राम वनगमन मार्ग की यात्रा और रामजी के बेड़ा पार करने का आसरा
लेखक-

दिलीप कर्पे, खरगोन
नर्मदे हर
आत्मीयजन,
तेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार
उदासी मन काहे को डरे..
बहुत दिनों से यात्रा की तैयारी जारी थी दिन भर मित्र,परिजन,लगातार सलाह दे रहे थे, “देखना कुछ भी हो सकता है” “आजकल युवाओं तक को अटेक आ रहा है”, “सायबर फ्रॉड भी बहुत हो रहे हैं”,‘सब गोली दवाई रख लेना”, ’इतनी लंबी यात्रा की इस उम्र में नहीं करना चाहिए”
और भी बहुत कुछ , अब कहीं न कहीं घंटी तो बज रही थी. सकारात्मक भी सलाहकारी हो रही थी,बस उहापोह चल रही थी. 8 दिन, 6 दिन, 2 दिन अंतिम दिन
आज तो निकलना ही है, सबेरे तैयार होकर ,रोज की तरह हनुमानजी के मंदिर के लिए निकला ,देखता हूँ कि किसी के घर से आवाज आ रही थी……
तेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार,
उदासी मन काहे को डरे...
बस, फिर क्या डर गायब, ऐसा लगा कि हनुमानजी भी मुझे देख रहे थे,मानो कह रहे थे, “रामजी की यात्रा है, जंहा वे हैं, वंहा मै तो हूँ ही, वहां डर का क्या काम”
मै एकदम हनुमान चालीसा की 26 वी चौपाई गुनगुनाने लगा
संकट तें हनुमान छुड़ावै.
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै..
जो कहती है, जो भी आपका मन वचन और कर्म से ध्यान करता है उसे आप सभी प्रकार के संकट से मुक्त कराते हैं.
अब मैं पूरे आनंद के साथ,तैयार हो गया. लगातार मित्र गण, परिजन,आने लगे,शुभकामनाओं का दौर चालू हो गया ,मोबाइल पर 100 से ज्यादा शुभचिन्तको की मंगल कामनाएं ,मानो मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए किसी ने उन्हें प्रेरित किया, इसे ही आध्यात्मिक भाषा मे प्रभु की लीला कहते हैं.
आप सभी की शुभकामनाओं से हम प्रातः घर के मंदिर की पूजा अर्चना के बाद आदर्श नगर के हनुमान मंदिर, दुर्गा मंदिर, के दर्शन के पश्चात घर पहुंचे श्री व श्रीमती श्रीपाद जोशी डॉ भाटे दंपति, श्री पारे दम्पति, श्री राजपुरोहित दम्पति श्री कपिल तारे दंपति, श्री संतोष जैसवाल, कवि गुप्ता जी,श्री अशोक जोशी श्री शैलू जोशी आ पहुंचे, दुर्गा मंदिर में पूजन किया वहां श्री यादव,श्री कुमरावत, श्री कुशवाहा, श्री जाधम श्री ताम्रकर श्री रघुवंशी ने तिलक लगाकर शुभेच्छा दी,प्राचीन हजारी राम मंदिर पहुचे श्री राम जी को हाज़री देने के बाद पंडित संजय भट्ट,श्री चापोरकरजी ,श्रीप्रकाश अवाड़ श्री अजय भट्ट,श्री निर्मल गुप्ता श्री गुजराती ,श्री महाजन,अभिवदन किया ,आशीर्वाद दिया, माँ कुंदा का पूजन अर्चन किया, झंडा चौक पर माता जी के मंदिर में दर्शन कर, पं. श्री कमल राणा जी ने रक्षा कवच बांधा,कुन्दा तट पर सिद्धि विनायक गणपति मंदिर में गणेश जी से अनुमति ली श्री अविनाश जी द्वारा कलेवा बांधकर शुभकामनाएं दी यंहा पर भी लीला बरकरार थी श्री नारमदेव दंपति, श्री डोंगरे दंपति, डॉ बारचे,डॉ संतोष पाटीदार,श्री प्रवीण जोशी, श्री यादव,श्री अशोक पंवार, श्री राकेश राणा, श्री मोहन परमार,श्री संजय व्यास,श्री प्रकाश चंदानी, श्री भानु परसाई,श्री गुप्ता श्री पाटीदार श्री बर्वे,ने भावभीनी विदाई दी, ,प्राचीन नवग्रह मंदिर,के पुजारि श्री लोकेश जागीरदार ने नवग्रह का पूजन,बगुला देवी,व सूर्य मंत्र की पूजा करवाई ,मेलडेरेश्वर महादेव के दर्शन के बाद, इंद्र टेकरी पर स्थित श्री श्री 1008 पूर्णानंद बाबा की समाधि स्थल पर गए जहां पर पूजा अर्चना के बाद वर्तमान प्रमुख श्री सुधीर भट्ट जी से राम वनगमन यात्रा के लिए आज्ञा प्राप्त की श्री दिलीपसिंह चौहान, श्री मधु भाई यादव,श्री परसाई,श्री राणा जी ने शुभकामनाएं दी पंडित सुधीर भट्ट जी ने आशीर्वाद दिया एवं यात्रा प्रारंभ की.
