तरह स्मरण किया गया है. यमुना नदी पश्चिम की ओर से प्रवाहित होती हुई प्रयाग में गंगा नदी से संगम करती है. यही एक मात्र ऐसी नदी है जो गंगा में पश्चिम दिशा से प्रवाह बनाती हुई मिलती है. इसी के विराट पाट को तुलसीदास जी ने तैर कर पार किया था ,उस ओर भी रत्नावली का सुंदर मंदिर है ,रत्नावली चालीसा भी देखने को मिला,तुलसीदास की चरण पादुकायें भी तुलसी कुटीर में काशी से लाकर रखी है, स्वयंभू शिवलिंग भी है जिसकी पूजा भी तुलसी दास जी नियमित करते थे. यहीं पर रामचरित मानस का अयोध्या कांड की पांडुलिपि है तुलसी दास जी के समकक्ष रहे गणपतराम की 11वीं पीढ़ी के पीठाधीश्वर श्री रामाश्रय त्रिपाठी ने बहुत विस्तार से मानस के लेखन से जुड़ी बातें बताई आपने तिजोरी में रखी अयोध्या कांड की पांडुलिपि के दर्शन कराए ,और इस महान ग्रन्थ की विशेषताओं से भी अवगत कराया. तुलसीदास जी नान्दी के हनुमानजी के दर्शन नियमित करते थे हनुमान चालीसा में भी एक चौपाई है
”महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति नेवार सुमति के संगी “
इसमें विक्रम पुर यानी राजापुर के प्राचीन नाम का उल्लेख है और वंही के हनुमान मंदिर के संबंध में लिखा है.
“संकट मोचन नाम तिहारो “,
ये वही संकेत है.अवधि भाषा को देश में लोकप्रिय बनाने का श्रेय तुलसी दास जी को ही है. मानस के अलावा दोहावली, गीतावली,कवितावली, बरवै रामायण, वैराग्य सांदीपनि और विनय पत्रिका भी प्रमुख रचनाएं हैं.एक बात और पंडित जी ने बताई सामने के प्रभु घाट से श्री राम जी ,जानकी जी और लक्ष्मण जी ने यमुना जी को पार किया था. पवित्र यमुना जी में स्नान किया तो बालकृष्ण की बाते मस्तिष्क में आने लगी,जन कुटीर के पास ही संत प्रवर मोरारी बापू ट्रस्ट के द्वारा संचालित भंडारे में प्रसादी ग्रहण की. आज बहुत से ऐसे स्थान जो रामवनगमन पथ( के हैं उन्हें देख कर त्रेता युग में किस प्रकार से वन में गमन किया होगा उस की अनुभूति करने का अवसर मिला आज पैदल ,नदी किनारे, पहाड़ियों पर व जंगल के क्षेत्र में कुछेक स्थान पर गए और बुजुर्ग, ग्रामीण जन ,पुजारी व मानस मर्मज्ञ डॉ मिश्रा जी ,अर्चक सर्वेश्वर दास जी,मुकुन महाराज जी से काफी जानकारी मिली 3 स्थल जो हमारी सूची में नहीं थे पर वंहा के लोगो ने बताया तो हम पंहुचे और देखा तो यकीन आया कि श्री राम जी के चरण यहां भी पड़े होंगे .
ऐसी मान्यता है कि राम जी ने यमुना जी जलालपुर से पार की थी, श्री भरद्वाज मुनि ने श्री राम जी के मार्गदर्शन हेतु चार शिष्यों को (ऐसा कहा जाता है कि यह चारों वेद थे ) राम जी के साथ भेजा था. यमुना की धारा के पास ही टीले पर एक मंदिर है, जिसमें सूजायन देवता रहते हैं.आगे जसरा बाजार में जंगल में एक स्थान है जिसे सीता रसोई कहते हैं. वहां से आगे जंगल में एक बहुत ही रमणीय स्थल है ऋषियन यहां पर बहुत अधिक संख्या में ऋषि मुनि तपस्या करते थे इसीलिए इसे ऋषियन कहते हैं यंहा पर हमारे साथ कुछ ग्रामीण भी थे.इसी के आगे एक छोटी सीता पहाड़ी है यहां पर सीता जी ने भात पकाया था. एक स्थान और आज देखा यह मुख्य सड़क के अंदर लगभग 6 किलोमीटर का दुर्गम रास्ता है जहां पर पैदल जाकर सरोवर के पास पहुंचे एक मंदिर जिसे तापस हनुमान मंदिर कहते हैं ,यह मूर्ति पास के ही तालाब से निकली इसे सभी ने मिलकर निकाला इस स्थान पर जाग्रत हनुमानजी हैं हम ने भी महसूस किया ,गुरुजी के साथ सँकिर्तन किया,थोड़ा सामुहिक जप भी किया ,लोक मान्यता के अनुसार जो कर ऋषि श्री राम जी के साथ आगे चल रहे थे, इसी स्थान से प्रभु श्री राम ने उन्हें लौटा दिया( अवधि में जिसे कहते हैं मुरका दिया) इसीलिए इस ग्राम का नाम मुरका रखा गया है. एक और स्थान जहां के लोग श्री राम जी सीता जी और लक्ष्मण जी को टकटकी लगाकर देख रहे थे श्री महाराज सर्वेश्वर दास जी ने बताया कि उस गांव का नाम टकतई पड़ा. इस के आगे नेउर ग्राम में श्री राम जी को उनके पिता के स्वर्गवास का आभास हो गया था, इसीलिए वह कुंवर द्वय तालाब पर अकेले ही आए और उन्होंने वहां कुछ समय अकेले बैठे. रामनगर में ही एक अमृत सरोवर है प्राचीन शिव मंदिर है और हनुमान जी का मंदिर भी है ,कहते हैं इसे चंदेल वंशीय काल में बनवाया गया , अवशेष आज भी है. एक ऊंची पहाड़ी पर आज जाने का अवसर 310 पैडियाँ चढ़कर गए, यहां वाल्मीकि जी का आश्रम है, बहुत ही सुंदर और विशाल वाल्मीकि जी की मूर्ति स्थापित है ,पर आशावर देवी का मंदिर भी है . इसी के पास एक नदी बहती है जिसे वाल्मीकि नदी कहते हैं कहते है. राम जी यहां अपने वनवास काल के दौरान वाल्मीकि आश्रम में आए थे. श्रीरामचरित मानस के अनुसार
देखत बन सर सैल सुहाए,
बालमीकि आश्रम प्रभु आए.
मुनि कहुं राम दंडवत कीन्हा,
आसिरवाद विप्रवर दीन्हा ..
यह स्थान लालापुर में है.श्री हनुमान जी साथ साथ आगे चल रहे थे क्योंकि चारों ऋषियों को श्री राम जी ने लौटा दिया था.यह भी कहा जाता है कि ,स्वयं श्री कामतानाथ भगवान को लेने आये थे,वे ही इन्हें चित्रकूट लेकर गए. जहां प्रभु श्री राम जी ने वनगमन का प्रारंभिक समय इसी पवित्र भूमि पर गुजारा था ,यह स्थान साधना और आराधना,श्रम और आश्रम, सूक्ष्म से विराट चित्त हरण से विपदा हरण ,के साथ सांस्कृतिक व अध्यात्म का संगम स्थल चित्रकूट है.जब मंदाकिनी नदी में डुबकी लगा रहे थे मानो रामत्व हृदय के साथ तादात्म्य स्थापित कर रहा था. मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश को विभाजित करती यह गंगा मंदाकिनी अपने अलौकिक सौंदर्य के साथ कल कल बह रही थी ,माता अनुसूया ने इसे इस स्थान पर आमंत्रित किया था ,रामघाट तो मानो मानस का साक्षी रहा है घाट पर स्थान स्थान पर बाबा तुलसी विराजित हैं ,ऐसा आभास हो रहा था,यह वही स्थान है
“चित्रकूट के घाट पर
लगी संतन की भीड़
तुलसीदास चंदन घिसे
तिलक करें रघुवीर.”