नर्मदा के किनारे प्राचीन तीर्थ स्थल मंडलेश्वर पंहुचे यह वह स्थान है जहां मंडन मिश्र एवम शंकराचार्य जी के मध्य शास्त्रार्थ हुआ था, सुंदर घाट, विस्तीर्ण जल राशि किनारे पर पुण्य सलीला नर्मदा जी का पूजन किया, घाट पर बने विशाल स्वामी गोन्दवलेकर जी द्वारा प्रणीत श्री राम मंदिर पहुंचे ,श्री राम सीताजी व लक्ष्मण जी के दर्शन किये, श्री शान्तनु मोडक,ने पूजन करवाया श्री मनोज मातवनकर दंपति के साथ भगिनी मंडल की 12 बहनों ने भी स्वागत किया बेटा आलिंद पुणे से चार दिन पूर्व ही आ गया था लगातार सहयोग व फोटोज ले रहा था, दत्त मन्दिर, वासुदेव कुटी गए जहाँ पर वासुदेवानंद सरस्वती जी ने चातुर्मास किया था, उस कमरें एवम मंदिर के दर्शन कर हम धन्य हो गए, एक ओर ध्यान आकर्षित करने वाला मंदिर है छप्पनदेव महादेव मंदिर वहाँ भी गए. आज तो बहुत से राम सनेही भी मिलने आ गए थे थोड़ा सत्संग किया.
आज एक विशेष गुफा मंदिर की जानकारी आपको दे रहा हूँ, हो सकता हो यह स्थान आपने देखा हो, यह पवित्र स्थान है शास्त्रार्थ वाला, यहाँ पर एक शिव मंदिर है, जो गुफा में है, इसे गुप्तेश्वर महादेव मंदिर कहते हैं, 'श्री शंकर दिग्विजय' में इस पूरी घटना का सुंदर वर्णन किया है श्री शंकराचार्य जी तीर्थराज प्रयाग में कुमारिल भट्ट के साथ शास्त्रार्थ के लिए पहुंचे, उन दिनों कर्मकांड में पंडित मंडन मिश्र का नाम सर्वोपरि था, अतः सर्वप्रथम प्रयाग से वे मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ करने की इच्छा है माहिष्मती नगरी पहुंचे यहाँ पर मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ किया और उन्हें पराजित किया परंतु उनकी परम विदुषी धर्मपत्नी उभय भारती ने कहा, आपने अभी आधे शरीर पर ही विजय प्राप्त की है, अभी अर्धांगिनी तो शेष है. आप मुझसे शास्त्रार्थ कीजिए तब आचार्य पाद ने उनसे भी शास्त्रार्थ किया.
इसी बीच उभय भारती ने काम संबंधी प्रश्न किए जिनके जवाब आचार्य दे नहीं पाए, उन्होंने परकाया प्रवेश करके मृतक राजा अमरुक के शरीर में प्रवेश किया और कामशास्त्र का अनुभव करके, फिर उभय भारती को शास्त्रार्थ में हराया, मंडन मिश्र ने भी इस हार को स्वीकार किया तब शंकराचार्य जी ने मंडन मिश्र को अपना शिष्य बनाया, बाद में श्री मंडन मिश्र भी शंकराचार्य बने.
वहां से इंदौर आये श्री राम मंदिर के पुजारी श्री राजीव किल्लेदार श्रीमती जी ने भी स्वागत किया,श्री गिरीश मोडक दंपति, श्री मोहन कर्पे दंपति, श्रीमती मंजू किबे, श्री मिलिंद देव,श्री आनंद तराणेकर दम्पति, श्री घोंगड़े दम्पति, श्री प्रसाद जी दम्पति, ने भी स्वागत किया बहुत से प्रियजन और भी थे,अब 9 बजे देवास पंहुचे श्रीमती उज्ज्वला जी व लेखिका ऋचा ने भी स्वागत किया.
अब आप ही बताइए
“उदासी मन काहे को डरे’’
आज फिर नर्मदा मैय्या के दर्शन से जो सीख मिलती है वह तो अपने आप मे अतुलनीय है. जब मंडलेश्वर की शांत नर्मदा जी के किनारे हम दोनों बैठे थे
नर्मदा परिक्रमा की मीठी यादे साथ थी.
नदियों का प्रवाह मानवीय चेतना को साहस प्रदान करने वाला रहा है. जिन प्राकृतिक प्रेरणाओं से मनुष्य ने कर्मठता का पाठ पढ़ा है, उसमें नदियों की भूमिका सर्वोपरि है. नदी का निरंतर बहना-गतिशीलता का प्रतीक है. अनेक पहाड़ों को काटकर अग्रगामी होना निरंतर उनकी संघर्ष-यात्रा का ही बखान है. नदियां धैर्य की ध्वनियों को निरंतर अपनी गीति-संरचना में तब्दील करती रहती हैं. प्रत्येक विपरीत को साहस और धैर्य के साथ पार करना नदियां ही सिखाती हैं. मार्ग में कितने ही अवरोध क्यों न हों उन्हें पार करने के लिए व्यक्ति के भीतर यदि नदियों जैसा साहस और धैर्य है तो ये अवरोध मनुष्य की प्रगति में बाधक नहीं बन सकते है. नदियां मानवीय संवेदना को विकसित करती है. उन्हें उदार और सौन्दर्यमयी बनाती है. नदी की धार को निहारना, उसके जल की शीतलता का स्पर्श करना उसके सातत्य को निरखना मानवीय जीवन की विस्तृत कल्पना-चेतना का ही विस्तार है. संवेदना और कल्पना का जो सर्जनात्मक विवरण मानवीय मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में मिलता वह नदियों के सतत संपर्क का ही परिवेश है. नदियां जिस तरह अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होकर अंततोगत्वा उसे प्राप्त करके ही रहती हैं, उसी तरह अपने लक्ष्य की प्राप्ति का भाव मनुष्य में संकल्प की तरह नदी-आचरण से ही आया है.
अब तो मैय्या भी वही बात कह रही थी,
उदासी मन काहे को डरे…