कहते हैं सभी तीर्थ मंदाकिनी में स्नान करने के लिए आते हैं, पूजन अर्चन के बाद हम क्षेत्रपाल भगवान शिव मगसेन्द्र नाथ की पूजा के बाद धनुषाकार पर्वत कामदगिरि की परिक्रमा करने के लिए प्रस्थित हुए, लगभग 6 किलोमीटर की परिक्रमा में बहुत से तीर्थ स्थान के महात्म्य को जाना और मंगल दर्शन भी किए.यहां पर चार द्वार बनाये गए हैं साक्षी गोपाल,ब्रह्मकुण्ड ,
लक्ष्मण पहाड़ी ,भरत मिलाप स्थान, राम शैय्या ,वनदेवी आश्रम, देखने योग्य हैं, इसके अलावा जानकी कुंड भी है.
स्फटिक शिला जहां पर श्रीराम जी स्वयं सीताजी का श्रंगार कर रहे थे तभी इंद्रपुत्र जयंत, कौवा बनकर आया था, यहां बहुत बड़ी एक शिला आज भी मौजूद है, विंध्य पर्वत पर मंदाकिनी का उद्गम स्थल भी है,, गुप्त गोदावरी भी है यह पहाड़ी पर स्थित स्थान जल, जंगल और पर्वत के सामंजस्य का नमूना है ,पानी एक कुंड में आकर गुप्त हो जाता है यंहा दो गुफायें भी है, देवांगन पहाड़ी के मध्य एक स्थान सीता की रसोई भी है कहते हैं सीताजी ने यंहा रसोई बनाई थी जामवंत गुफा,
पम्पापुर,कोटितीर्थ भी देखने लायक स्थान है ,द्रोणाचल पर्वत पर भरत कूप है कहते हैं ,भरत जी सभी नदियो ,समुद्र का जल अपने साथ यंहा लाये थे श्री राम जी के राज्याभिषेक के लिए परन्तु कार्य पूर्ण नही हो पाया ,तब यह जल एक कुंड में डाल दिया गया ,इस पवित्र कुंड में स्नान किया जाता है, कामतानाथ मंदिरराम वनवासी मंदिर, कोशल्या माता मंदिरमानस दर्शन,बांके बिहारी मंदिर भी दर्शनीय है. राघव प्रयाग घाट पर मंदाकिनी, सरस्वती और पयस्विनी नदियां आकर मिलती हैं.
चार स्तंभों पर बनी गोस्वामी तुलसीदास जी की मूर्ति भी दर्शनीय है, यहां पर तुलसी पीठ भी है, आरोग्य धाम भी है .
इस पवित्र स्थान पर मांडव्य ऋषि का आश्रम भी है द्रोणाचल पर्वत के वन क्षेत्र में सुतीक्ष्ण ऋषि, वाल्मीकि जी,दंडी आश्रम ,धारकुंडी आश्रम भी स्थित है. यंहा पर रामचरित मानस के एक कांड की मूल प्रति संरक्षित है (बाल कांड) की प्रति तुलसीदास जी के जन्म स्थान राजापुर में रखी है और दो कांड की प्रति काशी के असि घाट पर है.
रामायण का अत्यंत महत्वपूर्ण प्रसंग है, श्री राम जी द्वारा भरत जी को उपदेश, वाल्मीकि निर्मित आर्ष रामायण का यह उपदेश, आज भी प्रासंगिक है ; जस का तस ,सादर …..
इसी चित्रकूट में श्री राम जी ने भाई भरत जी को अपने हाथ से उठाया मस्तक सूंघकर उन्हें हृदय से लगाया था इसके बाद कुशल प्रश्न पूछकर राजनीति का उपदेश दिया था ,वाल्मीकिनिर्मित रामायण के अयोध्या कांड एक सौ सोलहवें सर्ग से यह उद्घृत किया है, कितने सटीक प्रश्न है.
‘तात. क्या तुम सदा धर्म में तत्पर रहनेवाले, विद्वान्, ब्रह्मवेत्ता और इक्ष्वाकुकुल के आचार्य महातेजस्वी वसिष्ठजी की यथावत् पूजा करते हो?
भाई. क्या माता कौसल्या सुख से है ? उत्तम संतान वाली सुमित्रा माता प्रसन्न हैं ? और आर्या कैकेयी देवी भी आनन्दित हैं?
‘जो उत्तम कुलमें उत्पन्न, विनय सम्पन्न, बहुश्रुतः किसी के दोष न देखने वाले तथा शास्त्रोक्त धर्मो पर निरन्तर दृष्टि रखने वाले हैं, उन पुरोहित जी का तुमने पूर्णतः सत्कार किया है ?
‘हवन विधि के ज्ञाताः बुद्धिमान् और सरल स्वभाव वाले जिन ब्राह्मण देवता को तुमने अग्निहोत्र-कार्यके लिये नियुक्त किया है, वे सदा ठीक समय पर आकर क्या तुम्हें यह सूचित करते हैं कि इस समय अग्नि में आहुति दे दी गयी और अब अमुक समय में हवन करना है ?
‘तात . क्या तुम देवताओं, पितरों, भृत्यों, गुरुजनों, पिता के समान आदरणीय वृद्धों, वैद्यों और ब्राह्मणों का सम्मान करते हो?
तात , क्या तुमने अपने ही समान शुरवीर शास्त्रज्ञ, जीतेन्द्रियः कुलीन तथा बाहरी चेष्टाओं से ही मन की बात समझ लेने वाले सुयोग्य व्यक्तियोंको ही मन्त्री बनाया है?
रघुनन्दन,अच्छी मन्त्रणा ही राजा ही विजय का मूल कारण है. यह भी तभी सफल होती है, जब नीतिशास्त्र निपुण मन्त्रि शिरोमणि अमात्य उसे सर्वथा गुप्त रखते हो?
भरत ! तुम असमय में ही निद्रा के वशीभूत तो नही होते ? समय पर जाग आते हो न? रातके पिछले पहर में अर्थ-सिद्धि के उपाय पर विचार करते हो न !
कोई भी गुप्त मन्त्रणा दो से चार कानो तक ही गुप्त रहती है. छः कानों में आते ही वह फूट जाती है, अतः मैं पूछता हूँ तुम किसी गूढ विषय पर अकेले ही तो विचार नहीं करते ! अथवा बहुत लोगों के साथ बैठकर तो मन्त्रणा नहीं करते ? कहीं ऐसा तो नहीं होता कि तुम्हारी निश्चित की हुई गुप्त मन्त्रणा फूटकर शत्रु के राज्य तक फैल जाती हो ?
‘रघुनन्दन ! जिसका साधन बहुत छोटा और फल बहुत बड़ा हो, ऐसे कार्य का निश्वय करने के बाद तुम उसे शीघ्र प्रारम्भ कर देते हो न ? उसमें विलम्ब तो नहीं करते?
क्या तुम सहस्त्रों मूर्खों के बदले एक पण्डित को ही अपने पास रखने की इच्छा रखते हो ? क्योंकि विद्वान् पुरुष अर्थसंकट के समय महान् कल्याण कर सकता है .
यदि राजा हजार या दस हजार मूर्खों को अपने पास रख ले तो भी उन से अवसर पर कोई अच्छी सहायता नहीं मिलती है.
यदि एक मन्त्री भी मेधावी, शूर-वीर, चतुर एवं नीतिज्ञ हो तो वह राजा या राजकुमार को बहुत बड़ी सम्पत्ति की प्राप्ति करा सकता है.
तात, तुमने प्रधान व्यक्तियों को प्रधान, मध्यम श्रेणी के मनुष्यों को मध्यम और छोटी श्रेणी के लोगों को छोटे ही कामो में नियुक्त किया है न ? ऐसे अमात्यों को ही तुम उत्तम कार्योंमें नियुक्त करते हो न ?
कैकेयीकुमार , तुम्हारे राज्य की प्रजा कठोर दंड से अत्यन्त उद्विग्न होकर तुम्हारे मन्त्रियों का तिरस्कार तो नहीं करती ?
वया तुमने सदा संतुष्ठ रहनेवाले, शुर-वीरः धैर्यवान ,बुद्धिमान, पवित्र, कुलीन एवं अपने में अनुराग रखने वाले, रणकर्मदक्ष पुरुष को ही सेनापति बनाया है ?
तुम्हारे प्रधान सेनापति बलवान ,कुशल और पराक्रमी तो है न? क्या तुमने उनके शौर्य की परीक्षा कर ली है. तथा क्या वे तुम्हारे द्वारा सत्कारपूर्वक सम्मान पाते रहते हैं?
सैनिको को देने के लिये नियत किया हुआ समुचित वेतन और भत्ता तुम समय पर दे देते हो न देनेमें विलम्ब तो नहीं करते हैं?
क्या उत्तम कुल में उत्पन्न मंत्री आदि समस्त प्रधान अधिकारी तुमसे प्रेम रखते हैं ? क्या वे तुम्हारे लिये एक-चित्त होकर अपने प्राणों का त्याग करने के लिये उद्यत रहते हैं !!!
भरत ! तुमने जिसे राजदूत के पद पर नियुक्त किया है. वह पुरुष अपने ही देश का निवासी, विद्वान्, कुशल, प्रतिभा-शाली और जैसा कहा जाय, वैसी ही बात दूसरे के सामने कहने वाला और सद‌सद्विवेक युक्त है न ?
‘शत्रुसूदन ! जिन शत्रुओं को तुमने राज्य से निकाल दिया है, वे यदि फिर लौटकर आते हैं तो तुम उन्हें दुर्बल समझकर उनकी उपेक्षा तो नहीं करते ?
विद्वन क्या तुम नीतिशास्त्र की आज्ञा का पालन करते हो ? क्या तुम वेदों की आज्ञा के अनुसार कार्य करके सफल करते हो ? अच्छे गुणों को ग्रहण करने से ही सफल हुआ जा सकता है.

कितनी सार्थक, सारगर्भित व उपयोगी ज्ञान भरत जी को दिया.
दिनचर्या
बातें तो इतनी है कि ,मेरा कहते कहते और आपका सुनते सुनते ,मन नहीं भरेगा ,पर बहुत सुबह से राम काज के लिए निकलना ,फिर दिनभर ,यात्रा करते करते ,एक से एक वे स्थान जंहा प्रभु के चरण पड़े थे, उस धुली को वंदन करते व सिर पर चंदन जैसी लगाते हुए परम् सुख का अनुभव होता है,लोग आ जाते हैं, ये वे लोग हैं जिनके पूर्वजों ने ,वह समय देखा होगा ,जब सच में रामजी जानकी जी व लखन भैया यंहा आये होंगे,प्रेम इतना कि ,भोजन प्रसादी लेकर जाएं, अब आप कंहा कंहा जाएंगे,इतनी जिज्ञासा,कि निकलने का मन नहीं करता है, यंहा अवधी बोली जाती है, बात बात पर चौपाइयों के साथ ,बात करना,सब थकान मिट जाती है, रात हो जाती है फिर ,जंहा रुकना है ,आश्रय तलाश करो,आवश्यक सामान निकालो ,प्रतिदिन श्री रामजी का पूजन अर्चन सबेरे व शाम ,वह करने के बाद, भोजन प्रसादी के लिए भोजनालय की खोज ,अंत मे श्रीमती जी ने जो जो फ़ोटो लिए,उन में से केवल 4 – 5 का चयन .साथ मे लाई पुस्तकों को पढ़कर ,सामयिक जानकारी व आज के संदर्भ के अनुसार रफ लिखकर ,टाइप कर आप तक भेजना, आनंद दाई समापन है.

फिर कल कंहा कंहा जाना है, स्थल,रिसोर्स पर्सन से कॉन्टेक्ट, वाहन को चेक करके फिर ,सुंदरकांड को
मोबाइल पर लगाकर विश्रांति.

इसीलिए जो लिखा वह व्याकरण जनित न होकर ,भाव की भाषा मे ही रसास्वादन करें, अन्य को भी कराए

धीरे धीरे सब के प्रयासों से ही रामत्व का भाव सब मे आये. यही सदिच्छा के साथ विराम.